मनीष शर्मा : शेख हसीना, ट्रम्प और मोदी… कैसे एक लाश देश में गृहयुद्ध करवा सकती है. इसे पढ़िए और समझिये की परदे के पीछे क्या क्या खेल चलते हैं..

मोदी कमजोर है.. शाहीन बाग़ वालों पर लट्ठ नहीं बजाये.

मोदी निकम्मा है, फर्जी किसानों को सही से control नहीं किया

मोदी नामर्द है, CAA वाले, दंगे करने वाले, रेल सड़क जाम करने वालों पर कोई कार्यवाही नहीं की.

हम ऐसे जुमले सुनते ही रहते हैं. और ऐसे जुमले फेंकने वालों के हिसाब से सत्ता में रहने वालों को बस दंड चलाना आना चाहिए.. और हर समस्या का समाधान है राजदंड.

लेकिन सत्य इसके एकदम विपरीत है….. हम एक लोकतान्त्रिक देश हैं.. और यहाँ पहले विचार विमर्श होते हैं… समझाइश होती हैं, वाद विवाद होते हैं.. और उसके बाद भी मामला ना सुलझे तो कानूनी रास्ता है… फिर भी ना सुलझे तो लट्ठ बजाना आखिरी उपाय होता है.

लेकिन राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण होती है Timing…. अगर आप अपनी चाल सही timing पर नहीं चलते, तो आप कोई कोई भी शह और मात दे देगा.

बांग्लादेश में आज यही हुआ है…अगर आपको लगता है आज अचानक से ये उबाल आया है, तो आप गलत हैं…….बांग्लादेश का पिछले 5 साल का इतिहास पढ़िए.

मैं कुछ Portals के लिए लेख लिखता रहा हूँ… और बांग्लादेश के कुछ Subject Matter Experts के साथ काम भी किया है… कुछ लेख मैंने भी लिखे हैं… और लिखने के लिए बहुत पढ़ना भी पड़ता है.

इसलिए पिछले 4-5 साल से बांग्लादेश में क्या हो रहा है….अमेरिका वहाँ क्या कर रहा है…. BNP क्या गुल खिला रही है…Joe Biden के बेटे Hunter Biden कैसे BNP को फण्ड कर रहे थे…..चीन का वहाँ क्या रोल है…वह सब मैं स्पष्टता से देख रहा था.. इसलिए कुछ हफ्तों पहले मैंने कहा भी था… Regime Change Operation का अगला शिकार बांग्लादेश होगा.

और आज यह सत्य भी हो गया.

बांग्लादेश में शेख हसीना काफी अच्छा शासन कर रही थी…. और वह भारत के समर्थन में भी थी… वहीं विपक्ष की BNP की अध्यक्ष है बेगम खालिदा जिया… जो radical हैं.. और भारत के विरोध में ही रहती हैं.

तो मामला यह है कि खालिद जिया जो हैं… उन पर Corruption के कई charges हैं… सम्पति हड़पने और अन्य प्रकार के भ्रष्टाचार के कई मामले उन पर हैं.. और इस वजह से वह कई बार जेल भी गई गई हैं.

Elections का Boycott करना उनका प्रमुख शौक रहा है… 1986, 2014, 2018 और 2024 के elections का उन्होंने Boycott किया था.

2018 में वह Foreign Funding के मामले में. फिर से जेल गई.

और उसके बाद उनकी पार्टी ने शेख हसीना की पार्टी पर चुनावों में गड़बड़ करने का आरोप लगाना शुरू कर दिया… और 2024 के चुनावों में भी इसी कारण से Boycott किया.

2024 के चुनावों में शेख हसीना की सरकार को पूर्ण बहुमत मिला.. और उसके बाद से ही देश भर में बवाल शुरू हो गया.

बांग्लादेश के छात्रों को भड़काया गया आरक्षण के नाम पर……सरकार को पता था इसके पीछे BNP और  आतंकवादी संगठन हैं….. फिर भी सरकार ने काफी कड़ाई से काम लिया…हसीना सरकार ने पुलिस और आर्मी को कड़ी कार्यवाही करने के आदेश दिए… इसके बाद कई कॉलेज के बच्चे मारे गए… जमात के लोग मारे गए.

और यही चिंगारी आग बन गई…कहते हैं एक लाश ही बहुत है देश में गृहयुद्ध करने को… और यहाँ तो बहुत सारा बारूद पूरे देश में फैला दिया गया था…..और आज बांग्लादेश बर्बादी के मुहाने पर है.

