पवन विजय : अमिताभ-सचिन तेंदुलकर.. धर्म आपकी रीढ़ है, उसे बदल कर आप केंचुआ हो जाते हैं

हरिवंश राय बच्चन को तेजी सूरी से विवाह के बाद उनके रिश्तेदारों/ संबंधियों का एक बड़ा तबका उन्हें स्वीकार न कर सका। बच्चन जी हमेशा अपने जन्मस्थान, अपने शहर और अपने भाई बंधुओं के प्रति संवेदनशील रहे पर निकटस्थ लोगों के बड़े कड़वे अनुभव थे उनके पास। हरिवंश जी को जब बालक हुआ तो रिश्तेदारों ने उसका नाम बच्चू सूर रखा और तंज किया उपहास उड़ाया, लेकिन जब वह बालक जब बड़ा हुआ तो उसकी चमक से इलाहाबाद क्या , पूरा देश चौंधिया गया।

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हरिवंश राय बच्चन किसी से लड़ने नही गए बल्कि अपनी पूरी क्षमता और साधना उस लड़के के निर्माण में लगा दिया। शायद यही कारण था कि अमिताभ के प्रति उनका मोह और आग्रह जबरदस्त था।

किसी पर तंज करने के बाद यदि वह उसकी प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है तो समझो तुम्हारा तंज तुम पर बहुत भारी पड़ने वाला है। अमिताभ ने बाद में अपने पैतृक जगह से अपना नाता तोड लिया। लोग भले ही उन्हें कुछ कहें पर यह सच है कि आपकी सफलता से सबसे ज्यादा कोई चिढ़ता है तो आपके अपने लोग और रिश्तेदार। वह मुफ्त में आपकी रोटी तोड़ना और आपको दूसरों के सामने तुच्छ बताते हुए अपनी उच्चता का जन्मजात अधिकार समझते हैं। जब आप उन्हें कुछ सिखाना समझाना चाहें तो उल्टा वही आपको ज्ञान देने पर उतारू हो जाते हैं, मानों आपको कुछ नही पता।

ये वो लोग हैं जो आपका ही खून पीकर पोषित होंगे, और कहेंगे कि हमने मेहनत की मुंह डुलाया मेरी आंतों ने पचाया, आपका क्या योगदान! आपने तो ढंग से अपना खून भी ना दिया।

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ऐसे लोग जब किसी मुसीबत में फंसते हैं तब एक यूनिट खून देने वाला भी कोई नही मिलता।

टीवी में दिखा रहा कि अमिताभ जिस स्कूल में पढ़े वह जर्जर हो गया, लोगों में गुस्सा है। मतलब अमिताभ सबका पोंछने जाएं, जितना कमाया सब गांव वालों में बांट दें और खुद नंगे होकर निकल लें तो जयकार होगी नही तो अमिताभ को गरियाया जाएगा।

वाह रे दुनिया, खुद कुछ नही करना और जो कर्मशील है उसे इस बात पर कोसना कि वह अपने लिए क्यों कमा रहा है, वह आगे कैसे बढ़ गया, वह निकम्मा क्यों नही हुआ।

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आज विनोद कांबली को लेकर वामपंथी और मूर्ख लोग सचिन को ट्रोल कर रहे कि सचिन स्वार्थी हैं। सचिन ने अपने कर्म को अच्छे तरह से किया, उसका फल उन्हें मिला और जब कर्म करना था तब विनोद दारू, लड़की, अय्याशी में डूबे थे उसका कर्म फल वह भोग रहे हैं।

कांबली ने अपना धर्म बदल लिया, लालच में ईसाई हो गए, क्या मिला? तीस हजार मासिक बीसीसीआई की पेंशन न होती तो कहीं भीख मांग रहे होते। धर्म आपकी रीढ़ है, उसे बदल कर आप केंचुआ हो जाते हैं। कांबली केंचुआ हो चुके हैं। उनकी यह स्थिति हम लोगों को दुःखी करती है।

उन्हें अब एक ही चीज बचा सकती है। राम की शरण में वापस आ जाएं और शेष जीवन प्रभु की सेवा में लगाएं।

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