सुरेंद्र किशोर : पश्चिम बंगाल की समस्याओं का एकमात्र हल राष्ट्रपति शासन और राज्य का बंटवारा

पश्चिम बंगाल की समस्याओं का एकमात्र
हल राष्ट्रपति शासन और राज्य का बंटवारा
अन्यथा, पूरे बंगाल की स्थिति कश्मीर वाली हो जाएगी
कुछ हिस्सों में तो हो ही चुकी है।
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अधिकांश मीडिया की खबरों के अनुसार
तृणमूल कांग्रेस के दो परस्पर विरोधी गुटों के बीच ‘बंटवारे’ को लेकर विवाद था।
वीरभूम जिले में हाल में हुई हिंसा-प्रतिहिंसा का मुख्य कारण
यही था।
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पर,मुख्य मंत्री ममता बनर्जी यह कह रही हैं कि उक्त नरसंहार के लिए पुलिस को दोष मत दीजिए।
पुलिस की साठगांठ के बिना न तो बिहार में बालू की लूट होती है न ही पश्चिम बंगाल में।किसी अन्य राज्य में भी नहीं।
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दरअसल शासन के बल पर प्रतिपक्षी दलों को पराजित कर देने के बाद अब तृणमूल कांग्रेस के विभिन्न गुट आपस में ही मारकाट कर रहे हैं।
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अप्रैल, 2019 में चुनाव आयोग के विशेष पर्यवेक्षक अजय नायक ने,जो बिहार काॅडर के अफसर रहे, कहा था कि 15 साल पहले बिहार की जो स्थिति थी,वही हालत आज पश्चिम बंगाल की है।
बंगाल के लोगों का पुलिस पर भरोसा नहीं है।इस टिप्पणी को लेकर ममता बनर्जी ने अजय नायक के खिलाफ चुनाव आयोग से शिकायत की थी।
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पश्चिम बंगाल में हिंसा कोई नई बात नहीं।
खुद ममता बनर्जी वाम मोर्चा के भीषण हमले का शिकार हुई थी।
मरते -मरते बची थीं।
पर सत्ता में आने पर उसी हमलावर  को ममता ने अपनी पार्टी में शामिल कर लिया।

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‘‘चीन के चेयरमैन हमारे चेयर मैन’’के नारे के साथ 1967 में उभरे नक्सलियों ने बंदूक के बल पर सत्ता पर कब्जे की कोशिश बंगाल में शुरू की थी।
लंबे समय तक हिंसा जारी रही।
1972 में कांग्रेस के सिद्धार्थ शंकर राय की सरकार ने नक्सलियों के सफाये के लिए पुलिस और गुंडों की खूब मदद ली।
नतीजतन अनेक अत्यंत प्रतिभाशाली छात्र, जो नक्सली बन गए थे,मार डाले गए।
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फिर आया वाम मोरचा का राज।
वाम मोर्चा ,खास कर सी.पी.एम. में अनेक अराजक तत्व शामिल हो गए।
कांग्रेस जब उनका मुकाबला नहीं कर सकी तो निर्भीक व जिद्दी ममता बनर्जी मुकाबले में आई।
अब सत्ता के बल पर ममता  की राज्य में तूती बोल रही है।
32 प्रतिशत मजबूत वोट बैंक का जिसे समर्थन हो,उसे भला जल्दी कौन डिगा सकता है ?
उस वोट बैंक का लक्ष्य और चाह न तो विकास है और न सुशासन, बल्कि ‘‘कुछ और’’ ही है।
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यदि कांग्रेस, नरेंद्र मोदी सरकार को राज्य सभा में साथ देती तो बंगाल में अब तक राष्ट्रपति शासन लागू हो गया होता ।
पर कांग्रेस को डर है कि उससे उसका अन्य राज्यों में अपना वोट बैंक गड़बड़ा जाएगा।जबकि, ममता ने बंगाल में कांग्रेस को समाप्त कर दिया है।1999 में बिहार में राष्ट्रपति शासन का विरोध करके कांग्रेस बिहार में अपनी लुटिया डूबो चुकी है।
यदि आज इंदिरा गांधी सत्ता में होती तो ममता सरकार को तुरंत बर्खास्त कर देती।
इसकी अपेक्षा काफी छोटे ‘अपराध’ के कारण इंदिरा राज में राज्य सरकारें बर्खास्त होती रहीं।

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