सुरेंद्र किशोर : सरकारी तंत्र संरक्षित मिलावटखोरों का उपभोक्ताओं के खिलाफ अघोषित युद्ध, इजरायल के पेजर विस्फोट वार से भी अधिक खतरनाक

सरकारी तंत्र संरक्षित मिलावटखोरों का उपभोक्ताओं के
खिलाफ अघोषित युद्ध, इजरायल के पेजर विस्फोट वार
से भी अधिक खतरनाक
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सन 2002 में ही महावीर मंदिर न्यास समिति,पटना के सचिव और रिटायर आई.पी.एस.अफसर किशोर कुणाल ने कहा था कि
‘‘तिरुपति से अधिक शुद्ध और उत्तम है महावीर मंदिर का नैवेद्यम।’’ठीक ही कहा था।

किशोर कुणाल के इस कथन के तत्काल बाद ही तिरुपति मंदिर के लड्डू की शुद्धता की जांच की गयी होती तो आज इतना बड़ा विवाद नहीं उठता।
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आज के दैनिक जागरण में प्रकाशित अरविंद शर्मा की रिपोर्ट
में कहा गया है कि ‘‘कई तरह के खाद्य पदार्थों की अक्सर कमी पड ़जाती है।उसके दाम बढ़ जाते हैं।
किंतु टमाटर-प्याज की तरह कभी नहीं सुना गया कि घी भी बाजार से गायब है।स्पष्ट है मिलावट की वजह से ही ऐसा होता है।’’

इस देश में भ्रष्ट सरकारी व्यवस्था के रहते
कैसे आएंगे वास्तविक अच्छे दिन ?
अच्छे दिन कभी नहीं आएंगे जब तक मिलावटी चीजें खाने और जहरीले पेय पदार्थ पीने को निरीह लोग
मजबूर होते रहेंगे।मिलावटजनित रोगों से मरते रहेंगे।
यह इजरायल के पेजर विस्फोट वार से भी अधिक खतरनाक है।भ्रष्ट सरकारी तंत्र और उनके राजनीतिक आकाओं की मदद से मिलावटखोर देश की जनता के स्वास्थ्य को रोज ब रोज नष्ट करते जा रहे हैं।
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नकली दवाओं की समस्या तो और भी जानलेवा है।
मिलावटखोरों के खिलाफ मामले की सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर पीठ ने सन 2011 में ही कहा था कि उनके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का इस्तेमाल किया जा सकता है।समय- समय पर इस देश की विभिन्न अदालतों ने भी कड़ी कार्रवाई की जरुरत बताई।
पर एन एस ए की बात कौन कहे,सामान्य कानूनों को लागू करने में भी प्रशासनिक मशीनरी विफल रही है।स्थिति ऐसी चिंताजनक हो चुकी है कि प्रधान मंत्री की थाली भी सुरक्षित नहीं रहती यदि उस पर एस.पीजी. की निगरानी नहीं होती।
सन 1999 में तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी
वाजपेयी पटना यात्रा पर थे।
उन्हें परोसे जाने वाले खाद्य व पेय पदार्थों में से मिनरल वाटर नकली पाया गया था।
इसी तरह की घटना सन 2010 में तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के साथ कानपुर में हुई।
उन्हें परोसे जाने वाले मूंग की दाल और खरबूजे के बीज अशुद्ध व मिलावटी पाए गए।
इस देश की आम जनता आज पूरी तरह मिलावटखोरों के रहमो -करम पर है।
देश भर में औषधि व खाद्य निरीक्षक तैनात किये गये हैं।उपभोक्ता अदालतें कायम की गई हैं।
पर इसके बावजूद यदा कदा खबरें मिलती रहती हैं कि बाजार नकली व मिलावटी खाद्य व पेय पदार्थों तथा दवाओं से भरा पड़ा है।कई दशक पहले बिहार विधान परिषद की एक समिति (सदर यशोदानन्द सिंह)ने भी IN 2002 पाया था कि मिलावट की महामारी चिंताजनक है।
देश भर की उपभोक्ता अदालतों में मिलावट करने वालों के खिलाफ लाखों मुकदमे लंबित रहते हैं।
अपवादों को छोड़ दंे तो इस देश के फूड इंस्पेक्टर व औषधि निरीक्षक
नमूनों के बदले कुछ दूसरी ही चीजें ग्रहण करने के लिए दुकानों पर जाते हैं।
वैसे भी फूड इंस्पेक्टर व औषधि निरीक्षकों की संख्या इतनी नहीं है कि नियमतः वे तीन महीने के अंतराल पर हर दुकान से नमूने ले सकें।कहीं किसी इंस्पेक्टर ने नमूने लेने की गुश्ताखी की भी तो उसे भ्रष्ट दुकानदारों ने मार कर भगा दिया।नमूना एकत्र करने के लिए उन्हें पुलिस संरक्षण भी देना होगा,यदि शासन की मंशा अच्छी है तो।
इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों की प्रबल इच्छाशक्ति चाहिए।
अन्यथा लोग मिलावट जनित रोगों से मरते रहेंगे और सरकारी तंत्र रिश्वत वसूलता रहेगा।

मैंने साठ के दशक में आज की अपेक्षा अधिक शुद्ध खाद्य और भोज्य पदार्थों का सेवन किया था।उनके स्वाद मुझे याद हैं।इसलिए आज मेरी जीभ फर्क कर सकती है।यह मत पूछिए कि मिलावट कहां है ?यह पूछिए कि (अत्यंत थोड़े से अपवादों को छोड़कर)मिलावट कहां नहीं है ?
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साधारण भाषा में ऐसे समझिए कि जितने प्रतिशत नेता-अफसर आज ईमानदार नहीं हैं,मिलावट का प्रतिशत भी उतना है।
मिठाइयों में मैं सिर्फ महावीर मंदिर का लड्डू खाता हूं।क्योंकि मेरी अनुभवी जीभ उसकी अनुमति देती है।
पर, कुणाल साहब को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि नैवेद्यम में से इलायची के सारे छिलके सावधानी से निकाल दिए जाएं।

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