डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह : श्रीराम का चरित्र उनके इस अभिलाषा में बाधक…

आदिपुरुष में राम को एक हास्य कथा का नायक चित्रित कर पूरी रामकथा को हास्यास्पद बनाने का प्रयत्न किया गया है।

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यह घटना लेखक या निर्देशक द्वारा की गई कोई सामान्य भूल नहीं है। यह देश की मनोदशा परिवर्तन करने के एक अभियान का अंग है। श्री राम और सीता को अमर्यादित दिखाओ, राम को रावण द्वारा उठा-उठाकर फेंक दिया जानेवाला एक निरीह मनुष्य दिखाओ, लक्ष्मण ने वनवास काल में संयम और मर्यादा का पालन किया इसलिए विभीषण की पत्नी का उत्तेजक रूप दिखाकर उससे संजीवनी की मालिश करवाओ, हनुमान बुद्धिमानों में अग्रगण्य माने जाते हैं इसलिए उन्हें बुद्धू दिखाओ, रावण द्वारा सीता का हरण कर ले जाते हुए राम को असहाय अवस्था में देखते रहना दिखाओ, जिससे राम की असहायत का बोध हो, और उनका सामान्यीकरण किया जा सके। कुल मिलाकर राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के स्थान पर कामिक के एक काल्पनिक पात्र के रूप में ऐसा चित्रित करो कि समाज उन्हें आदर्श न मानकर हंसी का पात्र मान ले।

आज कल भारत में नरेटिव सेट करने की बड़ी धूम मची है। अपनी आवश्यकता और विचारधारा के अनुसार नरेटिव सेट भी करने का प्रयास हो रहा है और चेंज भी करने का प्रयास हो रहा है।

कुछ लोग राम को भी अपने नरेटिव में सेट कर देना चाहते हैं, लेकिन क्यों ? क्योंकि राम का चरित्र मर्यादा, संयम और संतुलित उपभोग की शिक्षा देता है। रावण और राम का संघर्ष उपभोग और संयम का संघर्ष था।

रावण अनियंत्रित, अबाधित, असंतुलित और अमर्यादित उपभोगवादी सभ्यता का प्रतिनिधि था। वास्तव में आज के पूंजीवाद के सभी मानकों का वह आदर्श नायक था। प्रकृति पर नियंत्रण का विज्ञान हो या प्राकृतिक संसाधनों का स्वच्छंद उपभोग का,सभी में वह अत्यंत आगे था। लंका अर्थप्रधान नगरी थी। वहाँ अर्थ और भोग के अतिरिक्त अन्य किसी वस्तु का महत्व नहीं था। वह कोई जंगली, तथाकथित असभ्य कबीले का नायक नहीं था, बल्कि पूंजी के उपभोग की सभी कला-कौशल से युक्त सभ्यता का नेतृत्व करता था।

श्री राम ने उसका वध कर संयम, मर्यादा, संतुलित उपभोग, प्राकृतिक संपोषणीयता की स्थापना की। भारतीय समाज राम के उस चरित्र को अपना आदर्श बनाकर आज तक उसी के अनुसरण का प्रयास करते चला आ रहा है।

आदिपुरुष उस मर्यादा और संदेश का हनन करने के लिए खड़ी की गई एक कहानी है। इसमें केवल मुंतशिर ही नहीं है, इसके पीछे वे लोग है जो आर्थिक विकास के लिए भारत को एक स्वछंद बाजार बना देने की अभिलाषा रखते हैं, लेकिन राम का चरित्र उनके इस अभिलाषा में बाधक सिद्ध होता है, इसलिए उसे छिन्न-विछिन्न करवाने पर तुले हैं।
साभार- डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह

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