डॉ. पवन विजय : बागेश्वर बाबा.. चमत्कार सस्ता शब्द,यह व्यक्ति का पौरुष और साधना है जो असम्भव को संभव बनाता है
वह इसलिए प्रणम्य हैं कि उन्होंने मीडिया ट्रायल और कम्युनिस्ट गिरोहों से दबे हुए समाज का आत्म विश्वास वापस लौटा दिया। एक अट्ठाइस साल के युवक की प्रज्ञा और दूर दर्शिता ही है जिसने सेवा को धर्म पालन के रूप में स्थापित किया।
पुनः लिख रहा हूं, पुनः इस चित्र को निहारिए।
यह चित्र कितना उज्ज्वल है, इसके जाने कितने आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और समाजशास्त्री निर्वचन हैं किंतु एक शब्द में कहूं तो केवल वह है वात्सल्य जो संतान अपने जनक/जननी के बीच होता है। इस बिटिया को विदा करते समय आचार्य जी का हृदय निश्चित रूप मातृ स्वरूप में बदल कर आर्द्र हो गया होगा पर एक पिता के जैसी जिम्मेदारी उन्हे रोने नही दे रही होगी। वह कितने पुण्य के भागी हैं कि बिना सांसारिक हुए इन पुत्रियों के एक साथ माता पिता हो गए।
सूरदास जी जन्मांध थे, कृष्ण भक्ति काव्य की रचना को यदि तुम्हारे शब्दों में कहें तो यह चमत्कार नही तो और क्या है? जिसे तुम चमत्कार कहते हो वह बहुत सस्ता सा शब्द है, यह व्यक्ति का पौरुष और साधना है जो असम्भव को संभव बनाता है। आचार्य जी के कर्म को चमत्कार न कहकर साधना का परिणाम कहा जाए तो बेहतर रहेगा।
आचार्य धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री इसलिए प्रणम्य नही हैं कि उन्होंने किसी के मन की बात बता दी बल्कि वह इसलिए प्रणम्य हैं कि उन्होंने सामाजिक मर्यादाओं को स्थापना की। कई बार मीडिया ने उन्हें पूज्य शंकराचार्य से लेकर अन्य विषयों पर उग्र हो जाने को उकसाया पर उन्होंने अपनी मर्यादा नही छोड़ी। वह इसलिए प्रणम्य हैं कि अपने देश और धर्म को लेकर धवल भावों को हमेशा आगे रखा। वह इसलिए प्रणम्य हैं कि जो कहा सो किया, धरातल पर इतनी मुखरता के साथ कार्य करने वाला संत निश्चित रूप से आदरणीय है।
वह इसलिए प्रणम्य हैं कि उन्होंने मीडिया ट्रायल और कम्युनिस्ट गिरोहों से दबे हुए समाज का आत्म विश्वास वापस लौटा दिया। एक अट्ठाइस साल के युवक की प्रज्ञा और दूर दर्शिता ही है जिसने सेवा को धर्म पालन के रूप में स्थापित किया।
और आखिर में वह इसलिए प्रणम्य हैं कि उन्होंने अपने तर्क, साधना और पुरखों से प्राप्त पूंजी को सेवा का साधन समझा।
जय हो बागेश्वर धाम सरकार की।।