शेख हसीना ने भ्रष्टाचार पर कड़े कदम उठाये.. भ्रष्ट नेताओं को जेल में डाला…. एक Foreign Funding Protest को बुरी तरह कुचला…… उन्होंने वह हर काम किया जो एक देशभक्त चाहता है…. लेकिन फिर भी सत्ता छोड़ कर देश से भागने को मजबूर हुई.

ऐसी ही कड़ाई वाला काम Trump ने भी किया था…. उन्होंने भी पहले ही दिन से Leftist Cabal और Deep State को आँखें दिखाई……दुनिया भर में लड़ाई बंद करवाई…. हथियारों की Industry को गहरा झटका दिया…. अरब देशों की इजराइल से दोस्ती करवाई.. North Korea गए शान्ति के लिए…..फर्जी Woke Liberal और Feminists उनके हमेशा निशाने पर रहते थे.

लेकिन हुआ क्या??

उनकी सत्ता के आखिर कुछ महीने देखिये.. मैंने इतिहास में किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति को इतना असहाय नहीं देखा.

उन्हें सभी बड़े Global Platforms, Social Media Platforms पर Ban कर दिया गया…. वो भी उनके राष्ट्रपति पद पर रहते हुए… अमेरिकी कंपनियों द्वारा.

उनके Official Twitter Handle को Restrict किया गया…. Covid का सारा ठीकरा उन पर फोडा गया… और Media ने उनके और उनके समर्थकों को खुले आम Censor किया… उन पर कई तरह के case लगाए गए.. गड़बडियों के आरोप लगाए गए… और अंततः उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया गया.

सत्ता से हटने के बाद आप कुछ नहीं कर सकते. Trump पर तो हत्या का प्रयास भी हुआ.

कुलमिलाकर बात यही है कि शेख हसीना, Trump और मोदी… तीनों ही एक ही नाव में सवार हैं….. हसीना और Trump ने डंडे की राजनीति करी… खुलेआम राजदंड का उपयोग किया.. और आज बाहर हैं.

वहीं मोदी की अलग Strategy रहती हैं… उनका असर आपको तुरंत ना दिखे.. लेकिन होता जरूर है.

क्या लगता है.. शाहीन बाग़ में लट्ठ नहीं बज सकते थे.. या भारत विरोधियों को ठीक नहीं किया जा सकता था?

बिलकुल किया जा सकता था… लेकिन ऐसे में अगर कोई भड़काऊ कार्यवाही हो जाती…. तो बात बिगड़ भी सकती थी. अगर आपको याद हो.. तो शाहीन बाग़ जैसे protest करवाने वाली PFI को एक ही रात में नष्ट कर दिया गया था…. मामला सारा Timing का रहता है.

दरअसल दुश्मन तो इसी ताक में था.. कि सरकार कड़ा कदम उठाये और उसके बाद देश भर में आग लगे…. केरोसीन तो उन्होंने फैला ही रखा है पूरे देश में…. बस माचिस भर दिखाने की देर है.

इस मुद्दे पर भी लिखा था बहुत पहले… कैसे एक लाश देश में गृहयुद्ध करवा सकती है.

इसे पढ़िए और समझिये की परदे के पीछे क्या क्या खेल चलते हैं.. और हम कैसे ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठे हैं.
★★★★☆★★★★★

फरवरी 2021 का लेख
क्या ‘एक मौत’ गृहयुद्ध करवा सकती है, सरकारें बदल सकती है???

* लेख लंबा है, इत्मीनान से पढ़ियेगा

26 जनवरी को एक कथित किसान नवनीत सिंह की मौत हो गयी। मीडिया ने हल्ला मचाया कि पुलिस ने गोली मार दी, लेकिन CCTV फुटेज से पता लगा कि नवनीत साहब तो स्टंट कर रहे थे, तेजी से ट्रेक्टर चला कर बैरिकेड्स पर चढ़ा दिया, जिससे ट्रेक्टर पलटा और उसकी मौत हो गई।

लेकिन इस एक अदद हिस्से में आई मौत को विपक्ष और मीडिया, येन केन प्रकारेण…..पुलिस के अत्याचार से जोड़ने में लगी रही। फिर चाहे वो मीडिया की फर्जी स्टोरी हो, जिसमे एक डॉक्टर ने कथित रूप से कहा कि ‘our hands are tied’ , मतलब सरकार ने दबाव बना रखा है…..कुल मिलाकर ये दिखाया जा रहा था कि मौत गोली मारने से ही हुई है। बाद में रामपुर के CMO ने बाकायदा बयान दिया और स्टेटमेंट जारी किया कि मौत एक्सीडेंट से ही हुई, शरीर से कोई गोली नही मिली।

लेकिन गिद्धों ने तो आतंक मचा दिया, सोशल मीडिया पर पोस्ट्स, फर्जी आर्टिकल्स घूम रहे थे। फिर FIR हुई और अब सरकार एक्शन लेगी और कथित ‘सेक्युलर-लिबरल’ गैंग का रोना धोना शुरू हो जाएगा।

यहां सवाल ये है, कि इस एक्सीडेंट से हुई मौत को क्यों पुलिस द्वारा गोली मारने पर जोर दिया जा रहा है? क्या इस मौत से माहौल बदल सकता है? क्या इससे गृहयुद्ध छिड़ सकता है? क्या सरकार जा सकती है?

