सर्वेश तिवारी श्रीमुख : नकारात्मक बातें कितनी तेजी से पसरती हैं न!

पिछले कुछ दिनों से उत्तर प्रदेश की एक अधिकारी का किस्सा बहुत तेजी से वायरल हो रहा है। किस्सा बस इतना है कि एक निम्नवर्गीय कर्मचारी पति ने विवाह के बाद पत्नी को पढ़ाया और पत्नी अधिकारी हो गईं। अब पत्नी को किसी और से प्रेम हो गया और पति के अनुसार वह अपने प्रेमी के सङ्ग मिल कर उसकी हत्या करना चाहती है।
पतिदेव रोते फिर रहे हैं। पत्नी और उसके मित्र का वाट्सप चैट बांटते फिर रहे हैं। पति के दावे में कितनी सच्चाई है यह कानून पता करेगा, पर यदि यह सच है तो बुरा ही है। ऐसी घटनाएं धिक्कार के लायक ही है। पर क्या सचमुच यह एक ऐसी घटना है जिसे महत्व दिया जाय? क्या ऐसी घटनाओं का वायरल होना सही है?

आप अपने आस-पड़ोस में नजर दौड़ाइये, आपको दर्जनों ऐसे परिवार मिल जाएंगे जहां पति ने पत्नी को या पत्नी ने पति को अपनी किडनी दी होती है। किडनी देने का मतलब अपनी आधी जिंदगी देना होता है।

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कहीं पढ़ रहा था, भारत में किडनी लिवर आदि खराब होने की स्थिति में अंगदान सामान्यतः परिवार के ही लोग करते हैं और अस्सी प्रतिशत डोनर महिलाएं होती हैं। तो यह स्पष्ट है कि किडनी या लिवर खराब होने की स्थिति में आधे से अधिक पुरुषों को नया जन्म उनकी पत्नियां ही देती हैं। और ऐसी स्त्रियों की संख्या सैकड़ों, हजारों में नहीं, बल्कि लाखों में हैं। फिर ऐसे समाज में किसी एक स्त्री-पुरुष या कुछ स्त्रियों-पुरुषों की चरित्रहीनता की खबरें मुद्दा क्यों बनें? यह तो अपवाद ही है, जो कहीं भी हो सकता है।
ऐसे भी असँख्य परिवार हैं जहाँ पत्नी ही नौकरी करती है और पति घरेलू काम या खेती-किसानी करता है। वहाँ प्रेम कम नहीं है, सम्बन्धों में समर्पण की भी कमी नहीं है।

हम ऐसे परिवारों को देखते तो हैं पर इनपर चर्चा नहीं करते। हमें लगता है कि इसमें क्या विशेष है, यह तो सामान्य घटना है। और जैसे ही कोई घटना इसके विपरीत दिखती है, हम टूट पड़ते हैं। प्रेम हमें आकर्षित नहीं करता, हमें घृणा आकर्षित करती है, नकारात्मकता आकर्षित करती है, छल आकर्षित करता है। कितना बुरा है न?
वैसे यह भी सच है कि ऐसी नकारात्मक खबरें बहुत कम हैं, बहुत ही कम… डेढ़ अरब की जनसंख्या के हिसाब से देखें तो आटे में नमक नहीं, समुद्र में बूंद की तरह… पर हम एक उदाहरण मिलते ही चीखने लगते हैं कि समय बदल गया, लोग बुरे हो गए, संस्कार मर गए… जबकि ऐसा नहीं है। कम से कम भारत के सम्बंध में तो यह बात भरोसे के साथ कही जा सकती है कि मनुष्य अपने सम्बन्धों में प्रेम का निवेश करता है, छल का नहीं। छल, घृणा, द्वेष, अपवाद है… यह सम्बन्धों का स्थायी भाव नहीं!

सभ्य समाज का दायित्व होता है कि वह सकारात्मक खबरों का प्रसार करे। नकारात्मक खबरें अंततः कुंठा को ही जन्म देती हैं। इस कुंठा से किसी का भला होने वाला नहीं।
अपने बीच से सकारात्मक खबरें ढूंढिये। और यकीन कीजिये, हमारे समाज से अधिक सकारात्मकता और कहीं नहीं। कहीं भी नहीं…

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

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