न वामपंथी थे.. न नास्तिक थे भगतसिंह, राष्ट्रवाद की भावना कम्यूनिस्ट पार्टी की विचारधारा में निषिद्ध

किसी विचारधारा या किसी नेता के व्यक्तित्व से प्रभावित होने मात्र से भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी को वामपंथी घोषित कर देना इस महान बलिदानी के चरित्र से अन्याय ही होगा।
शहीद भगत सिंह का परिवार उन्हें नास्तिक नहीं मानता। परिवार के सदस्यों का कहना है कि शहीद-ए-आजम अंधविश्वास और भगवान तथा किस्मत के नाम पर लोगों के अकर्मण्य बन जाने के विरोधी थे, लेकिन नास्तिक नहीं थे।
भगतसिंह द्वारा लाहौर सेंट्रल जेल में लिखी गई डायरी में उर्दू में लिखी कुछ पंक्तियों से भी इस बात का अहसास होता है कि भगतसिंह कई मौकों पर भगवान के अस्तित्व को बेशक नकारते रहे हों, लेकिन वे नास्तिक नहीं थे।
वे दुनिया के एक लेख में आगे लिखा गया है कि शहीद-ए-आजम के पौत्र (भतीजे बाबरसिंह संधू के पुत्र) यादविंदरसिंह संधू ने बातचीत में कहा कि उनका परिवार हमेशा से आर्य समाजी रहा है। उनके दादा भगतसिंह भगवान, किस्मत तथा कर्मों के फल के नाम पर लोगों के अकर्मण्य बन जाने के खिलाफ थे, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह नास्तिक थे।
चिंतक, विश्लेषक वरिष्ठ पत्रकार तृषार भगतसिंह के कम्युनिस्ट होने का खंडन तर्कों के साथ करते हुए लिखतें हैं  कि जब भी भी हम भारतीय क्रांतिकारियों के विषय में पढ़ते हैं तो एक बात हमारा ध्यान खींचती है कि भगत सिंह लेनिन से प्रभावित थे और अपने जीवन की अंतिम क्षणों में वे क्लारा झेत्किन लिखित लेनिन के संस्मरण पढ़ रहे थे।
लेकिन सिर्फ इन्हीं कारणों से शहीदे आज़म को वामपंथी विचारधारा के वृत्त में शामिल कर देना उपयुक्त नहीं है। किसी विचारधारा या किसी नेता के व्यक्तित्व से प्रभावित होने मात्र से भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी को वामपंथी घोषित कर देना इस महान बलिदानी के चरित्र से अन्याय ही होगा।
सुभाष चंद्र बोस, बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल जैसे भारत के अग्रणी स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने जीवन के किसी कालखंड में लेनिन और रूसी क्रांति की सराहना की थी।
वीर विनायक दामोदर सावरकर भी 1909 में लेनिन से प्रत्यक्ष मुलाकात के पश्चात लेनिन के विचारों से प्रभावित हुए थे। वीर सावरकर नियमित रूप से लेनिन द्वारा लिखित लेख पढ़ते थे।
एक तर्क यह भी दिया जाता है कि भगत सिंह ने कम्युनिस्ट विचार से प्रभावित होकर हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के नाम में ‘सोशलिस्ट’ शब्द जोड़ने का प्रस्ताव रखा। यह सच में हास्यास्पद तर्क है क्योंकि भगतसिंह ने संगठन के नाम में सोशलिस्ट शब्द का प्रस्ताव रखा था, कम्युनिस्ट शब्द का नहीं।
और एक बात यह भी है कि जब संगठन के नाम में सोशलिस्ट शब्द जोड़ा गया तब उसके कमांडर ‘पंडित’ चंद्रशेखर आज़ाद थे। यदि सोशलिस्ट शब्द का प्रयोग वामपंथी होने का प्रमाण है तो हिटलर भी वामपंथी हुआ क्योंकि उसकी नाज़ी पार्टी का नाम जर्मन सोशलिस्ट वर्कर्स पार्टी था।
तृषार वैश्विक वामपंथी पार्टियों की सोच व भगतसिंह को नमन किए जाने के संदर्भ में आगे लेख में स्पष्ट करते हैं कि कार्ल मार्क्स के अनुसार “धर्म जनता का अफीम है और राष्ट्रवाद की भावना कम्यूनिस्ट पार्टी की विचारधारा में निषिद्ध है।” इसका सीधा-सरल-सा अर्थ यही है कि कोई कम्युनिस्ट होते हुए राष्ट्रवादी देशभक्त नहीं हो सकता और एक कम्युनिस्ट कभी भी राष्ट्रवादी नेता की हत्या का प्रतिशोध लेने के अभियान में शामिल नहीं होगा।
क्या आपने कभी सोचा है कि भगत सिंह की फाँसी के पश्चात कितने वैश्विक वामपंथी नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी थी?

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