भूतकाल से लेकर वर्तमान,भविष्य तक बता देते है..

कोरबा। आपके पास आपकी जन्मतारीख नही है तो आप अपने संतान की तारीख से अपना भुत, वर्तमान और भविष्यकाल मात्र 15 से 20 मिनट के भीतर जान सकते हैं। ज्योतिष के क्षेत्र में लगभग 3 दशक से जुड़े प्रभात खरे का आंकलन अपने आप में अद्भुत है।
राहु कोई ग्रह नहीं है न ही इसका आकाश में स्थान है। अगर इसे वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो राहु उत्तरी ध्रुव को माना जाता है व केतु दक्षिणी ध्रुव को। बिलासपुर के ज्योतिष प्रभात खरे (98261-94041)का मानना है कि दोनों ध्रुवो के से निकलने वाली तरंगे 24 घंटो में कम से कम दो बार सर्पिलाकार परिधि में टकराती है और इसके spark से निकलने वाली तरंगो से सभी प्रभावित होते है। जिस राशि में हो उस राशि ग्रह के अनुसार ही इसका फल मिलता है। श्री खरे कहते हैं कि जीवन में अचानक घटनाओं के घटने के योग राहु के कारण ही होते हैं। राहु हमारे उस ज्ञान का कारक है, जो बुद्धि के बावजूद पैदा होता है।जैसे अचानक कोई घटना देखकर कोई आयडिया आ जाना या अचानक उत्तेजित हो जाता। स्वप्न का कारक भी राहु है।धरती पर हम धूप में खड़े हैं तो हमारी छाया भी बन रही है। इसी तरह प्रत्येक ग्रह और नक्षत्रों की छाया भी इस धरती पर पड़ती रहती है। हमारी छाया तो बहुत छोटी होती है लेकिन इन महाकाय छाया का धरती पर असर गहरा होता है।जब-जब राहु केतु के स्थितियां बदलती है, पृथ्वी पर कुछ न कुछ बदलाव जरूर आता है। राहु अच्छा है तो व्यक्ति दौलतमंद होगा। कल्पना शक्ति तेज होगी। राहु के अच्छा होने से व्यक्ति में श्रेष्ठ साहित्यकार, दार्शनिक, वैज्ञानिक या फिर रहस्यमय विद्याओं के गुणों का विकास होता है। इसका दूसरा पक्ष यह कि इसके अच्छा होने से राजयोग भी फलित हो सकता है। आमतौर पर पुलिस या प्रशासन में इसके लोग ज्यादा होते हैं। केतु का शुभ होना अर्थात् पद, प्रतिष्ठा और संतानों का सुख। यह मकान, दुकान या वाहन पर ध्वज के समान है। शुभ केतु से व्यक्ति का रूतबा कायम रहकर बढ़ता जाता है। ग्रहों के बारे चर्चा के दौरान वे बताते हैं कि चंद्रमा के पात बिंदु (राहु-केतु) 6793.5 दिन (अर्थात 18.6 वर्ष) में वक्र गति से एक भगण (चक्कर) पूरा करते हैं। एक वर्ष में ये 19.21 Degree” एवं एक दिन में 3′ 11″  की वक्र गति से क्रान्तिवृत्त पर संचरण करते हैं। अमावस्या अथवा पूर्णिमा को यदि ये पात बिंदु (राहु अथवा केतु) सूर्य के पास हों तो क्रमश: सूर्यग्रहण एवं चंद्रग्रहण प़डते हैं। आर्यभट्ट ने भी कहा है – च्च्छादयति शशि: सूर्य शशिनं महती च भूच्छायाज्ज्। सूर्यग्रहण एवं चंद्रग्रहण तभी संभव होते हैं, जब सूर्य एवं चंद्रमा का भोगांशीय (Longitudinalद्य) (पूर्व-पश्चिम) अंतर शून्य अथवा 1800 के आसपास हो जाए, चँूकि सूर्य एवं चंद्रमा का भोगांशीय (पूर्व-पश्चिम) अंतर तो प्रत्येक अमावस्या को शून्य एवं पूर्णिमा को 1800 हो जाता है परन्तु उनका शरीय (उत्तर-दक्षिण) अंतर प्रत्येक अमावस्या एवं पूर्णिमा को शून्य नहीं होता है अत: सूर्यग्रहण एवं चंद्रग्रहण प्रत्येक अमावस्या एवं पूर्णिमा को नहीं प़डते हैं।ग्रहों से उत्पन्न होने वाले प्रभावों का मानव जीवन पर पड़ने वाले सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव के बारे में वे कहते हैं कि ब्रह्मांड की अति सूक्षम हलचल का प्रभाव भी पृथ्वी पर पडता है,सूर्य और चन्द्र का प्रत्यक्ष प्रभाव हम आसानी से देख और समझ सकते है,सूर्य के प्रभाव से ऊर्जा और चन्द्रमा के प्रभाव से समुद में ज्वार-भाटा को भी समझ और देख सकते है,जिसमे अष्ट्मी के लघु ज्वार और पूर्णमासी के दिन बृहद ज्वार का आना इसी प्रभाव का कारण है,पानी पर चन्द्रमा का प्रभाव अत्याधिक पडता है।मनुष्य के अन्दर भी पानी की मात्रा अधिक होने के कारण चन्द्रमा का प्रभाव मानव मस्तिष्क पर भी पडता है। आगे वे बताते है कि संसार का प्रत्येक अक्षर एक मंत्र है,प्रत्येक वनस्पति एक औषधि है,और प्रत्येक मनुष्य एक अपना गुण रखता है,आवश्यकता पहचानने वाले की होती है।ज्योतिष एक विज्ञान है जो न केवल भूत, भविष्य और वर्तमान की जानकारी देता है बल्कि जीवन को सुखी और समृद्धिशाली बनाने का अचूक उपाय भी बताता है। जन्मपत्रिका के इन घरों में ग्रहों की अच्छी-बुरी स्थिति के अनुसार ही हमारा जीवन चलता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह अशुभ स्थिति में हो तो उसे कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अशुभ फल देने वाले ग्रहों को अपने पक्ष में करने के लिए कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं. ज्योतिष के अनुसार ग्रहों से शुभ प्रभाव प्राप्त करने के लिए संबंधित ग्रह का रत्न पहनना भी एक अचूक उपाय है।

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