सुरेंद्र किशोर : सरकारी ‘जिला स्कूलों’ को सेंट्रल स्कूलों के प्रबंधन को सौंप दें या जिला स्कूलों को निजी किंतु अनुभवी हाथों में दे दें !

राज्य सभा के सदस्य व बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की यह मांग सही है कि केंद्रीय विद्यालयों में सांसद कोटा समाप्त कर दिया जाना चाहिए।

 

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अन्य बातों के अलावा मोदी ने यह भी कहा है कि 10 विद्यार्थियों के कोटे के कारण सांसदों को जनता की नाराजगी झेलनी पड़ती है।
क्योंकि सिर्फ दस पाते हैं और बाकी सैकड़ों लोग निराश होकर लौटते हैं।
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यह तो सांसदों की बात हुई।
इसके साथ ही, सांसदों के मित्रों-परिचितों-रिश्तेदारों को भी अपने लोगों की नाराजगी झेलनी पड़ती है।
अनेक लोग यह समझते हैं कि मेरा मित्र यदि अपने मित्र सांसद महोदय से कह देता तो हमारे परिजन विद्यार्थी को जरूर दाखिला मिल जाता।
पर, जब खुद सांसदों का यह हाल है तो वह अपने मित्र के कंडीडेट को दाखिला कैसे करा देगा ?
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दरअसल इस देश के अधिकतर सरकारी स्कूलों की शिक्षा-व्यवस्था ध्वस्त हो जाने के कारण लोगबाग सेंट्रल स्कूल की ओर उम्मीद भरी नजरों से देखते हैं जहां की शिक्षण-व्यवस्था सही है।
ऐसी समस्या एक हद तक स्थायी समाधान खोजती हैं
समाधान यह हो सकता है कि कम से कम हर जिले के एक सरकारी स्कूल को,जिनमें आधारभूत संरचना बेहतर होती है, निजी हाथों में सौप दिया जाए।ऐसे हाथों में जिसे पहले से एक सफल निजी स्कूल चलाने का लंबा अनुभव हो।
सरकार फीस में सब्सिडी दे।
या फिर सरकारी जिला स्कूलों को नजदीक के सेंट्रल स्कूलों के प्रबंधन से जोड़ दिया जाए।
या कोई तीसरा उपाय हो जिससे अल्प आय वाले अभिभावकों का कल्याण हो और शिक्षा की गुणवत्ता भी बनी रहे।

 

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