इन सबके उत्तर हैं……हाँ

चलिए आपको एक कहानी सुनाते हैं…..शायद तब समझ आये कि आखिर चल क्या रहा है आपके आस पास

इस कहानी की शुरुआत होती है 17 दिसंबर 2010 को, जिस दिन ट्यूनीशिया के एक आम नागरिक मुहम्मद बुज़ीजी ने अपने आपको आग लगा ली थी। वो काफी हद तक जल गए थे, और 4 जनवरी 2011 को उनकी मौत हो गयी।

आग क्यों लगाई??
मुहम्मद बुजीजी एक आम नागरिक थे, नौकरी चली गयी, काम धंधा मिला नही, इसलिए एक सब्जियों की दुकान लगा ली। नगरपालिका वाले आये और रिश्वत मांगने लगे, नही देने पर उनका सारा सामान उठा कर ले गए। इस घटना से दुखी हो कर उन्होंने आग लगा ली, और बाद में उनकी मृत्यु हो गयी।

अब थोड़ा फ्लैशबैक में चलते हैं….मिडिल ईस्ट और अफ्रीका के जितने भी इस्लामिक देश हैं, कुछ एक को छोड़ कर सभी मे तानाशाही/राजशाही थी या फिर किसी एक ही शासक का राज चल रहा था। लोग वहां के शासन से परेशान थे। कानून व्यवस्था ठीक थी, लेकिन कामगारों के कानून और नौकरियों को लेकर काफी समस्याएं थी।

इजिप्ट हो, अल्जीरिया हो, ट्यूनीशिया हो, वेस्टर्न सहारा इलाका हो, यमन हो, जॉर्डन हो…इन सभी देशों में कहीं ना कहीं सत्ता विरोध पनप रहा था। इसके पीछे मुख्य कारण गरीबी, नौकरियों की कम संख्या, हड़ताल, लंबे समय से सत्ता का ‘एक’ ही हाथ मे होना था।

इन सभी देशों में 2004 से ही छोटे मोटे प्रदर्शन होते रहे, लेकिन सरकारें सुरक्षित थी। छोटे मोटे उपद्रव होते रहे….लेकिन ऊपर की सतह पर सब शांत ही दिखता था।

2009-2010 में स्थिति बदली….सोशल मीडिया पैर जमा चुका था…भारत मे लोग तब ट्विटर से अनजान थे, और फेसबुक को दोस्तो से जुड़ने का एक माध्यम मात्र माना जाता था। लेकिन मिडिल ईस्ट में यही सोशल मीडिया अगले 1-2 साल में एक बहुत बड़ी सुनामी लाने वाला था।

अब वापस आते हैं बुजीजी कि मौत पर। जिस दिन बुजीजी ने अपने आपको आग लगाई, ट्यूनिशिया में एकाएक बवाल शुरू हो गया। ऐसा लगा कि शायद जिस घटना का इंतज़ार था, वो घट गई है। पूरे ट्यूनिशिया में जबरदस्त सत्ता विरोध होने लगा। देखादेखी आस पास के देशों में भी उपद्रव शुरू हो गए।

4 जनवरी 2011 को बुजीजी की मौत हुई, और पिछले 19 दिनों से ‘एक मौत’ के इंतज़ार में बैठे गिद्ध अब काम मे लग गए। सोशल मीडिया का जम कर इस्तेमाल हुआ। ढेरो ट्वीट्स, पोस्ट्स, फोटो, वीडियो शेयर होना शुरू हुए। उंस समय तो Fake News का कांसेप्ट भी लोगो को समझ नही आता था…..लेकिन गिद्धों को इस सोशल मीडिया की ताकत का पता था। कुछ ही घंटों में पूरे मिडिल ईस्ट और अफ्रीका में लाखों वीडियो और पोस्ट, जिनमे सरकारी अत्याचार दिखाया जा रहा था (सच और झूठ) हर इंसान के फ़ोन में पहुँचा दिए गए।और उसके बाद जो हुआ, उसकी कल्पना भी नही की थी किसी ने।

