देवेंद्र सिकरवार : लिखित भाषण बनाम प्रोम्पटर बकैती बनाम पॉलिसी
बड़ी बात है कि आज तक मोदी जी ने विरोधियों को सूट, दाढ़ी की लंबाई और टेली प्रोंपटर के बारे में बात करने के अतिरिक्त कोई घोटाला, गलत निर्णय, गलत नीति, गलत क्रियान्वयन आदि का मुद्दा उठाने का अवसर नहीं दिया।
शब्दों न मिलने पर मौन बहुत अच्छा है यह बात सत्ता के लिए पागल हो चुके कुछ भी बकवास करते विपक्षी नही समझेंगे उनकी तो भाषा ही अमर्यादित है।
तेजतर्रार सामयिक विषयों पर कटाक्ष करने वाले देवेंद्र सिकरवार जी का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कल के भाषण पर लेख…
भारतीय परंपरा में दो बातें बहुत महत्व की हैं
प्रथम, ब्रह्म के अतिरिक्त कोई पूर्ण नहीं।
द्वितीय,शब्द ब्रह्म का नाद है।
लेकिन भारत में वामपंथी, लिबरल्स और कांग्रेसी ये तीन ऐसी प्रजाति रहीं हैं जिनपर कोई नियम लागू नहीं होता, उपरोक्त दो नियम भी नहीं।
उन्हें लगता है उनका लिखा शब्द ही अंतिम सत्य है क्योंकि वे ही ब्रह्म हैं।
हकीकत ये है कि अन्य करोड़ों बकैतबाजों से भी सस्ते स्तर के ट्रोल हैं जिनका सामान्य ज्ञान का स्तर शून्य से भी नीचे ऋणात्मक है।
गांधी से लेकर मनमोहनसिंह तक लिखित भाषणों को पढ़ने की परंपरा के वाहक हैं। दयनीयता तो यह है कि मनमोहन के हिंदी भाषण ‘अरबी-उर्दू’ लिपि में लिखे जाते थे क्योंकि जनाब को देवनागरी लिपि पढ़नी भी नहीं आती थी।
कांग्रेस के वरिष्ठ और राहुल गांधी अभी तक रोमन लिपि में लिखे भाषण पढ़ते हैं और अभी भी अटकते हैं।
मायावती प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी केवल लिखित स्क्रिप्ट पढ़ती आई हैं और फिर भी अटकती रही हैं।
तो अगर तकनीक के प्रेमी मोदी लिखित भाषण के नवीनतम तकनीकी रूप ‘टेलीप्रोम्पटर’ का प्रयोग करते हैं तो गलत क्या है?
प्रधानमंत्री अगर टेलीप्रॉम्प्टर के खराब हो जाने पर भाषण को सहसा रोक देते हैं तो गलत क्या हुआ इसमें?
वे प्रधानमंत्री हैं राहुल गांधी नहीं कि कुछ भी बोल दें।
वे प्रधानमंत्री हैं, उनके शब्द पॉलिसी बन जाते हैं अतः चुप हो जाना ही उचित है।
उन्होंने चुप रहना बेहतर समझा बजाय पिछत्तीस जैसी नई संख्या के आविष्कार के।
राहुल ट्विटर पर ..रता है,”मोदी टेलीप्रॉम्प्टर के बिना एक शब्द नहीं बोल सकते।”
बिल्कुल ठीक कहा।
वे तुम्हारी तरह आँय बांय शाय बकने की जगह मौन हो जाना पसंद करते हैं।
उचित भी यही है क्योंकि शब्द ब्रह्म का नाद है और उसका उचित प्रयोग होना चाहिए।
लेकिन मूर्खों के लिए..
‘शब्द सांड है चाहे जिस पर चढ़ा दो।’