देवांशु झा : बटेश्वर में कैसे हो रहा जीर्णोद्धार…

तीस हजार मंदिरों के ध्वंस के प्रमाण हैं। पुरातत्व विभाग स्वयं प्रमाण देता है।‌ विद्वान इतिहासकारों की पुस्तकें प्रमाण देतीं हैं। संख्या इससे अधिक होगी, कम नहीं।‌ अब मूल बात यह है कि आए दिन अपनी छाती पीट-पीटकर नरेन्द्र मोदी को गरियाने वालों को कोई कैसे समझाए कि इन भग्नावशेषों का शास्त्र सम्मत पुनरुद्धार कोई खेल नहीं है।

एक महातप है। विकट साधना। उसमें विशाल धनराशि के साथ दक्ष कलावंतों की भी आवश्यकता है। जब के के मोहम्मद कहते हैं कि भाजपा सरकार ने बटेश्वर में मंदिरों का पुनर्निर्माण नहीं करवाया तब हमें जरा ठहरकर सोचना चाहिए। क्योंकि यह न केवल आंशिक सत्य है बल्कि भिन्न परिप्रेक्ष्य में विचारणीय भी है। सरकार काम करवा रही है।‌ चंबल और बुंदेलखंड के अनेक मंदिरों के पास छोटे-मोटे जीर्णोद्धार और आगामी समय में बड़े जीर्णोद्धार की हलचल मैं देख रहा हूं।

समझने वाली बात यह है कि प्राथमिकता क्या है। अयोध्या, काशी, उज्जैन और मथुरा आदि जागृत तीर्थ या विशाल संख्या में पड़े भग्नावशेष। मैं इन दिव्य भग्नावशेषों को देखकर दुख से भर उठा हूं किन्तु इन सभी मंदिरों का पुनरुत्थान इतने कम समय में संभव नहीं है। यह किसी तरह से व्यावहारिक भी नहीं है। किन्तु इतना तय है कि इन मंदिरों का उद्धार भी भाजपा सरकार ही करेगी। किसी और से यह आशा करना निपट मूर्खता होगी। बटेश्वर की श्रृंखलाबद्ध यात्राओं पर मैंने उन अद्वितीय मंदिरों के ध्वंस से लेकर, पूर्व में उनके जीर्णोद्धार का सत्य, वर्तमान दशा और नवीन मंदिरों के पुनर्निर्माण की क्या रूपरेखा है, यह सब बताने दिखाने के प्रयास किए हैं।

पिछली यात्रा पर मैंने दिखाया था कि वहां के ध्वंसावशेषों का पुनरुत्थान क्यों महाजटिल कार्य है। इस वीडियो में यह दिखलाने का प्रयास किया है कि जिन बड़े मंदिरों का पुनर्वैभवीकरण हो रहा- वह भला किस तरह से संपन्न किया जा रहा। मैं वीडियो कमेंट बॉक्स में लगा रहा हूं। आप धैर्यपूर्वक देखें। आपको बहुत कुछ समझ में आएगा। और आप इस विराट चुनौती को भी समझ पाएंगे कि इन भूतभग्न देवालयों को पूर्व का रूप देना कोई चुटकुला नहीं है। वहां विश्वकर्मा नहीं बैठे हैं कि हाथ फेरा और नगरी बस गई।‌खैर वीडियो अवश्य देखें। स्वत: समझ सकेंगे।

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