अरब स्प्रिंग – Arab Awakening
जनवरी 2011 से दिसंबर 2012 तक, मिडिल ईस्ट ,अरब और अफ्रीका के देशों ने एक अचंभित करने वाला कृत्य देखा और महसूस किया। बुजीजी की मौत ने पिछले 5-7 साल से चले आ रहे गुस्से को नफरत के विस्फोट में बदल दिया, और ये पूरा रीजन एक भयावह स्थिति में पड़ गया।

इजिप्ट, सीरिया, ट्यूनिशिया, यमन, लीबिया, बहरीन, कुवैत, सूडान, सऊदी अरब, मोरक्को, इराक़ जैसे कई देश इस आग की चपेट में आ गए। सत्ता विरोध शुरू हुआ और इसका अगला प्रतीक बना इजिप्ट का ‘तहरीर चौक’ जिसे Tahrir Square कहा जाता है। लाखो लोगो ने एक sqaure पर इकट्ठे हो कर धरना दिया और सरकारों को झुकने पर मजबूर कर दिया।

तौर तरीके जो इस्तेमाल किये गए
इस पूरे घटनाक्रम में पुराने तरीको के अलावा कुछ नए और अनजाने तरीके भी इस्तेमाल किये गए।

नीचे कुछ शब्द दे रहा हूँ, इन्हें कृपया अपनी डिक्शनरी में ढूँढिये,पढिये और समझिए। भारत मे भी अब आपको ये शब्द आसानी से सुनने को मिल रहे हैं, मिलते रहेंगे।

Political activism, Civil Disobedience, Civil Unrest, Protest, Defection, Insurgency, Media Activism, Social Media Activism, Riots, Self Immolation, Mutiny, Defection, Internet Activism, Urban Warfare, Silent Protests, Silent Uprising, Revolution and last but not the least ‘Huriya’…that means आज़ादी।

रातों रात सैकड़ो फेसबुक पेज बने, हजारो ट्विटर हैंडल बनाये गए। लोगो को mobilize करने का काम शुरू हुआ। लोगो को इकट्ठा करना अब काफी आसान था, फिर चाहे शांतिपूर्ण प्रोटेस्ट्स हो, पत्थरबाजी करनी हो…ये सब अब एक ट्वीट या एक फेसबुक पोस्ट से संभव था। सरकार विरोधी ब्लॉग्स और वेबसाइट की बाढ़ आ गयी, आज़ादी और ह्यूमन राइट्स के किस्से कहानी सुना कर लोगो को भड़काना शुरू किया गया। ट्यूनिशिया में एक सर्वे किया गया था, जिसमे 90% लोगो ने कहा कि इस uprising में उनका मुख्य टूल था सोशल मीडिया। सोशल मीडिया को रोकना आसान नही था, क्योंकि तब तक इसके प्रभाव के बारे में सत्ता में रहने वाले लोगो को अंदेशा ही नही था। सत्ता केवल मीडिया पर रोक लगा सकती है, यहां तो स्मार्टफोन रखने वाला हर इंसान एक पत्रकार की भूमिका निभा सकता था।

अरब स्प्रिंग से हासिल क्या हुआ?
लोगो को भड़काया गया, उन्हें ये दिखाया गया कि तुम्हारी जिंदगी बर्बाद है, आइये इस गुलामी से, इस गुरबत की ज़िंदगी से आज़ादी लेते हैं। सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया द्वारा लोगो को भड़काया गया। मोहम्मद बुजीजी की मौत, उसके जलने के दृश्य, अस्पताल में उसकी तस्वीरों से हर स्मार्टफोन को भर दिया गया। जाहिर है, जब आपको एक ही तरह का कंटेंट मिलेगा, तो भड़कना लाजिमी है। और आप किसी को भी कहें कि आपकी जिंदगी में में दुख है, कमी है, आप पर अत्याचार हो रहा है….तो 99.9% लोग किसी न किसी रूप में सहमति जता ही देंगे। लोग अमूमन अपनी जिंदगी से खुश नही हैं।

अरब स्प्रिंग की वजह से कई देशों में सत्ता पलट गई। ट्यूनिशिया, लीबिया, यमन, इजिप्ट जैसे देशो में बड़े ही हिंसक तरीके से सत्ता बदली गयी। लीबिया के तानाशाह गद्दाफी को लोगो ने अपने हाथों से मार दिया। सीरिया में असद के खिलाफ Civil war शुरू हो गया। अरब, कुवैत, बहरीन जैसे देशों ने इस अरब स्प्रिंग को ताकत से कुचल दिया। मोरक्को, जॉर्डन और फिलिस्तीन में वहां के सत्ताधीशों ने जरूरी बदलाव किए और जान बचाई।

