योगी अनुराग : पिनडैड एसएस-टू वी-फ़ोर

ये नाम उस ब्लैक-ब्यूटी का है, जिसे पीएम मोदी ने थाम रक्खा है!

आमतौर पर, बंदूक़ें इस तरह नहीं पकड़ी जातीं। ये तरीक़ा गिटार को थामने वाला है। ज़रा उँगलियों की लोच तो निहारें, लगता है कि एक काले गिटार पर डी-माइनर कॉर्ड लगी है और बस किसी भी पल ख़ूबसूरत म्यूज़िक शुरू होगा।

-योगी अनुराग

एक कुशल योद्धा के लिए राइफ़ल और गिटार में कोई भेद नहीं होता। वो गिटार के कवर में राइफ़ल लिए रहता है। स्वर लहरियाँ निकलें या कारतूस के पुष्प, भला उसे क्या फ़र्क़ पड़ता है।

बहरहाल, बहरकैफ़।

कारतूस के पुष्प खिलाने की चेष्टा हो, तो प्रथम “पिंगल” का दरख्त उगाया जावै!

भारत में “पिंगल” शब्द के कई कई मायने हैं : एक भाषा, एक शास्त्र, एक गणितज्ञ, एक ऋषि और एक फल भी। “पिंगल का फल” यानी कि पहाड़ी पृष्ठभूमि के अंग्रेज़ीदाँ उपन्यास नायकों द्वारा नायिकाओं को दिया जाने वाला एक मशहूर तोहफ़ा, “हेज़लनट”।

आम हिंदी जनमानस इसे “पहाड़ी बादाम” कहेगा!

ये अत्यंत कठोर होता है। इसकी कठोरता का पूर्ण लाभ अचूक निशाने के पश्चात् ही मिलता है। मात्र एक गुलेल के प्रहार से इसे बड़े से बड़े जानवर की आँखों को फोड़ते हुए उसके मस्तिष्क में दाख़िल किया जा सकता है।

तमाम दुनिया में सूखे मेवे की तरह प्रसिद्ध इस “हेज़लनट” की उत्पत्ति ब्लैक सी के दक्षिणी तट से लगी भूमि पर हुई थी। वर्तमान में, तुर्की का उत्तरी तट काले सागर की टकराहटों से जूझता है। किंतु सदा से वैसा नहीं था।

प्राच्यकाल में, इस तटवर्ती भूभाग को “पोंटस” कहा जाता था। ये ग्रीक साम्राज्य की एक सामंती रियासत थी, और सूखे मेवे की सबसे बड़ी निर्यातक भी! यहीं “हेज़लनट” की उत्पत्ति हुई। यही भूमि इसके दोनों प्रयोगों की सफल प्रयोगशाला भी रही।

भले वो प्रयोग इसे खाने का हो या निशाना लगाने का, “हेज़लनट” सर्वश्रेष्ठ था। वहाँ शिकारियों को खाद्य व अस्त्र में भेद करने की आवश्यकता न रही। अब वे लम्बी लम्बी आखेट-यात्राओं पर जा सकते थे।

यही कारण रहा कि इस “हेज़लनट” की प्रसिद्धि फैलती गई। ग्रीक से निकला तो अरब जा पहुँचा। शिकारियों की इस नई भूमि पर इसका नया नामकरण हुआ।

चूँकि ये “पोंटस” से आया था, सो इसे पोंटिक / पोंटिका या पोंटिकोन कह कर क्रय-विक्रय किया गया था। अरबियों ने इसे अपने रंग में रंगते हुए “अल-बोंदिगस” का नाम दिया!

कालांतर में, उन्होंने इस “हेज़लनट” को गुलेल से ऊपर उठा कर बैरलनुमा वस्तुओं से फेंकना शुरू किया। तमाम प्रयासों के पश्चात् जब सफलता मिली तो बैरल और दाने के पूरे अरेंजमेंट को “अल-बोंदिगस” के नाम पर “बुंदूक” पुकार लिया गया।

यही शब्द तमाम भूभाग और सदियों की यात्रा करते हुए “बंदूक़” तक आ पहुँचा! इतने ऊँचे स्तर पर कि बीती सदी के “बर्तोल ब्रेख़्त” ने इसे क्रांति की सबसे बड़ी प्रेरणा तक कह डाला था!

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“हेज़लनट” जैसे सूखे मेवे से आरंभ हुई बंदूक़-डायनेस्टी, आज एसएस-टू तक पहुँच चुकी है। वही ब्लैक-ब्यूटी, जिसे एक इंडोनिशयन आर्म लांचिंग कार्यक्रम में भारतीय पीएम ने थाम लिया था।

इसकी निर्माता कम्पनी “पिनडैड” है, इंडोनेशिया की आधिकारिक सैन्य आयुध निर्माता। इस सीरीज़ का सबसे पहला मॉडल “एसएस” के नाम से बनाया गया था। जिसका अंग्रेज़ी अनुवाद होगा, असॉल्ट राइफ़ल।

इंडोनिशियाई भाषा में इसका नाम होगा : सनापन सरबू। पूरा नाम : पिनडैड सनापन सरबू!

इसी शृंखला में, दूसर मॉडल आया। उसका नाम “एसएस-टू” हुआ। जिसके कि बेसिक मॉडल में कैरिंग हैंडल को हटा कर एक सार्वभौमिक दूरबीन सॉकिट लगाया गया है, और तब वो वी-फ़ोर बनी।

पिनडैड एसएस-टू वी-फ़ोर, यानी कि चार सौ मीटर की सटीक रेंज और साढ़े सात सौ राउंड प्रतिमिनट की दर से फ़ायर करने वाली मिनी-मोंस्टर, जिसका कारतूस क़रीब साढ़े पाँच बोर का होता है।

इसकी तुलना बारह बोर और तीन सौ पंद्रह से करना योग्य नहीं। बारह बोर वास्तव में बारह का सौंवा भाग होता है और तीन सौ पंद्रह बोर उसका हज़ारवाँ।

यदि फिर भी, उसके साथ तौलना हो तो इस साढ़े पाँच को क्रमशः साढ़े पाँच सौ और साढ़े पाँच हज़ार माना जाए!

वर्तमान में ये असॉल्ट राइफ़ल बांग्लादेश, इंडोनेशिया, ब्रूनेई, इराक़, म्यांमार व अरब अमीरात के सैनिकों के साथ नमूदार होती हैं। ताई पृष्ठभूमि से प्रभावित तमाम हॉलीवुड फ़िल्मों में इस राइफ़ल का बोलबाला है।

किंतु कभी ध्यान आकर्षित न हुआ था!

वहीं जब पीएम मोदी ने इसके बैरल को एक ख़ूबसूरत कृष्णवर्णी गिटार के फ़्रेटबोर्ड की भाँति डी-माइनर कॉर्ड लगाते हुए पकड़ा, तब इसे डेंजरस ब्लैक-ब्यूटी मान डायरी में कहीं टाँक लिया गया है।

एक रोज़, ये टांका हुआ सितारा बुझ जाएगा। दुनिया की हर फानी चीज़ की तरह ये अल्फ़ाज़ भी नष्ट-भ्रष्ट हो जाएंगे। मगर ये नाम शेष रहेगा। यदि कभी मेरी कोई किताब हथियारों के इतिहास पर लिखी गई, तो उस किताब में इस अध्याय को खोजने का पता याद रहे, ये नाम याद रहे :

“पिनडैड एसएस-टू वी-फ़ोर!”

इति।

फीचर इमेज : जकार्ता, इंडोनेशिया (30 मई, 2018) ]

 

 

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