सुरेंद्र किशोर : मोदी या शाह किसी को जेल नहीं भेज सकते। जेल भेजती हैं अदालतें ! इन दिनों के राजनीतिक विमर्श में यह तथ्य ओझल है।

4 अक्तूबर, 1977 को सी.बी.आई.ने गिरफ्तार पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को दिल्ली के एडीशनल चीफ मेट्रोपाॅलिटन मजिस्ट्रेट आर.दयाल की अदालत में पेश किया।
कोर्ट ने अभियोजन पक्ष से पूछा –‘‘सबूत कहां है ?’’
सी.बी.आई. के वकील ने कहा –‘‘एकत्र किया जा रहा है।’’
आर.दयाल ने श्रीमती गांधी को तुरंत बिना शर्त रिहा कर देने का आदेश दे दिया।

गिरफ्तार इंदिरा गांधी के खिलाफ जब सी.बी.आई.(पहली नजर में सही लगने लायक )कोई सबूत पेश नहीं कर सकी तो अदालत ने उन्हें तुरंत बिना शर्त रिहा कर देने का आदेश दे दिया था।
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यदि आपके खिलाफ भी कोई सबूत नहीं है तो अदालत
आपको पहले ही दिन रिहा कर देगी जिस तरह इंदिरा गांधी को रिहा कर दिया था।
यहां मैं यह नहीं कह रहा हूं कि इंदिरा गांधी निर्दोष थीं।उनके मामले में हुआ यह था कि ऊपरी निदेश पर सी.बी.आई.इंदिरा गांधी को जल्द से जल्द जेल भिजवाना चाहती थी।
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इसके विपरीत आज जैसे ही किसी नेता को अदालत जेल भेजती है,
प्रतिपक्षी दल आरोप लगाने लगते हंै कि मोदी-शाह ने बदले की भावना से जेल भेज दिया।
जबकि इंदिरा गांधी वाला उदाहरण सामने है।
अदालत भी तभी किसी को जेल भेजती है, जब अभियोजन प़क्ष यानी पुलिस,सी.बी.आई.,ई.डी.या कोई अन्य एजेंसी प्रथम द्रष्ट्वा कुछ सबूत आरोपी के साथ-साथ कोर्ट में तत्काल पेश कर देती है।
यानी,जांच एजेंसी किसी को गिरफ्तार करके सिर्फ कोर्ट में पेश कर सकती हैं,पर खुद जेल नहीं भेज सकती भले ऊपरी आदेश हो।
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इस कानूनी प्रक्रिया की मौजूदगी के बावजूद यदि कोई नेता सार्वजनिक तौर पर यह आरोप लगाता है कि सरकार ने जांच एजेंसी का इस्तेमाल करके फलां नेता को गलत तरीके से बदले की भावना से जेल भेज दिया तो आप क्या कहेंगे ?
क्या वैसा कहना अदालत की अवमानना नहीं है ?
क्या अदालत की मंशा पर सवाल उठाना नहीं है ?
क्या यह कहा जा रहा है कि अदालत ने सरकार के साथ मिलकर गैरकानूनी तरीके से आरोपी के खिलाफ षड्यंत्र किया जबकि उसके खिलाफ सबूत नहीं थे ?
इसको लेकर अदालत की मानहानि का मुकदमा चल सकता है या नहीं, इस बारे में कानून विद् यहां इस मंच पर अपनी राय दे सकते हैं।

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