पवन विजय : न्याय के आदिदेव भगवान परशुराम
भगवान परशुराम के हाथ का फरसा वह दंड विधान है जिससे अत्याचारी अपना आचरण विधि के अनुरूप रखते हैं। न्याय बिना शक्ति के कभी लागू नहीं हो सकता। भगवान परशुराम की शक्ति के साथ अबद्धता न्याय स्थापित करने के लिए ही थी, उन्होंने अपने परशु द्वारा जीती गई पृथ्वी कभी अपने उपभोग के लिए नही रखी। न्याय का तकाजा यही है कि आप शक्ति के न्यासी होते हैं मालिक नही, जब भगवान राम न्याय की रक्षा हेतु अवतरित हुए तो परशुराम ने अपनी शक्ति उन्हे हस्तांतरित कर दी।
न्याय का पहला हस्ताक्षर माता रेणुका पर लगे आक्षेप को मिटाने में हुआ। जब जमदग्नि ने रेणुका का त्याग करने का निश्चय किया, बाकी के पुत्र मां के साथ चले गए जबकि पितृभक्त राम पिता के साथ ही रहे। रेणुकानंदन ने अपनी सेवा से पिता को माता से पुनः मिलाकर मातृभक्ति का अनुपम उदाहरण दिया।
अनुसुइया, लोपामुद्रा से लेकर अम्बा तक वह नारी को न्याय दिलाने के लिए लड़ते रहे।
सहस्त्रबाहु जब दत्तात्रेय द्वारा शक्ति मिलने के बाद दंभ में आकर अत्याचारी हो गया, रावण को हराने के बाद उसे लगा कि इस धरती पर केवल उसी का अधिकार है, जब उसने गायों के लालच में जमदग्नि के आश्रम पर हमला किया और ऋषि के पुत्रों समेत मार कर अग्नि कुंड में डाल दिया और गए हांक ले गया, तब राम आवेश में आए और परशु धारण कर परशुराम हुए।
इस प्रसंग में एक बात कहना बहुत आवश्यक है, तमाम जातिवादी परशुराम को समस्त क्षत्रियों का संहारक कहकर अपनी कुंठाओं को शांत करते हैं। तमाम वामपंथी परशुराम के बहाने ब्राह्मण क्षत्रिय को आपस में लड़ाते हैं। परशुराम का परशु न्याय स्थापना के लिए था, उन्होंने सहस्त्रबाहु का उसके हित मित्रों समेत संहार किया। इस क्रम में अनेक बार युद्ध हुए जिसे पूरी धरती के क्षत्रिय संहार की मिथ्या गाथा के रूप में प्रस्तुत किया गया।
वास्तविकता यह है कि भगवान राम को सारंग धनुष देकर उन्हें अधिक शक्तिशाली बनाने का कार्य अगस्त्य से पहले परशुराम ने किया। जिस यदुवंशी सहस्त्रबाहु का वध उन्होंने किया उसी यदु कुल शिरोमणि भगवान कृष्ण को उन्होंने सुदर्शन चक्र देकर अत्याचारियों के विरुद्ध युद्ध करने का शंखनाद किया।
शास्त्र की रक्षा शस्त्र के बिना नहीं हो सकती। भगवान परशुराम का अर्थ ही ब्रह्म क्षत्रिय योग है। वह न्याय के आदि देव हैं जिन्होंने न्याय के क्रियान्वयन हेतु शक्ति धारण किया और वही परंपरा भगवान विष्णु के अन्य अवतारों में हमें देखने को मिलता है।
आज अक्षय तृतीया पर भगवान विष्णु के आवेशावतार भगवान परशुराम का स्मरण करता हुआ शास्त्र और शस्त्र के संधान का संकल्प दोहराता हूं।