वेदों में मेधा, विचार शक्ति के लिए प्रत्यक्ष देव सूर्यदेव से विनय

गहनता से सोचने और उस इच्छित फल के लिए अपनी सम्पूर्ण ध्यान -शक्ति समर्पित कर देने से विचार बलवान हो प्राणशक्ति में बदल जाते है,उसमें मस्तिष्क और हृदय –माइन्ड एंड हार्ट– दोनों का बल काम करने लगता है।

अथर्ववेद में विचार-शक्ति (मेधा) को महाशक्ति कहा गया है– ‘ त्वं नो मेधे प्रथमा ‘ अर्थात सद-विचार ही संसार की सर्वप्रथम सर्वश्रेष्ठ वस्तु है।ऋषियों की कल्याण व दानवों में में विनाश की जो बुद्धि है उसे अग्नि के साधक को देने की कामना की गई है ताकि वो संसार के दुरूह मार्ग पर सत्य का आचरण करते हुए सरलता से चल सके।

मेधा उत्पन्न करने का यंत्र हमारा मस्तिष्क है। विचारों की शक्ति का अनुमान करने में विज्ञान समर्थ नहीं हो पा रहा क्योंकि वह अत्यंत सूक्ष्म है और मशीनी शक्ति की पकड़ से परे हैक्योंकि इनका सम्बन्ध मानवीय चेतना से है, पदार्थ से नहीं।

गहनता से सोचने और उस इच्छित फल के लिए अपनी सम्पूर्ण ध्यान -शक्ति समर्पित कर देने से विचार बलवान हो प्राणशक्ति में बदल जाते है,उसमें मस्तिष्क और हृदय –माइन्ड एंड हार्ट– दोनों का बल काम करने लगता है।

चुम्बक को ताप , ताप को विद्युत्, विद्युत् को प्रकाश में बदला जा सकता है। विचार भी एक शक्ति ( एनर्जी ) है, इसलिए कोई संदेह नहीं कि उसे भी अन्य शक्तियों में बदला जा सकता है।

वेदों में कथन है कि जो वेदपाठी को परेशान करता,छल करता है वह स्वयं अपने कर्मो के जाल में फंसकर नष्ट होता है।

 

।।ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।। -ऋग्वेद
अर्थ : उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंत:करण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
इस मंत्र या ऋग्वेद के पहले वाक्य का निरंतर ध्यान करते रहने से व्यक्ति की बुद्धि में क्रांतिकारी परिवर्तन आ जाता है। उसका जीवन अचानक ही बदलना शुरू हो जाता है। यदि व्यक्ति किसी भी प्रकार से शराब, मांस और क्रोध आदि बुरे कर्मों का प्रयोग करता है तो उतनी ही तेजी से उसका पतन भी हो जाता है। यह पवित्र और चमत्कारिक सूक्त है।

 

6000 वर्ष पूर्व का काल है महाभारत काल और इससे पहले रामायण काल..और इससे पूर्व रहा वेदकाल।

रावण 4 वेदों का ज्ञाता था और हनुमान जी के बारे वाल्मिकी रामायण में श्री राम लक्ष्मण को कहते है कि ये साधारण वानर नहीं 4 वेदों का ज्ञाता है।

रामायणकाल से पूर्व मनुकाल में भी वेदों की ही स्तुति का उल्लेख हर कही मिलता है।

वेदो में किसी देवी-देवता की की स्तुति नहीं सिवाय प्रकृति के..जो वेदों में नहीं वह कही नहीं।

गायत्री मंत्र-महामृत्युंजय मंत्र की शक्ति जो मानते है वे जानते है कि ये वेदों से ही आएं हैं।

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