सन 1969 की इंदिरा गांधी की नकल का खतरा उठाएंगे राहुल गांधी ? -सुरेंद्र किशोर- 

क्या राहुल गांधी सन 1969 की इंदिरा गांधी की भूमिका को दोहराएंगे ?

तब इंदिरा गांधी ने कांग्रेस में महा विभाजन कर दिया था। कांग्रेस के बुजुर्गों की गिरफ्त से खुद को आजाद कर लिया था। उन्होंने अपने बल पर 1971 के लोक सभा चुनाव में पूर्ण बहुमत पा लिया था।

जानकार सूत्रों के अनुसार कुछ नेता, बुद्धिजीवी व मीडियाकर्मी राहुल गांधी को पार्टी में विभाजन की सलाह दे रहे हैं।

यह मालूम करने का कोई जरिया नहीं है कि खुद राहुल गांधी इसके लिए कितना तैयार हैं।या तैयार नहीं हैं।

इंदिरा गांधी ने तब कांग्रेस के पुराने नेताओं से मुक्ति पा ली थी।

यदि राहुल कोशिश भी करेंगे तो लगता तो नहीं है कि उस विधि से इंदिरा गांधी वाली उपलब्धि हासिल कर पाएंगे।

 

तब प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के पास ‘गरीबी हटाओ’ का लोक लुभावन नारा था।राहुल के पास कौन सा नारा है ?

उससे पहले प्रधान मंत्री श्रीमती गांधी ने 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था।

उससे गरीबों व आम लोगों को लगा था कि अब उन्हें भी बैंकों से कर्ज आसानी से मिल जाएंगे।

साथ ही, इंदिरा गांधी ने पूर्व राजाओं के प्रिवी पर्स और उनके विशेषाधिकार खत्म कर दिए थे।इससे उनकी वाहवाही हो रही थी।

इंदिरा ने यह प्रचार किया कि कांग्रेस के पुराने नेता इन प्रगतिशील व गरीबपक्षी कदमों के खिलाफ हैं।

सोवियत पक्षी कम्युनिस्टों ने इंदिरा की सार्वजनिक रूप से तब खूब वाहवाही की और 1969 से 1971 तक लोक सभा में समर्थन करके इंदिरा सरकार को गिरने से बचाया भी। खूब हवा भी बनाई।

इंदिरा का वादा भले झूठा ही हो ,पर गरीब लोग व आम जनता इंदिरा के झांसे में आ गए थे।क्योंकि इंदिरा की सिर्फ बात ही नहीं थी,बल्कि उनके पास बैंक व प्रिवी पर्स के ठोस उदाहरण भी थे।

अब आज के राहुल गांधी व सोनिया गांधी की राजनीति पर गौर करें।

आम लोगों को आकर्षित करने वाले कौन से नारे सोनिया-राहुल के पास हैं ?

उनके पास सरकार भी नहीं है कि वे कोई कदम उठा पाएंगे।

जब सरकार थी तो वे क्या कर रहे थे,वह बात भी छिपी हुई नहीं है ।

उल्टे जिन कारणों से 2014 और 2019 के लोक सभा चुनावों में कांग्रेस की अभूतपूर्व दुर्गति हुई,वे कारण अब भी मौजूद हैं।

तीन मुख्य कारण हैं–

1-मनमोहन सरकार में घोटालांे-महा घोटालों की       भरमार हो गई थी। लोगों में धारणा बनी कि घोटालेबाजों को शीर्ष नेतृत्व का समर्थन हासिल है।वैसे गंभीर आरोप इंदिरा गांधी पर नहीं थे।

2 – 2014 लोक सभा चुनाव के बाद ए.के. एंटोनी कमेटी ने कहा था कि ‘‘मतदाताओं को लगा कि कांग्रेस अल्पसंख्यकों की ओर झुकी हुई है।’’

इस स्थिति मेें आज क्या परिवर्तन आया है ?

उल्टे कांग्रेस ने सिद्धू को सिर पर चढ़ा लिया जिसे अमरिंदर सिंह देशद्रोही कहते हैं।

कन्हैया कुमार वगैरह के खिलाफ तो जे.एन.यू. अफजल गुरू मामले में कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल हो चुका है। यह मुद्दे कांग्रेस के खिलाफ भाजपा के प्रचार के लिए बहुत अनुकूल हैं।

देश में अभी बाहर-भीतर से जो खतरे हैं,उनका कांग्रेस किस तरह मुकाबला करेगी जिसके नेताओं के पास समय आने पर राष्ट्रद्रोहियों के खिलाफ बोलने के लिए एक शब्द भी नहीं रहता  है।बल्कि कांग्रेस के कुछ नेताओं के बयान पाक में पसंद किए जाते हैं।

3.- राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता,वक्तृृत्व क्षमता व सोच-समझ की क्षमता को लेकर अनेक लोग संतुष्ट नहीं हैं।

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इसलिए कांग्रेस से बुजुर्गों को निकाल बाहर करने की जगह उनसे सलाह मशविरा करते रहने में ही कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व व देश का भला है।

क्योंकि कांग्रेस का जिग्नेश,सिद्धू व कन्हैया जैसों पर भरोसा करना खतरा उठाना ही है।

 

 

 

 

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