सुरेंद्र किशोर : मेरे बाबू जी
जब कभी मैं लंबे अंतराल के बाद अपने माता-पिता SE मिलने
गांव जाता था तो
बाबू जी मुझसे (भोजपुरी में )कहा करते थे–
‘‘मुझे देखने के लिए नहीं तो तुम खुद को मुझे एक झलक दिखाने
के लिए तो आ जाया करो।’’
मैंने और मेरी पत्नी ने एकाधिक बार उनसे कहा कि चलिए,हमारे साथ पटना में रहिए।
पर,वे तैयार नहीं होते थे।
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खैर,एक पिता के शब्दों पर एक बार फिर गौर कीजिए–
‘‘मुझे खुद को एक झलक दिखाने के लिए तो आ जाओ करो।’’
संभवतः हर पिता अपने पुत्र के बारे में ऐसा ही सोचता है यदि उसका पुत्र कहीं दूर रहता है।
हां,एक बात और ।
परिवार में पिता ही एक ऐसा व्यक्ति होता है जो दिल से यह चाहता है कि मेरा बेटा मुझसे भी अधिक तरक्की करे।
बाकियों में से तो अधिकतर दूसरों की तरक्की देखकर ईष्यालु हो जाते हैं।
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छात्र-जीवन में मिली सीख
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छात्र जीवन में मेरे पिता अक्सर मुझसे यह कहा करते थे कि
‘‘छोटी-छोटी बातों पर, खास कर किसी तरह के विवाद या झगड़ा-झंझट से खुद को दूर ही रखना।
उकसावे वाली बातों को नजरअंदाज करते जाना।
पता नहीं, कौन बात पर किसके अहंकार को ठेस पहुंच जाये और वह हिंसा पर उतारू हो जाये !
हां,इस कोशिश में जरूर रहो कि एक लकीर के बगल में अपनी बड़ी लकीर खींच देना,वह लकीर अपने-आप छोटी हो जाएगी।
किसी लकीर को काट-कूट कर छोटा करने की कभी
कोशिश मत करना।
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एक पिता का सबसे अच्छा वर्णन पंडित ओम व्यास
ओम ने प्रस्तुत किया है–
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पिता जीवन है, संबल है, शक्ति है।
पिता सृष्टि के निर्माण की अभिव्यक्ति है।
पिता अंगुली पकड़े बच्चे का सहारा है।
पिता कभी खारा तो कभी मीठा है।
पिता पालन पोषण है,परिवार का अनुशासन है।
पिता भय से चलने वाला प्रेम का प्रशासन है।
पिता रोटी है, कपड़ा है,मकान है।
पिता छोटे से परिंदे का बड़ा आसमान है।
पिता अप्रदर्शित अनंत प्यार है।
पिता है तो बच्चों को इंतजार है।
पिता से ही बच्चों के ढेर सारे सपने हैं।
पिता है तो बाजार के सब खिलौने अपने हैं।
पिता से प्रतिपल राग है।
पिता से ही मां की बिंदी और सुहाग है।
पिता परमात्मा की जगत के प्रति आसक्ति है।
पिता गृहस्थाश्रम में उच्च स्थिति की भक्ति है।
पिता अपनी इच्छाओं का हनन परिवार की पूत्र्ति है।
पिता रक्त में दिए हुए संस्कारों की मूत्र्ति है।
पिता एक जीवन को जीवन का दान है।
पिता दुनिया दिखाने का अहसास है।
पिता सुरक्षा है, अगर सिर पर हाथ है।
पिता नहीं तो बचपन अनाथ है।
पिता से बड़ा अपना नाम करो।
पिता का अपमान नहीं, अभिमान करो।
क्योंकि मां-बाप की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता।
ईश्वर भी इनके आशीषों को काट नहीं सकता।
दुनिया में किसी भी देवता का स्थान दूजा है।
मां-बाप की सबसे बड़ी पूजा है।
वो खुशनसीब होते हैं, मां ं- बाप जिनके साथ होते हैं।
