कड़वा सच : अवार्ड वापसी गैंग.. क्या सच में अवार्ड वापस किये गए..?

भारत में अनेक पुरस्कार विजेताओं का मानना है कि उन्होंने सरकार से जो पुरस्कार जीता है उसको वापस करना वह सरकार के खिलाफ विरोध का एक रूप है। 

कुछ साल पहले इसकी शुरुआत कथित तौर पर ‘बढ़ती असहिष्णुता’ पर हुई जब फिल्म और साहित्य जैसे विभिन्न क्षेत्रों के विपक्ष समर्थक लिबरलों ने पीएम मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को अपना पुरस्कार लौटाने का फैसला किया। तब से यह चलन बन गया है। वैसे यह भी पब्लिसिटी का नया तरीका बन गया है।

इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार विशाल पाण्डेय लिखते हैं कि “1954 से साहित्य अकादमी पुरस्कार की शुरूआत हुई थी. पिछले 66 सालों में लगभग 1900 साहित्य पुरस्कार दिए गए हैं और मात्र 39 लोगों ने ही अवॉर्ड वापसी का ऐलान किया. हर साल लगभग 2,400 लेखक, साहित्यकार और विद्वान साहित्य के चारों पुरस्कारों की चयन प्रक्रिया में शामिल होते हैं.

मोदी सरकार में हुई शुरुआत

2015 में इसकी शुरुआत में लेखक अशोक वाजपेयी ने अपना साहित्य अकादमी का पुरस्कार लौटाने का ऐलान किया था. जिसके बाद देश भर के 39 साहित्यकारों ने साहित्य अकादमी से जुड़े अवॉर्ड को वापस करने का ऐलान किया. इस लिस्ट में अशोक वाजपेयी के साथ नयनतारा सहगल, उदय प्रकाश, कृष्णा सोब्ती, मंगलेश डबराल, काशीनाथ सिंह, राजेश जोशी, केकी दारूवाला, अंबिकादत्त, मुनव्वर राणा, खलील मामून, सारा जोसेफ, इब्राहिम अफगान, अमन सेठी जैसे बड़े नाम शामिल थे.

उस वक्त ये सभी साहित्यकार और लेखक मीडिया की सुर्खियों में थ लेकिन क्या कभी किसी ने यह जानने की कोशिश भी की कि वास्तव में अवॉर्ड वापस हो सकता है?

जिन लोगों ने अवॉर्ड वापस का ऐलान किया था, क्या उन्होंने अपने अवॉर्ड वापस किए?

स्मृति चिन्ह और अवॉर्ड की धनराशि को क्या जमा करने की कोशिश की? या फिर सिर्फ मीडिया की सुर्खियां ही बटोरने में लगे हुए थे।

अवॉर्ड वापसी की सच्चाई

आगे वे लिखते हैं कि

” मैं इस पूरे मामले की जानकारी के लिए दिल्ली के साहित्य अकादमी के मुख्यालय पर गया. जहां मेरी मुलाकात साहित्य अकादमी के सेक्रेटरी के श्रीनिवासव राव से हुई. मैंने साहित्य अकादमी से अवॉर्ड वापसी का ऐलान करने वाले लेखकों और साहित्यकारों की पूरी सूची मांगी. अवॉर्ड वापसी का ऐलान करने वाले लेखकों की लिस्ट का अध्ययन करने पर कई चौंकाने वाले खुलासे हुए और अवॉर्ड वापसी करने वालों की एक एक सच्चाई सामने आई.

अवॉर्ड वापसी का ऐलान करने वाले 39 साहित्यकारों में से 26 ने अपना स्मृति चिन्ह वापस नहीं किया, सिर्फ 13 ने ही स्मृति चिन्ह वापस किए. 4 लेखकों ने ना तो स्मृति चिन्ह ही वापस किया और ना ही अवॉर्ड की धनराशि, यानि सिर्फ अवॉर्ड वापसी का ऐलान किया. अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इनके कितने चेहरे हैं, पब्लिक में अवॉर्ड वापसी का ऐलान करते हैं लेकिन सच्चाई बहुत अलग होती है. सच्चाई यह है कि इन्हें अपने अवॉर्ड से बहुत लगाव होता है लेकिन प्रतीकात्मक विरोध दर्ज कराने के चलते ये इतने महत्वपूर्ण अवॉर्ड का सम्मान भूल जाते हैं.

देश में 2014 लोक सभा चुनाव के बाद अवॉर्ड वापसी के ऐलान की एक नई परंपरा की शुरूआत हुई. जिसे अवॉर्ड वापसी गैंग के नाम से भी जाना जाता है. आपको याद होगा कि 2015 में उत्तर प्रदेश के दादरी और कर्नाटक की घटना के बाद अचानक से कुछ खास विचारधारा के साहित्यकार और लेखकों ने अवॉर्ड वापसी का ऐलान किया था. ये कुछ खास चेहरे बेहद आहत दिखाई दे रहे थे. इनके मुताबिक देश में असहिष्णुता बढ़ रही थी और उसके विरोध में अपना अवॉर्ड वापस करने लगे.

जो दिखता है वो होता नहीं?

कुल मिलाकर यह समझा जा सकता है कि जो दिखता है वो होता नहीं है. कुछ खास एजेंडे के लिए कई लोग साहित्य अकादमी जैसे बड़े सम्मान को वापस करने का ऐलान करते हैं लेकिन पूरी तरह से कोई भी नियम फॉलो नहीं करते हैं. यह अवॉर्ड उनके लेखन के लिए दिया गया है, इन अवॉर्ड का किसी सरकार के पक्ष या विरोध से क्या मतलब हो सकता है ?

 साहित्यकार, लेखक हमेशा देश और समाज को नया रास्ता दिखाते हैं लेकिन क्या इस तरह का अवॉर्ड वापसी एजेंडा हमारे समाज के लिए ठीक है. यह विचार और बहस का विषय है.

अवार्ड वापसी गैंग कहकर PM मोदी ने लगाई थी फटकार

अलवर कांड पर अवॉर्ड वापसी गैंग क्यों चुप बैठा है- पीएम मोदी

पीएम ने कहा, ”यह हमारी ही सरकार है जिसने बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के लिये फांसी तक की सजा का प्रावधान किया है. महिला हितों और महिला सुरक्षा के प्रति हम पूरी तरह संवेदनशील हैं, लेकिन महिला सुरक्षा को लेकर कांग्रेस किस तरह का काम कर रही है, वह देश आज भी देख रहा है.” मोदी ने राजस्थान के अलवर में गत 26 अप्रैल को एक विवाहिता से सामूहिक बलात्कार की वारदात का जिक्र करते हुए कहा कि उन दरिंदों को पकड़ने के बजाय वहां की पुलिस, वहां की कांग्रेस सरकार चुनाव में नुकसान होने के डर से इस केस को ही छुपाने और दबाने में जुट गये. यही कांग्रेस के न्याय की सच्चाई है. उन्होंने कहा कि देश में असहिष्णुता बढ़ने की बात कहकर जो लोग अवार्ड वापस कर रहे थे, उनसे पूछना चाहता हूं कि अलवर कांड पर अवॉर्ड वापसी गैंग क्यों चुप बैठा है.”

 


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