सुरेंद्र किशोर : क्या सन 2024 के नीतीश कुमार को सन 2005-13 के नीतीश कुमार कभी याद भी आते हैं ?

मुख्य मंत्री जी, उन पुराने वर्षों (2005-13)को याद कीजिए और तब वाला सुशासन एक बार फिर कायम कीजिए।
दिल्ली में एन डी ए की आज की बैठक से अन्य बातों के अलावा बिहार के लिए भी एक उत्साहवर्धक खबर आई है।
मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को यह वचन दिया है कि
अब आपके साथ हम मिलकर काम करंेगे।जो कहेंगे, वह करेंगे।
इस दोस्ती से यह उम्मीद की जानी चाहिए कि अब गरीब बिहार को केंद्र से विशेष मदद मिलेगी,भले विशेष राज्य का दर्जा न मिले।
(वैसे अन्य राज्यों व बिहार में अंतर है।
आजादी के तत्काल बाद रेल भाड़ा समानीकरण नियम लागू करके केंद्र सरकार ने बिहार के साथ भारी अन्याय किया था ।
वह नियम नब्बे के दशक तक लागू रहा।


उससे उस बीच बिहार को करीब 10 लाख करोड़ रुपए से वंचित हो जाना पड़ा।
तब 10 लाख करोड़ रुपए का बिहार में निवेश हुआ होता तो बिहार आज भी गरीब नहीं रहता।)
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व्यक्तिगत तौर पर रुपए-पैसे के मामले में नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार दोनों अत्यंत ईमानदार नेता हैं।ऐसे नेता देश में काफी कम हैं।
ऐसे नेता मिलकर जब बिहार के बारे में सोचेंगे तो बिहार जरूर आगे जाएगा।
इस बीच बिहार भाजपा के शीर्ष नेता सम्राट चैधरी ने कहा है कि सन 2025 का बिहार विधान सभा चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजग लडेगा।
इस बयान का खास अर्थ है ।अब बिहार भाजपा और जदयू के बीच का दुराव कम होगा।
नीतीश कुमार को सरकार चलाने में उसी तरह की छूट मिल जाएगी जिस तरह की छूट सन 2005-13 के बीच उन्हें भाजपा से हासिल थी।
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उन दिनों तो नीतीश कुमार को भाजपा से इतनी छूट मिली हुई थी कि तब के उप मुख्य मंत्री सुशील कुमार मोदी थोड़ा उदास रहते थे।
दिवंगत मोदी जी ने एक बार मुझसे व्यक्तिगत बातचीत में कहा था कि आप नीतीश जी कहिए कि सरकार में मेरी भी कुछ बात चलने दें अन्यथा बिहार भाजपा में मेरी स्थिति कमजोर हो जाएगी।
सुशील मोदी तब यह देखते-सुनते थे कि नीतीश जी सुरेंद्र जी के प्रति अच्छी राय रखते हैं।इसलिए उन्हें उम्मीद थी कि शायद मुझसे ऐसी राजनीतिक बातें भी होती होगी।पर,ऐसा कुछ नहीं था।
इसलिए मैंने सुशील मोदी की बात नीतीश जी से नहीं कही।वैसे भी जब तक कोई नेता आपसे सलाह न मांगे, तब तक बिन मांगी सलाह नहीं देनी चाहिए।
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हाल के वर्षों में मुझे दोनों बार यही लगा था कि नीतीश कुमार को भाजपा छोड़कर कांग्रेस गठबंधन में नहीं जाना चाहिए था।
क्योंकि नीतीश जैसे ईमानदार नेता को कांग्रेस प्रधान मंत्री पद का उम्मीदवार कत्तई नहीं बनाएगी।
पर, मैंने नीतीश कुमार से इस संबंध में कोई बात नहीं की।मेरा उनसे ऐसी बात करने का कोई अधिकार भी नहीं था।
वैसे मुझे यह उम्मीद थी कि नीतीश जी फिर वापस जाकर भाजपा से जुड़ेंगे ही।
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पर,उस बीच उन दो भटकावों के कारण नीतीश कुमार की राजनीतिक छवि को धक्का लगा।साथ ही,बिहार में सुशासन को भी धक्का लगा।
अब नीतीश कुमार को अगले करीब एक-सवा साल में एक बार फिर अपने बेहतर कामों के जरिए प्रायश्चित करना पड़ेगा।
वे चाहें तो कर सकते हैं।
प्रधान मंत्री पद के लिए दो भटकावों को छोड़ दें तो नीतीश कुमार ने मुख्य मंत्री के रूप में बिहार में कई क्षेत्रों में बहुत ही अच्छे काम किये हैं।अभूतपूर्व काम।
उनकी बरोबरी का कोई अन्य नेता अभी न तो जदयू में उपलब्ध है और न ही बिहार भाजपा में।
सार्वजनिक हित में यह कहना जरूरी है कि नीतीश कुमार को चाहिए कि वे अगले बिहार विधान सभा चुनाव से पहले बिहार में कानून-व्यवस्था सन 2005-13 के स्तर पर लाएं।लोहे के हाथों से लाएं।अन्यथा लोगबाग दो शासनों के बीच का अंतर भूल जा सकते हैं।
साथ ही, बिहार के सरकारी दफ्तरों में व्याप्त भारी भ्रष्टाचार को कम करके जनता को राहत दें।

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