डॉ. भूपेंद्र सिंह : दिमाग़ नेताओं और जाति के ठेकेदारों को गिरवी रखकर जीवन जीने वाले कितने वोटर बचे हैं??

उत्तर प्रदेश में कुल 20-22 सीटों पर चुनाव है। पहले सपा कांग्रेस केवल 18 सीटों पर लड़ने का मन बनाये हुए थे, लेकिन भाजपा के भीतर के कुछ लोगों के अंदरूनी लड़ाई का लाभ उठाकर वह 4 सीट और अपने लड़ाई में बढ़ा लिए।
जो कुछ चर्चा है, समस्या है, लड़ाई है, इन्हीं 22 सीटों पर है। उसमें भी सपा को यह आशा है कि वह स्थानीय नेताओं और जातियों के ठेकदारों को साधकर लड़ाई में आगे बढ़ जाएगी लेकिन प्रश्न यह है कि अब कितने वोटर बचे ही हैं जो अपना दिमाग़ नेताओं और जाति के ठेकेदारों को गिरवी रखकर जीवन जी रहे हैं??


सपा कांग्रेस के कार्यक्रम में हो भीड़ दिखाई पड़ रही है, वह भीड़ पहले भी दिख रही थी, आगे भी दिखती रहेगी। वह राजनीतिक रूप से शोर मचाने वाले, डराने वाले, धमकाने वाले MY फैक्टर की भीड़ है जिसमें थोड़ी बहुत अन्य जातियाँ भी शामिल हैं। अब इस फैक्टर के साथ समस्या यह भी है कि यह जितना ज़्यादा एकजुट होता जाता है, शेष समाज भयभीत होकर दूसरे पक्ष में लामबंद होने लगता है। हाँ, वह लामबंदी शोरसराबें के रूप में नहीं होती। चुपचाप ईवीएम पर लोग अपना निर्णय सुनाकर घर लौट जाते हैं। इसलिए लोगों को चुनावी शोर और चुनावी परिणाम में कई बार अंतर समझ ही नहीं आता।
सपा बसपा रालोद तीनों मिलकर भाजपा से लड़ चुके हैं। सपा कांग्रेस भी मिलकर लड़ चुके हैं। यह कोई नयी लड़ाई नहीं है। उत्तर प्रदेश की प्रमुख आठ दस जातियाँ जो यहाँ की राजनीति में शोर मचाती हैं, अलग अलग तरीक़े से यहाँ के राजनीति में ब्लैकमेलिंग करती हैं, जिसमें ब्राह्मण, ठाकुर, यादव, कुर्मी, कोइरी, जाटव आदि शामिल हैं, धीरे धीरे उनकी अकड़ भी ढीली होगी और उन्हें समझ आएगा कि लोकतंत्र में ताक़त किसी एक दो समूह, समाज के पास नहीं रहने वाली, धीरे धीरे सबकी भागेदारी बढ़ेगी। केवल एक दशक के भीतर उत्तर प्रदेश में जातीय गोलबंदी की राजनीति दम तोड़ेगी। मोदी जी और योगी जी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश के सामाजिक ढाँचे में भी बहुत बड़ा परिवर्तन हो रहा है जिसे अगली पीढ़ी महसूस करेगी।

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