प्रसिद्ध पातकी : विष्णु सहस्रनाम में “प्रकाश” है अर्थवान

संत दिवाली नित करें, सत्तलोक के माहिं

आज रमा एकादशी है। यानी लक्ष्मी जी से जुड़ी तिथि। यह एक माइल स्टोन की तरह है जो यह संकेत करती है कि मुकुंद प्रिया लक्ष्मी जी का आगमन बस होने ही वाला है। दीपावली बस आने ही वाली है। निश्चित ही कार्तिक मास की अमावस जैसी प्रकाशवान अमावस्या वर्ष की शायद ही कोई अमा होती है।

Veerchhattisgarh
श्री प्रसिद्ध पातकी

कवियों की भाषा में बहते हुए कहा जाए तो बस जी, रोशनी का हाट सज जाता है। निश्चित ही दीपावली को लेकर तमाम पौराणिक आख्यान हैं। सब एक से एक मनोरम। एक से एक अर्थवान। पर हममें से अधिकांश दीपावली को कौशल्यानंदन भगवान राम के अयोध्या आगमन से जोड़ते हैं। प्रकाश पर्व से जोड़कर देखा जाए तो विष्णु सहस्रनाम का यह श्लोक काफी अर्थवान है :-

ओजस्तेजोद्युतिधर: प्रकाशात्मा प्रतापन:।
ऋद्धस्पष्टाक्षरो मन्त्र: चन्द्राशुर्भास्करद्युति।।

इसमें भगवान का एक नाम आता है ‘ओजस्तेजोद्युतिधर:’। भगवान कैसे ओज वाले हैं? ओज यानी असाधारण सामार्थ्य वाले। तेज यानी आपका वह प्रताप है जिससे विरोधी बिना लड़े परास्त हो जाएं। भगवान द्युतिधर हैं। अग्रेजी में कहें तो मैजेस्टिक। हिंदी में कहें तो ऐश्वर्यवान।
अब जरा कल्पना करिए कि जब श्री रावेन्द्र, जानकी जी के साथ वनवास के लिए अयोध्या से गये तो मानो अवध का ओज, तेज, द्युति सब उनके साथ ही चली गयी। अयोध्या ओज हीन, तेज हीन और द्युति हीन हो गयी। दीपावली का पर्व इसलिए है क्योंकि भगवान रघुनंदन के लौटने मात्र से अवध नगरी फिर से इन गुणों से प्रकाशवान हो गयी। इसका कारण भगवान ‘‘प्रकाशात्मा’’ है। आत्मा तो वैसे ही प्रकाशवान है किंतु माया के आवरण से उसकी पर्दादारी रहती है। पर भगवान तो मायापति हैं।
भगवान राम “प्रतापन” हैं। अपने प्रकाश से सबको तपाते हैं। अध्योध्या भले ही रामजी के जाने से ओज- हीन तेज हीन हो गयी हो। किंतु जिन भक्तों ने भगवान को अपने हृदय में धारण कर रखा है, वे उनके प्रकाश से अहर्निश तपते रहते हैं। और इस ताप के प्रकाश से नंदीग्राम सदैव जगमगाता रहता था जहां धर्म की धुरी भरत जी प्रभु के प्रेम रस में सदा लीन रहते थे।
भगवान लक्ष्मीपति हैं, इस कारण समृद्ध हैं। “ऋद्ध” का अर्थ कोई सामान्य समृद्ध नहीं होता। इसका अर्थ होता है समुद्र की तरह समृद्ध। इसी समुद्र से भगवान की अमूल्य निधि माता लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था। इसी समृद्धि की भगवान राम की माता जानकी के साथ अयोध्या में दीपावली के पर्व पर वापसी होती है। भगवान की यह समृद्धि “स्पष्टाक्षर” है और इसी समृद्धि के प्रकाश में वेदों के “मंत्र” स्पष्ट होकर प्रकाशित होने लगते हैं।
दिलचस्प है कि भगवान न केवल भास्कर की ‘द्युती’ हैं बल्कि चंद्रमा के ‘अंशु’ यानी शीतल प्रकाश भी हैं। इसलिए दीपावली के दिन अयोध्या में भास्कर की द्युति और चंद्रमा का शीतल प्रकाश एकसाथ जगमगाता है।
हम जैसे पातकी लोग दीपावली एक दिन मानते हैं। किंतु संतों के घर नित्य दिवाली होती है क्योंकि उनके हृदयाकाश में नारायण परम ज्योति के रूप में सदा दीपित होते रहते हैं। सदा जगमगाते रहते हैं।

एकादशी की राम राम।।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *