सर्वेस तिवारी श्रीमुख : अपने किए का दण्ड अंतिम समय में भोग कर ही जाना होगा

अपने किए का दण्ड अंतिम समय में भोग कर ही जाना होगा।

पिछले दिनों ग्रामीण क्षेत्र के एक व्यक्ति का एक्सिडेंट हो गया। गाड़ी स्लिप हुई, तो भाईसाहब नीचे गिरे और कमर की चक्की चटक गयी। उम्र लगभग साठ की होगी, तो मामला लगभग समाप्त जैसा हो गया।

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हम एक जगह गए तो वहाँ कई लोग इसी विषय पर बात कर के हँस रहे थे। हमने आश्चर्य से कहा, “अरे! बेचारे की कमर चटक गयी और आपलोग हँस रहे हैं? यह क्या बात हुई भला?”

तो सबने एक साथ कहा, ” अरे तुम नहीं जानते! सरवा गाय-बैल खरीद कर कसाई के हाथ बेंचता था। ठीक ही हुआ न, पाप का दंड मिलेगा ही न…”

सार्वजनिक रूप से कहने में तनिक झिझक तो होगी ही कि हम किसी के साथ हुई दुर्घटना पर हँस रहे थे, पर सच यही है कि सभी हँस पड़े थे। यदि कोई व्यक्ति लगातार पाप कर रहा हो, तो उसके साथ हुई दुर्घटना पर समाज हंसेगा ही, यह तय है। इसे आप सही कहिये या गलत, पर भारत का मूल स्वर यही है, यही है।

यह वही ग्रामीण समाज है जहाँ किसी एक व्यक्ति की विपत्ति में पूरा गाँव अपना काम धंधा छोड़ कर उसके साथ खड़ा हो जाता है। इसके लिए लोग न जाति देखते हैं न धर्म! सड़क पर कोई अपरिचित भी घायल हो जाय तो आधा गाँव उसे अस्पताल पहुँचाने जाता है। उसी समाज के लोग यदि किसी को चोट लगने पर हंसने लगें तो खोट उस व्यक्ति में होता है, समाज में नहीं।

भारतीय समाज का एक पारंपरिक गुण है कि आम जन पापियों के लिए ईश्वरीय दण्ड की प्रतीक्षा करते हैं।जनमानस में यह विश्वास युग युगांतर से बैठा हुआ है कि अपराधी को उसके कर्मों का फल भोग कर ही जाना होगा। और समाज को कभी ऐसा होता हुआ दिखता है, तो कई बार लोग प्रसन्नता भी व्यक्त करते हैं। यह भाव कभी बदल नहीं सकता, कभी भी नहीं… यह धर्मभीरुता, ईश्वरीय विधान के प्रति यह आस्था यहां की मिट्टी का गुण है। आप अपना मत बदल लीजिये, अपना सम्प्रदाय बदल लीजिये, विचारधारा बदल लीजिये, पर यह भाव आपके भीतर अवश्य बना रहेगा।

वैसे आनन्ददायक बात यह भी है कि किसी के दुख पर खुश न होने या नहीं हँसने की सीख भी केवल और केवल भारतीय समाज में ही दी जाती है। वे हम ही हैं जो ऐसी हँसी का विरोध करते हैं, अपने बच्चों को किसी की पीड़ा पर नहीं हँसने की शिक्षा देते हैं। पश्चिम का बर्बर समाज तो सदैव दूसरों को पीड़ा दे कर खिलखिलाता रहा है। वे तो निरीह मनुष्यों,पशुओं की हत्या कर के भी विभत्स हँसी हँसते हैं और इसे बुरा भी नहीं मानते।

एक बात और! “अपने किए का दण्ड अंतिम समय में भोग कर ही जाना होगा” इस बात का भय ही इस देश में अधिकांश लोगों को पाप करने से रोकता है। यह मैं पुस्तक पढ़ कर नहीं कह रहा, यह मैंने अपने आसपास में देखा, महसूस किया है। आप आधुनिक पढ़े लिखे लोगों में ध्यान से देखियेगा, जो इस भय से मुक्त हो जाता है वह लगातार पाप पर पाप करता जाता है। इसलिए लगता है कि यह भय बना रहना चाहिये। देश में चंद लाइक्स पाने के लिए जब लोग नङ्गे होने लगें तो धन या वैभव पाने के लिए तो क्या ही न कर देंगे।

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