योगेश किसले : जज साहब बोले “यही कि फर्स्ट क्लास की बात सेकंड क्लास में नही करनी चाहिए”
पहले एक सत्यकथा , फिर अपनी बात।
इस्लाम छोड़कर सनातन धर्म अपनाने वाले पाकिस्तानी पत्रकार आरिफ ज़कारिया ने यह किस्सा बताया था। पाकिस्तान में एक जज ट्रेन से सफर कर रहे थे । वहां जजों को फर्स्ट क्लास में यात्रा करने की सहूलियत होती है लेकिन उस दिन ट्रेन में बहुत भीड़ होने के कारण उन्हें दूसरे दर्जे में बैठना पड़ा।
बात 1965 की है । भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ा हुआ था । हर आम और खास इस युद्ध को लेकर उत्सुक था। दूसरे दरजे की बोगी में बैठे लोग आपस मे बहस कर रहे थे कि इस बार जंग में पाकिस्तान जीतेगा या नही ? सबकी राय थी कि इस बार तो पाकिस्तान भारत को धूल चटायेगा। सूट बूट पहने जज साहब चर्चा में महज श्रोता थे । एक युवक बोला – भाई हमारे बीच ये सूटेड बूटेड साहब हैं इनसे भी पूछा जाए कि जंग का क्या नतीजा होगा ? जज साहब ने दबी जुबान में कहा – देखिए भारत बड़ा देश है उसके पास हथियार भी काफी हैं इसलिए मुझे लगता है कि भारत जीतेगा । … इतना सुनना था कि सबलोग जज साहब पर टूट पड़े और बुरी तरह कूट दिए।
कुटाई पिटाई के बाद यह किस्सा उन्होंने अपने साथी जज को बताया तो साथी जज ने पूछा — इससे आपको क्या सबक मिला ? जज साहब बोले – यही कि फर्स्ट क्लास की बात सेकंड क्लास में नही करनी चाहिए।
मैंने भी अपने कई आलेख बहुत मेहनत और शोध से तैयार किये । अखबार के संपादकों को मैं पोसाई नही पड़ता हूँ इसलिए वे मेरे आलेख नही छापते । एक बार एक संपादक जी से पूछा भी कि मेरे आलेख में क्या कमी है जो इसे नही छापते ? बोले — आप बहुत कड़ा लिखते हैं अखबार का पालिसी अलाऊ नही करता । उनका असिस्टेंट किनारे ले जाकर बोला – भैया , पालिसी उलिसी कुछो नही संपादक जी का मात्सर्य भाव जोर मार देता है इसलिए नही छापते ।
सोशल मीडिया पर कम से कम सौ पचास लोग मुझे पढ़ लेते हैं इसकी तसल्ली है । लेकिन 5 हजार फेसबुकिया मित्रो में सौ पचास लोग ही सुधी जन मिले तो लगता है कि इतना मेहनत करने से अच्छा होता अलग अलग पोज में अपनी तस्वीर ही डाल देता । इंशाअल्लाह अपनी शकल भी बुरी नही है । इसमें तो कम से कम उचन्ति टाइप के लोग wow , nice , beauty , how sweet औऱ स्माइली डाल के डेढ़ दो सौ की गिनती गिनवा देते ।
फर्स्ट क्लास की बात सेकंड क्लास में करने से यही होता है। लेकिन कीजियेगा क्या ? मजबूरी का नाम गांधी जी ।
सोशल मीडिया के मठाधीशों की हालत यह है कि कट पेस्ट और उड़ाये गए जोक्स चेपकर लोग बाहुबली बने फिरते हैं । उनके फॉलोवर्स और मित्रो की सक्रियता देखते बनती है । मैं इन्हें सोशल मीडिया का महंत मानता हूँ । कबीरदास ने कहा भी है — जाको संग दस बीस हैं वाको नाम महंत । महंतों की इन्ही दस बीस की भीड़ महफ़िल लूट लेती है । आप हम देखते रहते हैं कि किसी लेख पर तो सौ पचास लोग कमेंट कर कृतार्थ करें । लेकिन फिर जज साहेब की टिप्पणी याद आ जाती है — फर्स्ट क्लास की बात सेकंड क्लास में करने से यही होता है।
कभी कभी सेकंड क्लास की बात भी कर देता हूँ लेकिन फिर अपने ही उलाहना देने लगते हैं कि क्या लिख रहे हो भाई । अपनी बेइज्जती काहे खराब कर रहे हो । फिर वापस अपने दड़बे में लौट आता हूँ ।
अब पता नही यह लेख फर्स्ट क्लास वाला है या सेकंड क्लास वाला । लेकिन गुबार था तो लिख दिया ।