कौशल सिखौला : इंडिया गठबंधन बहुत लंबा चलने वाला नहीं है
एक अच्छा मौका था विपक्ष के पास , जिद्द में खुद ही गंवा दिया । राजनाथ सिंह के प्रयासों से बात बन ही गई थी । चुनाव की नौबत आए बगैर सर्वसम्मति से ओम बिरला अध्यक्ष और के सुरेश उपाध्यक्ष बन जाते । संभव था कि मेलजोल का एक सिलसिला आगे बढ़ता , देश प्रगति के मार्ग पर तेजी से चलता।
लेकिन साहब , हमारे देश में इतना आसान कुछ भी नहीं है । यह जानते हुए भी कि जीत के नंबर्स नहीं हैं , ओखली में सिर डाल दिया । जाहिर है मिलकर चलते तो एक पद मिल जाता । अब दोनों हारेंगे । परंपराएं निभानी हैं तो नफ़रत की आग में झुलसना छोड़िए । दस वर्षों से कह रहे हैं हमेशा के लिए गांठ मत बांधिए । गिरहों को थोड़ा ढीला छोड़िए , बात बन जाएगी।
एक बात मानकर चलिए कि ये सत्ता का खेलमंच है । जब सत्ता मिल जाए तब और भी रास्ते खुलते हैं और लोग भी साथ आ जाते हैं । इंडिया जैसा गठबंधन बहुत लंबा चलने वाला नहीं है । कोई भी गठबंधन जो अवसर विशेष के लिए बना हो , तभी सफल होता है , जब वह अवसर मिल जाए , वह लक्ष्य मिल जाए । अन्यथा बिखराव निश्चित है । सत्ता मिलने पर गठबंधन लम्बे चलते हैं । कारण है सत्ता रूपी वह गुड जो दलों को जोड़ता है । बात विपक्ष की करें तो उस गुड की तलाश में वह गठबंधन तो करता है । किन्तु पिछड़ जाए तो पांच साल प्रतीक्षा का माद्दा विपक्ष के पास नहीं होता।
गठबंधनों की राजनीति में ठहराव दुर्लभ गुण है । अब देखिए और जरा गौर कीजिए । अखिलेश ने इंडी अलायन्स से कह दिया है कि उसे महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा के आने वाले चुनाव में सम्मानजनक सीट चाहिएं । केजरीवाल दिल्ली और पंजाब में करारी पराजय से सबक लेकर पहले ही कह चुके हैं कि अब आगे वे कोई सीट समझौता नहीं करेंगे।
लालू और तेजस्वी की तो भभूत ही उतर चुकी है । किडनी देने वाली बेटी की हार ने लालू को तोड़ दिया है । बात ममता की करें तो सही मायनों में तो वे इंडी गठबंधन का हिस्सा ही नहीं हैं । वे बंगाल में अपने दम पर जीती और खूब जीती। अराजकता रोकने में केंद्रीय सुरक्षा बल नाकाम रहे हैं।
बहरहाल लोकसभा में अब खूब खिलेगा रंग । राहुल गांधी को कांग्रेस ने नेता प्रतिपक्ष घोषित कर दिया है । मतलब राहुल को गंभीर राजनीति करनी पड़ेगी , वाणी का धैर्य रखना होगा , गोपनीयता और विश्वसनीयता का अर्थ समझना पड़ेगा । मतलब साफ है कि राहुल को अधिक अधिकार मिलेंगे तो दायित्व भी अधिक आएंगे।
संविधान का पॉकेट संस्कार हर वक्त दिखाने की जरूरत नहीं , संवैधानिक पद पर आकर उन्हें खुद भी संविधान गंभीरतापूर्वक पढ़ना होगा । अभी देखना होगा कि नेता प्रतिपक्ष बनाने से पूर्व कांग्रेस ने और घटकों की सहमति ली या नहीं । तथापि संख्या बल के आधार पर उन्हें किसी से पूछने की जरूरत नहीं है । यह जरूर है कि अठारहवीं लोकसभा में काफी कुछ नया देखने को मिलेगा । संसद नई , विपक्ष नया और सरकार नई।राजनीति भी काफी नई होने वाली है।
