पवन विजय : पंचायत की तारीफ क्यों होनी चाहिए? अगर पंचायत को पसंद नही करोगे तो मिर्जापुर जैसी घृणित और वाहियात वेब सीरीज बनेंगी।

पंचायत की तारीफ क्यों होनी चाहिए? अगर पंचायत को पसंद नही करोगे तो मिर्जापुर जैसी घृणित और वाहियात वेब सीरीज बनेंगी।

पंचायत देखोगे तो बम बहादुर को देखोगे जो अपने कबूतर से इतना लगाव रखता है कि उसके लिए विधायक से लड़ने को तैयार हो जाता है, जगमोहन को देखोगे जो अपनी दादी के लिए आवास योजना भूल जाता है। जब उसकी दादी घर में वापस आती है तो कहता है कि ऐसा लग रहा है वह चारो धाम कर वापस आई हो। पंचायत देखोगे तो उस शहीद के बाप का दुख अनुभव कर पाओगे जो ढंग से रो भी नही पाता है, सुबह शाम बेटे की मूर्ति देखकर उस पर जो बीतती है उसे कह भी नही पाता है। पंचायत देखोगे तो पता चलेगा कि दामाद का मनुहार गांव कैसे करता है। पंचायत दिखाती है कि प्रेम कैसे सीझता है, धीरे धीरे खिलता है।

मिर्जापुर जैसी सीरीज में काम करना पाप था, पंकज त्रिपाठी कितने भी बड़े एक्टर हो जाएं लेकिन ऐसी फिल्मों से मिलने वाले पैसे उन्हे पचेंगे नही, भारतीय संस्कृति को विरूपित करने में उनकी भी हिस्सेदारी है। यह बात श्वेत असत्य है कि समाज जो देखता है वह फिल्म मेकर दिखाते हैं जबकि सच यह है कि फिल्म मेकर जो दिखाते हैं वह समाज देखता है।

साफ हवा पानी और भोजन की तरह फिल्में भी साफ होनी चाहिए नहीं तो पूरे समाज रूपी शरीर को विषाक्त और बीमार करती हैं।

पंचायत वह उदाहरण है जो बिना घटिया संवाद, क्रूर और अश्लील हुए समाज का मनोरंजन करती है, निर्माताओं का पैसा वसूल करती है। अदाकारों को पहचान देती है।

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