कौशल सिखौला : चुनाव 2024.. परिणाम समझ लीजिए…
एनडीए का कॉमन मिनिमम कार्यक्रम तो बरसों से तय है । सभी पार्टनर जानते हैं कि भाजपा का रिश्ता विकास से भी है और धर्म से भी । इस पर एनडीए के किसी घटक ने कभी एतराज भी नहीं किया । बीजेपी के अयोध्या , काशी और मथुरा एजेंडे से भी एनडीए के घटक दल पहले से ही परिचित हैं । उन्हें कोई एतराज भी नहीं।
यहां तक कि शिवसेना , अकाली दल आदि जिन दलों ने एनडीए का साथ छोड़ दिया उन्होंने राम मंदिर पर कभी भी कोई आपत्ति आज तक दर्ज नहीं कराई । लेकिन आश्चर्य की बात है कि 28 दलों का इंडी गठबंधन बन तो गया , परन्तु अभी तक भी इंडी का कोई न्यूनतम साझा कार्यक्रम तय नहीं हो पाया है । आधा अधूरा सीट तालमेल कर सभी अपने अपने दलों का कॉमन मिनिमम प्रोग्राम चला रहे हैं ।
परिणाम सामने है । सीटों पर तालमेल तक में बवाल मचा है । राजनीति में दो बार कॉमन मिनिमम प्रोग्राम राजनैतिक दलों ने बनाए । सबसे बड़ा और पहला प्रयोग जयप्रकाश नारायण के सानिध्य में आपातकाल के बाद 1977 में हुआ । तब तो जनसंघ सहित कांग्रेस के विरोध में खड़े तमाम राजनैतिक दलों ने अपने अस्तित्व का विलय कर नाम , चुनाव चिन्ह , ध्वज आदि छोड़ दिए।
जनता पार्टी के नाम से कांग्रेस के विरोध में एक समानांतर पार्टी खड़ी हुई । जनता पार्टी ने कांग्रेस का किला ध्वस्त कर डाला और सत्ता संभाल ली । दूसरा प्रयोग नब्बे के दशक में वीपी सिंह के नेतृत्व में बने जनता दल के रूप में हुआ । किंतु मंडल के लोभ में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने उसका भी मटियामेट कर डाला।
अब ऐसा ही प्रयोग इंडी गठबंधन के रूप में सामने आया । इंडी का कोई साझा कार्यक्रम नहीं , साझा घोषणापत्र नहीं , कोई संयोजक नहीं और कोई पीएम फेस नहीं । सबकी अपनी डफली अपना राग । एक ही एजेंडा कि मोदी से घृणा करो , गाली दो , सरकार की राह में अड़ंगे लगाओ और समय बिताओ । जिन्होंने अखाड़ा खोदा वे नीतीश भाग गए , ममता बंगाल में उलझ गईं और केसीआर विधानसभा चुनाव ही हार गए ? तो क्या हाल है , खुद ही देख लीजिए । लगता ही नहीं कि कोई गठबंधन बना है।
तमाम दल किसी न किसी तिगड़म से खुद को मजबूत बनाने में लगे हैं । आगाज तो अच्छा नहीं था और अब वर्तमान भी । चूंकि गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस लोकसभा की आधे से भी कम सीट पर चुनाव लड़ रही है , अतः अंजाम समझ लीजिए । अभी सीट तालमेल नहीं हो पा रहा । तो सरकार बनने पर मंत्रीमंडल कैसे बनेगा , यह अपने आप में एक प्रश्न है । खैर ! यह चुनाव स्वाधीनता मिलने के बाद का सबसे महत्वपूर्ण चुनाव है । सर्वाधिक दायित्व एक बार फिर मतदाता पर आ गया है.।
