देवांशु झा : एक ही प्रबोधिनी शक्ति जागृत रही…
हनुमान चालीसा
वारित – सौमित्र – भल्लपति – अगणित – मल्ल – रोध,
गर्ज्जित – प्रलयाब्धि – क्षुब्ध हनुमत् – केवल प्रबोध..
राम की शक्तिपूजा
रावण के प्रहार से लक्ष्मण, जाम्बवान, अगणित वानरवीर पस्त हो गए। समुद्र क्षुब्ध होकर गरज उठा। एक ही प्रबोधिनी शक्ति जागृत रही-वह शक्ति हनुमान की थी।
निराला से चार सौ वर्ष पूर्व कविवर तुलसीदास ने जब रामकथा की रचना की तो उसका सबसे लौकिक रूप हनुमान को समर्पित कर गए। उनके अद्वितीय काव्य संसार का सबसे लोकप्रिय अंश है हनुमान चालीसा। हनुमान चालीसा से अधिक चित्तप्रिय, सरल, सुग्राह्य, स्मरणीय और हृदय में धारण किए जाने वाला भक्ति-पाठ दूसरा नहीं है। यह तुलसीदास की विलक्षणता थी कि उन्होंने हनुमान को स्वतंत्र सत्ता देते हुए भी उन्हें सदैव राममय किए रखा। भक्त और भगवान की वैसी ही दूसरी जोड़ी संपूर्ण हिन्दू संस्कृति में खोजे नहीं मिलती। इसीलिए हनुमान चालीसा में भी वह कहते हैं- राम रसायन तुम्हरे पासा। और इसीलिए हनुमान को भज लेना राम को ही भजना है।
हनुमान जी से बड़ा लोक देवता कोई नहीं है। वह सर्वप्रिय, सर्वाराध्य, अपार शक्तिशाली, सर्वथा प्राप्य और करुणावतार हैं। वह विकल हृदय की पुकार सबसे पहले सुनते हैं। मेरा अनुभूत है।वह हमारी व्याख्याओं और शब्द शक्ति से परे हैं। वैसा लौकिक और पारलौकिक देव दूजा नहीं है। और उस देवता से जुड़ने का सबसे सरल, सुन्दर सूत्र है-हनुमान चालीसा। उसकी शक्ति विराट है। उसकी महत्ता उत्तर से दक्षिण तक है। एम एस सुब्बुलक्ष्मी ने भी डूब कर हनुमान चालीसा का पाठ किया है। पांच वर्ष का बालक भी उसे पढ़ता है और सौ वर्ष का वृद्ध भी नहीं भूलता। हनुमान चालीसा ने कोटि-कोटि हृदय को जो बल दिया है, वह अतुलित है।
अगर रामचरितमानस लिखकर तुलसी ने भारत के हिन्दू समाज पर उपकार किया है तो हनुमान चालीसा लिखकर उन्होंने महोपकार किया है। उसकी महिमा तो किसी निष्कलुष बालक से पूछो। महाज्ञानी संत से पूछो। नीम करोली बाबा से पूछो। करोड़ों करोड़ हिन्दुओं से पूछो। हनुमान चालीसा एक विद्युन्माला है। एक महातरंग। उसकी सरलता और महत्ता को समझने के लिए सहज होना पड़ता है। आडम्बर वाले अहंकारी हनुमान चालीसा को क्या समझेंगे। हृदय में व्याप्त भय और शंका को हर लेने वाले इस विलक्षण काव्य पर मैं क्या लिख सकता हूं। हनुमान जी और हनुमान चालीसा दोनों एक दूजे में अनुस्यूत हैं। उन्हें एक दूसरे से पृथक नहीं किया जा सकता। इस युति को रचना तुलसीदास जैसे कवि से ही सम्भव था। जिसमें चालीसा और हनुमान दोनों एक दूसरे में व्याप्त हो जाते हैं। यह मेल जादुई और अविश्वसनीय है।