सुरेंद्र किशोर : प्रामाणिक कार्यकर्ताओं के लिए राजनीति में दिनानुदिन जगह कम होती जा रही है
कल एक निजी टी.वी.चैनल पर मुझे एक अभूतपूर्व जानकारी मिली।
कोई कह रहा था कि एक खास पार्टी के नेताओं ने हाल में अपने दल के सदस्य बनाने के काम में प्रायवेट एजेंसी को भाड़े पर लगा दिया था।
यानी, उस दल में ऐसे निःस्वार्थी कार्यकताओं की कमी पड़ रही है जो सदस्यता अभियान चलाएं।
दरअसल कार्यकताओं, खासकर प्रामाणिक कार्यकर्ताओं के लिए अनेक दलों में ‘‘राजनीतिक भविष्य’’कम होता जा रहा है।किस उम्मीद में वे काम करें ?!!
काम वे करें और फल वंशज खा जाये !!
अपवादों को छोड़कर एम.पी.का परिजन लोक सभा का उम्मीदवार बन रहा है।
विधायक का परिजन विधान सभा का उम्मीदवार बना दिया जा रहा है।
एम.पी.-एम.ए.ए.फंड के ठेकेदार राजनीतिक कार्यकर्ता की भी भूमिका निभा रहे हैं।(इसीलिए दो-चार अपवादों को छोड़कर कोई नेता इस फंड की समाप्ति नहीं चाहता।
जबकि यह फंड प्रशासनिक भ्रष्टाचार का रावणी अमृत कुंड साबित हो रहा है।क्या इस फंड की जांच सी.ए.जी.करता है ?)
जाति और धर्म के आधार पर वोटरों को लुभाया और गोलबंद किया ही जा रहा है।
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कई राजनीतिक दल टिकट बेचकर तथा अन्य तरीकों से धन जुटा रहे हैं।
कमी पड़ने पर जार्ज सोरोस के फंड काम आ रहे हैं।
इसीलिए राजनीतिक दलों की संख्या बढ़ती जा रही है।
23 मार्च 2024 तक के आंकड़ों के अनुसार इस देश में 6 राष्ट्रीय दल, 58 प्रादेशिक दल और 2763 निबंधित दल थे।
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अपवादों को छोड़कर जो जातिवादी है,वह भ्रष्टाचारी भी है और वंशवादी-परिवारवादी भी।साथ ही, वोट बैंक वादी भी।
‘‘वोट बैंक वाद’’ देश की एकता-अखंडता को कमजोर कर रहा है।
बाहुबली भी उसकी ओर अधिक आकर्षित होते हैं क्योंकि सत्ता में आने के बाद अधिकतर नेतागण उन्हें संरक्षण भी देते हैं।
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इस देश की राजनीति गिरकर फिलहाल यहां तक पहुंची है।
आगे और गिरेगी, तौभी बताऊंगा।उठेगी, तौभी बताऊंगा।
हालांकि इस बीच राजनीति में भी उम्मीद की कुछ किरणें नजर आती हैैं।
यह भी बताऊंगा कि वे किरणें अधिक चमकदार हो रही हैं या धूमिल पड़ रही हैं।
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अब आप गुगुल गुरु से मदद लीजिए।उनसे पूछिए कि भारत की आजादी के समय ब्रिटेन के पूर्व प्रधान मंत्री विंस्टन चर्चिल ने हमारे देश के नेताओं के बारे में क्या-क्या कहा था।