कुल मिलाकर 61,000 लोगो की अपनी जान गंवानी पड़ी। सीरिया में सिविल वॉर की वजह से ISIS का उद्भव हुआ और वो धीरे धीरे सिरिया से होते हुए इराक़ और अन्य इलाकों तक पहुच गया। उसके द्वारा हुई कत्ल ए आम को जोड़ दें, तो ये संख्या लाखो में पहुचेगी।

गिद्धों ने जनता को एक छद्म लोकतंत्र और आज़ादी का लॉलीपॉप दिया, जनता मासूम थी और पड़ गयी इस चक्कर मे। सत्ता भी गयी, देश भी जल गया…..आज तक ये देश संभल नही पाए हैं। कोई भी चाहे तो इन देशों की इकनोमिक, न्याय व्यवस्था, आम नागरिक के जीवन स्तर, काम धंधे, आम जनजीवन के स्तर के बारे में तथ्यात्मक आंकलन करे, तो ये पता लगेगा कि 2010 से पहले और 2010 के बाद इन सभी इंडीकेटर्स में जबरदस्त गिरावट आई है।

तो सवाल है कि आखिर मिला क्या? उत्तर है ‘कुछ नही’

अब घूम फिर कर भारत पर आते हैं। किसानों का आंदोलन चल रहा है…..उससे पहले दलितों का आंदोलन चला, CAA के नाम पर आंदोलन चला, कभी जाट आंदोलन चलता है, कभी गुज्जर आंदोलन चलता है। ये सब हमारी ‘Fault Lines’ हैं…जैसे जमीन के अंदर fault lines होती हैं…उनके हिलने डुलने से भूकंप आता है…..वैसे ही ये सब हमारे देश की फाल्ट लाइन्स है। समय समय पर इनकी testing होती है। इस बार माहौल एकदम गर्म था। खालिस्तानियों द्वारा इसको हवा दी गयी, मासूम किसानो को भड़का कर दिल्ली के मुहाने पर लाया गया। 2 महीने की घेराबंदी के बाद 26 जनवरी को चुना गया Action Day के लिए।

वो हर कोशिश की गई, जिससे पुलिस या सरकार को भड़काया जाए। वो हर काम किया गया जिससे किसी का भी खूब उबाल मारे और बदले में हाथ उठा दिया जाए। लेकिन एक गोली नही चली, एक भी जान नही गयी।

क्या होता अगर एक भी मौत होती?
लाल किला ‘तहरीर स्क्वायर’ में बदल जाता…..सोशल मीडिया, मीडिया और अंतरराष्ट्रीय घेराबंदी होती, देश भर में दंगे होते, सरकार को किसान विरोधी और सिख विरोधी बताया जाता….और emotional stories से मीडिया को पाट दिया जाता। उसमे हम आप जैसे ‘भक्त’ भी फंस जाते। और फिर शुरू होता India Spring या Indian Uprising….. जिसका परिणाम होता भारत मे लोकतंत्र का खात्मा। ये गिद्ध वो सब काम कर रहे थे जो arab spring के समय किये गए। आप ऊपर जा कर पढिये, और अरब की जगह भारत सोचिए….क्या ये सब अब भारत मे नही किया जा रहा?

आज गिद्ध परेशान हैं, जान बूझकर एक एक्सीडेंट की मौत को सत्ता द्वारा की गई हत्या साबित नही कर पा रहे। इन्हें दुख है कि नवनीत सिंह को मुहम्मद बुजीजी नही बनाया जा सके। इन्हें दुख है कि लाल किले तक इनके लोग पहुच गए, फिर भी सरकार ने एक भी गोली क्यों नही चलाई। इन्हें दुख है कि हजारो करोड़ की फंडिंग फूंकने के बाद भी इनके हाथ कुछ नही लगा।

चलिए गिद्धों के तो दुख है…..लेकिन आम जनता का क्या…..क्या आपको पता भी है कि पर्दे के पीछे खेल क्या चलते हैं? पैटर्न्स समझना सीखिए, घटनाओं को सही context में देखना सीखिए…..चीजें जो होती हैं, अमूमन वैसी दिखती नही। कभी कभी Inaction ही सबसे बड़ा Action होता है…..think strategically……else you will be doomed very soon……Vultures are here to stay for long…buckle up and brace for more such attacks….all they need is 1 bloody dead body.

साभार- मनीष शर्मा

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