राजीव मिश्रा : ऋषि सुनक.. दुनिया में चार देशों की सरकारें इसके राजनीतिक परिणामों के निशाने पर..

यूके के चुनाव अगले सप्ताह हैं. सामान्य जनमानस बुरी तरह से ऋषि सुनक की कंजर्वेटिव सरकार के विरुद्ध है.

जब कॉरोना आया था तभी मैंने कहा था कि दुनिया में चार देशों की सरकारें इसके राजनीतिक परिणामों के निशाने पर हैं… अमेरिका, ब्राजील, इंग्लैंड और भारत. इनमें से अमेरिका और ब्राजील में सत्ता परिवर्तन हो चुका है. इंग्लैंड में कंजर्वेटिव की हार लगभग तय है… बचे अकेले हम. हमारे यहां कॉरोना काम नहीं किया तो दूसरे दांव पेंच लगाए गए.. और हम बस बाल बाल बचे हैं.

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इंग्लैंड में ऋषि ने कॉरोना की स्थिति को बहुत अच्छे से संभाला.. वह उस समय चान्सलर ऑफ एक्सचेकर यानि वित्त मंत्री था और उसने लोगों को बहुत राहत दी. पूरे देश को डेढ़ साल तक बिठा कर खिलाने के बावजूद इंग्लैंड लगभग सस्ते में छूट गया था, लेकिन तबतक यूक्रेन का युद्ध आ गया. फिर भी ऋषि ने बहुत ही समझदारी से सत्ता चलाई है और नुकसान को मिनिमाइज किया है. फिर भी मीडिया और ट्रेड यूनियन्स की जुगलबंदी के सामने ऋषि की स्थिति बुरी चल रही है. लेकिन ऋषि ने चुनाव के लिए कोई उल्टे सीधे वादे नहीं किए. उसने अपना चुनावी घोषणापत्र सेंसिबल रखा है और सरकार वैसे चलाई है जैसा देश चलाने के लिए चाहिए… ना कि जैसा चुनाव जीतने के लिए.

उधर ऋषि के विरुद्ध पूरा प्रचार इस बात को लेकर फोकस्ड है कि ऋषि कितना धनी है. वैसे वह यह संपत्ति लेकर पैदा नहीं हुआ था. उसके पिता एनएचएस में डॉक्टर थे, और डॉक्टर इस देश में एक सरकारी मुलाजिम भर होता है. ऋषि ने जो कमाया है वह अपनी क्षमता और बुद्धि से कमाया है. उसकी पत्नी के पास बहुत संपत्ति है पर उसके बिना भी ऋषि बहुत धनी है. उसको फाइनेंशियल मार्केट और इकोनॉमिक्स की गहरी समझ है और यह उसके चुनावी प्रचार में दिखाई दे रहा है. लेकिन जो उसकी सबसे बड़ी स्ट्रेंथ है, जनता उसी बात से नाराज है. उन्हें ऋषि की समृद्धि से ईर्ष्या है, जलन है… उसकी आर्थिक समझ से पूरा देश क्या लाभ उठा रहा है इसका गणित नहीं है.

ऐसा नहीं है कि इंग्लैंड के दूसरे लीडर्स कोई गरीब हैं. उनके पास भी अथाह संपत्ति है… पर वह पुश्तैनी है. इन्हें पुश्तैनी संपत्ति से कोई शिकायत नहीं है. उसको वे ईश्वर प्रदत्त अधिकार समझते हैं. लेकिन स्वयं अपनी क्षमता और परिश्रम के बल पर कमाई हुई संपत्ति से उन्हें ईर्ष्या होती है. पुश्तैनी संपत्ति भाग्य से मिलती है और भाग्य से कोई क्या ईर्ष्या करेगा. लेकिन जो व्यक्ति अपने उद्यम से संपन्न होता है वह निकम्मों को यह कॉम्प्लेक्स देता है कि वे निकम्मे हैं… और यह बात बर्दाश्त नहीं होती.

यह समाजवादी अर्थशास्त्र का मूल मनोविज्ञान है.

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