सुरेंद्र किशोर : देश के चुनावी इतिहास में भ्रष्ट दल-गठबंधन को जनता ने केंद्र की सत्ता नहीं सौंपी

इस देश का चुनावी इतिहास
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जिस दल या गठबंधन को जनता ने अपेक्षाकृत अधिक
भ्रष्ट व नुकसानदेह माना,उसे केंद्र की सत्ता नहीं सौंपी
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इस देश में 1967 और उसके बाद के जितने भी चुनाव हुए,सबका मुझे थोड़ा-बहुत अनुभव और मोटा-मोटी जानकारियां हैं।


अत्यंत थोड़े से अपवादों को छोड़कर हर बार मतदाताओं ने
‘बदतर’ को ‘छोड़कर’ बेहतर को ही चुना है।
कौन बेहतर और कौन बदतर है,इसे अधिकतर जनता जानती है,चाहे कोई कितना भी गाल बजाये।
लोक सभा के मौजूदा चुनाव का रिजल्ट भी वैसा ही होगा,ऐसा मेरा अनुमान है।
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ऐसा क्यों होता है ?
इसलिए कि अधिकतर लोग जानते हैं कि कोई व्यक्ति,पार्टी या विचारधारा पूर्ण नहीं है।
न तो मैं पूर्ण हूं ,न ही आप और न कोई नेता या कोई पार्टी।
पूर्ण तो सिर्फ ईश्वर है।(जो खुद को पूर्ण समझते हैं,वे मुझे ऐसी टिप्पणी के लिए कृपया माफ कर देंगे।)
इसीलिए इस देश के मतदातागण अपेक्षाकृत ‘‘कम पूर्ण’’ से ही काम चला लेते हैं।
और ‘‘अधिक अपूर्ण’’ को टरका देते हैं।
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मैंने देखा है कि पिछले किसी चुनाव में यह तर्क नहीं चला कि मैं भ्रष्ट तो मेरा प्रतिद्वंद्वी भी तो भ्रष्ट।
इसीलिए मतदातागण मुझे ही अपना लेंगे।
आम लोगों में से अधिकतर लोग यह देखते हैं कि कौन सा दल और नेता, देश व समाज के लिए कम नुकसान देह और अपेक्षाकृत अधिक फायदेमंद है।
जो अपेक्षाकृत अधिक नुकसानदेह और कम फायदेमंद होता है,वह मौजूदा के बदले अगले चुनाव में अपनी तकदीर आजमाने को अभिशप्त होता है।
किसी का प्रचार जो कहे,मीडिया जो कहे,पर आम लोग नेताओं व दलों के चाल,चरित्र और चिंतन के बारे में अधिक जानते हैं।
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1977 में जब लोक सभा चुनाव हुआ तब भी इमरजेंसी हटी नहीं थी।
क्रूर तानाशाह ने ढिलाई जरूर दे दी थी।
घनघोर आपातकाल के बीच मैं भूमिगत जार्ज फर्नांडिस से मिला था।
जार्ज ने एक अंग्रेजी अखबार के एक वरिष्ठ संवाददाता की रपट की चर्चा की।
कहा कि वह पत्रकार साख वाला है।ईमानदार है।इंदिरा के प्रभाव में आने वाला नहीं है।
वह झूठ नहीं लिखता।
उसने लिखा है कि प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की जनसभा में जो लोग जुटे थे,उनके चेहरों पर इंदिरा के लिए वास्तविक समर्थन और प्रेम के भाव थे।
जार्ज ने मुझसे कहा कि लगता है कि इंदिरा ने लोगों को मोह लिया है।
इसीलिए जब फरवरी 1977 में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने लोस चुनाव कराने की घोषणा की तो जार्ज ने यह राय प्रकट की थी कि हमलोगों को चुनाव का बहिष्कार करना चाहिए।
पर,केंद्रीय नेतत्व संभवतः जेपी के कहने पर जार्ज चुनाव लड़नेे के लिए राजी हो गये।करीब साढे तीन लाख मतों से जीते।़
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उधर यह भी खबर आई थी कि आई.बी.ने इंदिरा गांधी को यह जानकारी दी कि चुनाव हो जाए तो आप एक बार फिर सत्ता में आ जाएंगी।
चुनाव के पीछे ऐसी ही रपटें थीं जो अंततः झूठी साबित हुईं।
यानी आम जनता (1977 में) किसे वोट देगी,इसका पता न तो आई.बी.को चल सका था और न ही जार्ज के मित्र व अनुभवी संवाददाता ,जो जार्ज की दृष्टि में निष्पक्ष थे।
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1977 के लोक चुनाव में
अंततः जनता ने सही फैसला किया और इंदिरा गांधी को सत्ता से बाहर कर दिया।
इंदिरा गांधी के इरादे का पता इसी से चलता था कि चुनाव कराते समय भी उन्होंने इमरजेंसी जारी रखी थी।
सत्ता में लौटतीं तो क्या करतीं ,उसका अनुमान कर लीजिए।
इमरर्जेंसी में उन्होंने क्या-क्या किया था,उसे जानने के लिए शाह आयोग की रपट पढ़ लीजिए।

Veerchhattisgarh

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