अमित सिंघल : ..लेकिन आप सरकार के आंकड़े पर प्रश्नचिन्ह नहीं उठा सकते क्योंकि.. पूर्ववर्ती सरकारें ऐसा खेल करती थीं

मैंने पिछले वर्ष जनवरी में लिखा था कि अगले वित्तीय वर्ष के अंत तक भारत की अर्थव्यवस्था का 80% सरकारी रेकॉर्डों में कैप्चर हो जाएगा। दूसरे शब्दों में जीडीपी का 80% फॉर्मल इकोनॉमी से आएगा। यूरोप के देशो में अर्थव्यवस्था का 20 प्रतिशत भाग अभी भी इनफॉर्मल है; अर्थात पूर्णतया कैश आधारित है।

अभी पढ़ा कि इस अक्टूबर में UPI या डिजिटल माध्यम से अक्टूबर 2024 में 23.5 लाख करोड़ रुपये का लेन-देन हुआ। अगर इस लेन-देन को एक वर्ष के सन्दर्भ में ले, तो जीडीपी (लगभग 300 लाख करोड़ रूपये) का लगभग 82-83% आलरेडी फॉर्मल इकोनॉमी में आ चुका है।

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अगले बजट में इसकी पुष्टि हो जायेगी।

सोनिया सरकार के समय अधिकतर अर्थव्यवस्था कैश आधारित थी (केवल सरकारी एवं निजी क्षेत्र के बड़े ट्रांसैक्शन कैप्चर हो पाते थे)।

आज आप गोलगप्पे भी खाते है, तो डिजिटल भुगतान के कारण उसका रिकॉर्ड कैप्चर हो रहा है।

अब पिछली तिमाही की जीडीपी वृद्धि दर को आप क्रिटिसाइज़ या डिफेंड कर सकते है। हर व्यक्ति राय दे सकता है कि जीडीपी की वृद्धि दर को कैसे बढ़ाना चाहिए। कैसे वह प्रधानमंत्री एवं वित्त मंत्री से बेहतर कार्य कर सकता है। या कि वे दोनों आलरेडी बेहतर कार्य कर रहे है।

लेकिन आप सरकार के आंकड़े पर प्रश्नचिन्ह नहीं उठा सकते है। क्योकि अब अनाज की सरकारी खरीद को FCI के लोन के रूप में नहीं छुपाया जाता है (सोनिया सरकार ऐसी खरीद को FCI की उधारी के रूप में दिखाती थी, जिसका भुगतान बाद में सरकार को ही करना होता था; लेकिन इससे बजट डेफिसिट या आय से अधिक व्यय आकड़ो में कम हो जाता था)। कच्चे तेल की खरीद को आयल बांड्स या उधारी में नहीं छुपाया जाता है (जो सोनिया सरकार ने किया था) जिसका भुगतान अभी 2026 तक चलेगा।

अक्टूबर 2024 में GST कलेक्शन 1.82 लाख करोड़ था (अक्टूबर के आंकड़े 1 दिसंबर को रिलीज़ किये गए है)। अगर आप अधिक GST का रोना रोते है, तो कुल लेन-देन (23.5 लाख करोड़ रुपये) का 7-8% ही GST में क्यों कैप्चर हो रहा है? क्या यह सत्य नहीं है कि अधिकतर वस्तुओ पर GST शून्य है या 5% है?

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