सर्वेश तिवारी श्रीमुख : देश को धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री जैसे नायकों की आवश्यकता क्यों है..?

चमत्कार यह नहीं है कि पण्डित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री कुछ लोगों के बारे में सटीक बातें बता देते हैं, चमत्कार यह है कि देश के बहुत बड़े वर्ग के साथ साथ “भारत का सांस्कृतिक पतन चाहने वाली विदेशी शक्तियां” भी जिस समाज के विरुद्ध सैकड़ों वर्षों से विषवमन करती रही हैं , उस समाज का एक नवयुवक अल्पायु में ही करोड़ों लोगों का नायक बना हुआ है। यह धर्म की शक्ति है।

Veerchhattisgarh

टीआरपी पाने के लिए किसी का भी अहित कर देने वाली आधुनिक पत्रकारिता के बड़े अड्डों पर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का सैकड़ों बार ट्रायल हो चुका, पर वे हर बार सबको पराजित कर के निकल आते हैं। फर्जी आरोपों से उनकी प्रतिष्ठा को चुनौती देने के प्रयास हो चुके, उन्हें अंधविश्वास बढ़ाने वाला बता कर खारिज करने के प्रयास अपनों के बीच से ही हो चुके, संगठित तरीके से उनका मजाक उड़ाया जा चुका, पर वे डटे हुए हैं, उनकी प्रतिष्ठा बढ़ती जा रही है। यह अद्भुत है।

पिछले कुछ दिनों से वे एक लम्बी पदयात्रा पर हैं। हिंदुओं को एक करने की यात्रा, सबको संगठित करने की यात्रा… उनके साथ असंख्य भक्त चल रहे हैं, सैकड़ों साधु संत चल रहे हैं। उनके साथ करोड़ों लोगों की आशाएं चल रही हैं, उनके साथ लाखों का विश्वास चल रहा है। उनके साथ देश चल रहा है। वे प्रतिदिन पन्द्रह बीस किलोमीटर पैदल चल रहे हैं, उनकी यात्रा में शामिल होने के लिए लोग विदेशों से आ रहे हैं।

लोग विह्वल हो कर उनके साथ दौड़ रहे हैं। उनके ऊपर फूल बरसा रहे हैं, उनकी जयकार कर रहे हैं। यह यूँ ही नहीं हो जाता… दरअसल शास्त्री जी वही कर रहे हैं जो यह देश चाहता है। लोग लम्बे समय से ऐसे नायकों की तलाश कर रहे थे जो उनका स्वर बनें। धीरेन्द्र बस माध्यम बने हैं, बाकी सब हिंदुओं का मूल भाव है।

वस्तुतः यह देश धर्म नहीं भूलता। संसार को धर्म और संस्कारों की शिक्षा देने वाली इस भूमि के कण कण में बसा है धर्म… यदि सचमुच आपकी निष्ठा धर्म में होगी, तो यह देश आपके साथ पैदल चलेगा। भले आप किसी राज्य से हों, किसी जाति से हों, कोई भी भाषा बोलते हों। राजनैतिक हवा में छन भर के लिए कोई भले विद्रोही हो जाय, पर हजारों वर्ष का संस्कार उसे विमुख होने नहीं देता। वह लौट ही आता है, वह लौट ही आएगा…

इस देश को धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जैसे धर्मनिष्ठ नायकों की आवश्यकता है। एक नहीं, अनेक। सैकड़ों… इस देश की सांस्कृतिक व्यवस्था जब जब डगमगाई है, उसे संतों ने ही थामा है। फिर वही होना चाहिये, फिर वही हो रहा है…

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *