चाहे तो मुझे सजा दे दें, लेकिन चुनाव आयोग को संदेह से मुक्ति दिलाएं: निर्वाचन आयुक्त
निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने एक मसौदा हलफनामे में कहा था कि हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों के कुछ चरणों को कोरोना वायरस महामारी के चलते स्थगित करने से शेष चरणों के चुनाव राष्ट्रपति शासन के तहत कराने की नौबत आ सकती थी और ऐसा होने पर आयोग पर एक दल के खिलाफ दूसरे दल का पक्ष लेने के आरोप लगते। कुमार ने इस हलफनामे को मद्रास उच्च न्यायालय और फिर उच्चतम न्यायालय में पेश करने की योजना बनाई थी।
सूत्रों ने कहा कि कुमार ने मद्रास उच्च न्यायालय की उन टिप्पणियों के जवाब में यह हलफनामा दायर करने की योजना बनाई थी, जिनमें अदालत ने कहा था कि कोविड-19 मामलों में तेज वृद्धि के लिये निर्वाचन आयोग अकेले जिम्मेदार है और उसके जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ हत्या के आरोपों में मामला दर्ज किया जा सकता है।
यह मसौदा हलफनामा भारत निर्वाचन आयोग की ओर से मद्रास उच्च न्यायालय में पेश अर्जी और उच्च न्यायालय की इन टिप्पणियों पर रोक लगाने के लिये उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका का हिस्सा नहीं था। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने आयोग की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उच्च न्यायालय की मौखिक टिप्पणियां ”आधिकारिक न्यायिक रिकॉर्ड” का हिस्सा नहीं हैं, लिहाजा उन पर रोक लगाने का कोई सवाल पैदा नहीं होता। निर्वाचन आयोग के सूत्रों ने बताया कि वकील की सलाह के अनुसार कुमार की ओर से ”अतिरिक्त हलफनामा” पेश किया जाना फिलहाल तकनीकी रूप से संभव नहीं था।
मसौदा हलफनामे में कुमार ने कहा कि चुनाव समय पर संपन्न नहीं कराने से जटिलताएं पैदा होती और हो सकता था कि शेष चरणों के चुनाव राष्ट्रपति शासन के दौरान कराने पड़ते, जिससे आयोग पर एक दल के खिलाफ दूसरे दल का पक्ष लेने के आरोप लगाए जाते। उल्लेखनीय है कि चुनाव संपन्न नहीं होने और विधानसभा का कार्यकाल पूरा हो जाने की सूरत में किसी राज्य या केन्द्र शासित प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है।