अमित सिंघल : मोदी के विज़न, नेतृत्व पर पब्लिक के विश्वास से हताश अर्बन नक्सल और विदेशी मीडिया
भारत की छवि को धूमिल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास हो रहें है।
- प्रधानमंत्री मोदी ने आज़ादी के अमृत महोत्सव के एक समारोह में बोलते हुए कहा कि “भारत की छवि को धूमिल करने के लिए किस तरह अलग-अलग प्रयास चलते रहते हैं। इसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत कुछ चलता रहता है। इससे हम ये कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकते कि ये सिर्फ राजनीति है। ये राजनीति नहीं है, ये हमारे देश का सवाल है। और जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो ये भी हमारा दायित्व है कि दुनिया भारत को सही रूप में जाने।“
प्रधानमंत्री मोदी ने एक ऐसे तथ्य को उजागर किया है जो हम सब पहले से जानते है। लेकिन सार्वजनिक मंच से प्रधानमंत्री जी के द्वारा ऐसे कहने का एक ही अर्थ है कि इन शक्तियों के कुत्सित प्रयासों की गंभीरता को सरकार समझ रही है।
अभिजात वर्ग के सदस्यों और राजवंशियों से भरपूर विपक्ष की रणनीति स्पष्ट है। इन्हे पता है कि वर्ष 2024 के चुनावो तक प्रधानमंत्री मोदी अपनी नीतियां और कार्यो से उनका रचनात्मक विनाश (creative destruction) कर देंगे। उन्होंने शुरू से ही विरोध और प्रदर्शन के द्वारा प्रधानमंत्री की वैधता पर चोट करने का प्रयास किया; प्रधानमंत्री मोदी से निपटने के लिए झूठ, छल और कपट का सहारा ले रहा था।
अब उसने हिंसा को भी अपनी टूलकिट (कारीगरों के टूल का बक्सा) में जोड़ लिया है। भारत में हिंसा भड़काने के लिए अभिजात वर्ग (इसमें विदेशी माफिया भी शामिल है) अलगाववादी तत्वों, कट्टरपंथियों, नक्सलियों, घुसपैठियों और अपराधियों का उपयोग कर रहा है।
साथ ही, यह लोग विदेशी फर्म के साथ मिलकर दांव चला रहे है कि भारत की इमेज गिर जाए। और इस गिरी इमेज का लाभ उठाकर वे अरबो-खरबो रुपये कमाने, राष्ट्र की सत्ता अनुचित रूप से हथियाने का स्वप्न देख रहे थे।
फर्जी किसान आंदोलन के समय हम भाग्यशाली थे कि ग्रेटा ने उनका प्लान रिलीज़ कर दिया।
समय-समय पर ऐसे सोशल मीडिया अकाउंट (फेसबुक, ट्विटर, यू ट्यूब) सामने आते हैं जो भारत के विरूद्ध प्रोपोगैंडा और झूठी खबरे फैलाते है, प्रधानमंत्री मोदी और उनके सहयोगियों के विज़न के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग करते है और सनातनी परंपरा का उपहास उड़ाते या उन्हें अपमानित करते है।
- यही स्थिति विदेशी मीडिया की है जो 2019 के आम चुनावो के बाद मोदी सरकार के विरोध में लगातार लिख रहे है। भाजपा को सदैव हिन्दू राष्ट्रवादी पार्टी के रूप में सम्बोधित किया, जबकि यूरोप के उन राजनैतिक दलों को जिनके नाम में ही क्रिश्चियन शब्द है – जैसे कि क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन – को कभी भी धर्म से चिन्हित नहीं करते।
चाहे कोरोना की कवरेज हो, या 370 हटाना, CAA लाना, फर्जी किसान आंदोलन, सर्जिकल स्ट्राइक – इन सब पर कभी भी सरकार का पक्ष नहीं रखा। सभी विषयों को ऐसे प्रस्तुत किया कि मोदी सरकार सांप्रदायिक है।
अर्थव्यवस्था पर ऐसा लिखेंगे कि एशिया कि सबसे कमजोर मुद्रा भारतीय रूपया है; भारत की विकास दर नहीं बढ़ सकती, इत्यादि। यह सारे लेख इंटरनेट पर उपलब्ध है जो एक वर्ष पूर्व लिखे गए थे और जो गलत सिद्ध हुए है।
मोदी सरकार द्वारा सबको घर, नल से जल, बिजली, बैंक अकाउंट, 105 लाख करोड़ रुपये का इंफ्रास्ट्रक्चर विकास, कोरोना पर कण्ट्रोल एवं वैक्सीनेशन, पुरुषो की तुलना में महिलाओ की संख्या में वृद्धि, गैर-पारम्परिक ऊर्जा का उत्पादन लक्ष्य से 9 वर्ष पूर्व प्राप्त करना, 9 प्रतिशत से अधिक का आर्थिक विकास, विशाल विदेशी मुद्रा भंडार, मुद्रास्फीति पर कण्ट्रोल, सोनिया द्वारा विध्वंस की गई बैंकिंग व्यवस्था को वापस पटरी पर लाना, इत्यादि पर चुप बैठ जाएंगे।
पुरुषों द्वारा धार्मिक पहचान छुपाकर धोखे से विवाह एवं धर्म परिवर्तन कराने की घटना एवं फिर इस दुष्चक्र में फंसी महिलाओं की हत्या को छुपा देंगे।
आरएसएस को ISIS के समकक्ष बैठाने का प्रयास करना। इस मुद्दे पर एक बार किसी ने पूछा था तो मैंने एक ही वाक्य में उसे निरुत्तर कर दिया था: मैं अमेरिका में कह सकता हूँ कि मैं RSS का सदस्य हूँ; क्या कोई अन्य व्यक्ति अमेरिका में कह सकता है कि वह ISIS का सदस्य है ?
प्रधानमंत्री मोदी चुपचाप भारतीयों के मानवाधिकारों का संरक्षण (मूलभूत सुविधाओं के द्वारा) कर रहे हैं; उसे बढ़ावा दे रहे हैं। जिसे हर शहर और गांव में रहने वाला भारतीय देख रहा है, महसूस कर रहा है, तथा उससे लाभान्वित हो रहा है। उन्हें इन अर्बन नक्सलों की नारेबाजी और सोशल मीडिया के हैशटैग से कोई लगाव नहीं है।
प्रधानमंत्री मोदी के विज़न और नेतृत्व पर विश्वास बनाये रखिये। यही एक विश्वास इनको निस्तेज और हताश कर देता है।
