राजीव मिश्रा : आपका चुनाव क्या है..?
अंग्रेजों के जीवन का फेवरेट पास्टाइम है अमेरिका को कोसना. और उनके जीवन का सबसे बड़ा सुख है यह सिद्ध करना कि किस चीज में वे अमेरिका से बेहतर हैं.
पर ऐसा है कि किसी चीज में बेहतर हैं नहीं, तो ले देकर एक बात कहने को होती है कि उनका हेल्थ सिस्टम अमेरिका से बेहतर है. जैसे दीवार में शशि कपूर बोलता है कि मेरे पास मां है, वैसे अंग्रेज बोलते हैं, हमारे पास NHS है.
पिछले दिनों एक अंग्रेज कलीग ने अमेरिका के बारे में कहा – अमेरिका का सिस्टम टेरिबल है… वहां एक वायल इन्सुलिन 40 डॉलर का मिलता है…. उसकी कीमत मुश्किल से 5 डॉलर होनी चाहिए. मुझे एक तरह से खुशी है कि अमेरिकी सफर कर रहे हैं… बिना इन्सुलिन के मर रहे हैं…
वह यह बात सिर्फ एक आर्गुमेंट के लिए नहीं कह रहा था, बल्कि बहुत ही गहरे कनविक्शन के साथ कह रहा था. उसकी बात में एक पैशन था, एक घृणा थी. मैं सोच में पड़ गया कि इतनी घृणा का उद्गम कहां है?
अमेरिका को देख कर जो पहला ख्याल आया, यहां जो दस डॉलर का एक बर्गर खा रहा है वह चालीस डॉलर की एक इन्सुलिन भी खरीद लेगा यार. महीने में एक या दो वायल लगेगी. उसके लिए कोई अपनी आधी तनख्वाह थोड़े ना दे देगा…वह भी तब जब एक मामूली सी खुजली या जुकाम होने पर भी तीन सप्ताह तक GP के अपॉइंटमेंट का इंतजार करना पड़ता है.
अमेरिका के प्रति अंग्रेजों की घृणा का सोर्स मूलतः ईर्ष्या है. हम खुद अच्छे होने के बदले खुद को बुरा घोषित कर दें. इंटरनेट की भाषा में इसे “फैट लॉजिक” कहते हैं. जब एक मोटा आदमी खुराक को कंट्रोल करने और एक्सरसाइज करके फिट रहने के बदले यह घोषित कर दे कि मोटा होना ही अच्छा है, फिट रहना एक बीमारी है.
जो बात यहां के अंग्रेजों को बिल्कुल दिखाई नहीं देती, वह यहां आए इमिग्रेंट्स को तुरत दिखाई देती है. मेरा एक नाइजीरियन कॉलीग है, वह कह रहा था..इंग्लैंड और अमेरिका में बेसिक अंतर है समृद्धि के प्रति उनका दृष्टिकोण. इंग्लैंड में अगर रेड लाइट पर एक व्यक्ति अपनी दो लाख पाउंड की फरारी में आपके बाजू में आकर रुकता है तो आप उसकी ओर घृणा से देखते हो.. अमेरिका में आप उसे प्रशंसा से देखते हो… Good job Bro! Well done!!! I want one of them…
दूसरे की सफलता और समृद्धि के प्रति रेस्पॉन्ड करने के आपके पास दो रास्ते हैं.. प्रशंसा और प्रेरणा, या ईर्ष्या और घृणा. आप या तो पता करो कि उस व्यक्ति ने क्या किया, कैसे किया..उससे सीखो और स्वयं समृद्ध बनो. या उससे घृणा करो, उसे कोसो.. यह कहो कि हम यूं ही अच्छे हैं… हमारे पास भौतिक समृद्धि नहीं है तो क्या हुआ! भौतिक समृद्धि ही सबकुछ नहीं होती.
इंग्लैंड और यूरोप ने समृद्धि और सफलता से ईर्ष्या और घृणा का रास्ता चुना है, और अपने लिए दरिद्रता का. हम एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहां से हमने अपनी यात्रा अभी अभी शुरू की है. हम अपना रास्ता खुद चुन सकते हैं…
आपका चुनाव क्या है? आप समृद्धि और विकास चुनेंगे या राहुल गांधी वाला रास्ता चुनेंगे??