राजीव मिश्रा : भिड़ंत में भारत की सुपीरियर क्षमता ने भारत की पाकिस्तान से होने वाली परंपरागत तुलना को समाप्त कर दिया
आपको यह कार्टून याद है जो मंगलयान की सफलता के बाद न्यूयॉर्क टाइम्स में छपा था? उसमें एक भारतीय गरीब किसान को अपनी गाय के साथ जाकर एलीट स्पेस क्लब का दरवाजा खटखटाते हुए दिखाया गया था.
आज विश्व में भारत के प्रति एक द्वेष और दुर्भावना दिखाई देती है. यह अच्छा तो नहीं लगता लेकिन यह प्रगति की कीमत है. आप तरक्की भी करें, और कोई पहले दिन से आपकी तारीफ भी करे यह होता नहीं है. और ऐसा नहीं है कि यह हिंसा और यह द्वेष सिर्फ भारतीयों के विरुद्ध है, उनके अपने देश के भी जो लोग दूसरों से बेहतर हैं, अधिक योग्य और उत्पादक हैं, अधिक सक्षम हैं उनके प्रति भी यह घृणा व्यापक है. एलोन मस्क हो ज्यॉफ बेजॉस, जे के रॉलिंग हो या क्लिंट ईस्टवुड…जो कोई भी दूसरों से बेहतर या असाधारण है और जो उनकी मीडियोक्रिटी के पैरामीटर पर नहीं आता वह घृणा बटोरता है. आज के दिन में पश्चिमी सभ्यता का यह सबसे बड़ा और असाध्य रोग है.
प्रसिद्ध लेखक जॉर्ज गिल्डर्स अपनी पुस्तक The Israel Test में लिखते हैं कि किसी को जज करने का उनका एक पैमाना है … जो कोई भी योग्यता और सक्षमता से घृणा करता है वह इजरायल से घृणा करता है और जो भी इनका सम्मान करता है वह इजरायल का सम्मान करता है. उपलब्धियों और क्षमता के संदर्भ में पर हम इजरायल के स्तर पर अभी तक नहीं पहुंचे हैं, लेकिन जहां तक घृणा बटोरने की बात है, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भारत और इजरायल एक समान घृणा का पात्र है. और यह बात मुझे एक तरह से आश्वस्त भी करती है कि हम सही रास्ते पर हैं.
आज से पंद्रह बीस वर्ष पहले तक चीन का मजाक बनता था और उसकी बात होते ही उसकी गरीबी और अकाल की ही चर्चा होती थी. आज चीन में दुनिया में सबसे अधिक मिलियनर्स हैं, किसी भी पश्चिमी यूनिवर्सिटी में चीनी स्टूडेंट्स का बोलबाला है, अमीर चीनी आज दुनिया में एक क्लीशे हैं, हॉलीवुड शोज़ में चीनी यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स भी फेरारी से चलते दिखाई जाते हैं. किसी भी टूरिस्ट स्पॉट पर सबसे अधिक चीनी टूरिस्ट दिखते हैं, चीनी महिलाएं प्रादा की ड्रेस पहने और लुइ विटन की हैंडबैग लिए दिखाई देती हैं. पश्चिम की सारी घृणा और तिरस्कार के बावजूद चीन ने एक पीढ़ी में वह समृद्धि हासिल की जिसे दुर्भावना और ईर्ष्यग्रस्त पश्चिमी समाज इग्नोर नहीं कर सकता.
भारत ने पिछले दशक में जो प्रगति और आत्मनिर्भरता हासिल की है उसी अनुपात में पश्चिम में भारत के प्रति घृणा भी बढ़ी है. लेकिन आपको उसमें ईर्ष्या की गंध सूंघने में अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती. अभी पाकिस्तान के साथ हुई भिड़ंत में भारत की सुपीरियर क्षमता ने भारत की पाकिस्तान से होने वाली परंपरागत तुलना को समाप्त कर दिया है. सोशल मीडिया के नफ़रतियों को यह स्वीकारने में समय लगेगा लेकिन उससे फर्क नहीं पड़ता. हम सही राह पर हैं और अगर हमने कोई सेल्फ गोल नहीं किया तो आने वाली पीढ़ी पूरी दुनिया में सर उठा कर जी सकेगी इसमें मुझे कोई शंका नहीं है.
