कौशल सिखौला : लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा और राहुल गांधी की यात्राओं में अंतर

अमेठी में कौन लड़ेगा , रायबरेली से कौन लड़ेगा ? इतनी बेफिक्री कि कांग्रेस को परवाह नहीं । राहुल वायनाड से लड़ चुके हैं , जीत भी जाएंगे । प्रियंका ने रायबरेली में लड़ने की कोई इच्छा अभी तक नहीं जताई है । उनके पति ने जरूर जताई थी , पर बात आई गई हो गई । इसके विपरीत स्मृति ईरानी ने अमेठी में अपना अपना घर बना लिया है । 2014 में भी वे लडी थीं , राहुल से हार गई थी । स्मृति ने अमेठी नहीं छोड़ी , 2019 में राहुल को हराकर सांसद बनीं । राहुल वायनाड से जीते और पांच वर्षों में केवल एक बार अमेठी गए । तो क्या राहुल आएंगे या फिर ये दोनों सीट सपा को सौंप देंगे ? सवाल खड़ा हुआ है।

यह बात साफ है कि कांग्रेस की इन दोनों सीटों पर समाजवादी पार्टी भी लड़ना नहीं चाहती । वैसे खबरें ऐसी भी आ रही हैं कि अमेठी की बजाय राहुल गांधी रायबरेली से चुनाव लड़ सकते हैं । कहा जा रहा है कि प्रियंका लोकसभा चुनाव लडना ही नहीं चाहतीं । जाहिर है कोई न कोई बात तो जरूर है । अन्यथा जिन्हें सारे फैसले खुद लेने हैं , वे ये क्यों कहते कि निर्णय का अधिकार खड़गे को दे दिया गया है ? सारी दाल बेशक काली न हो , अमेठी और रायबरेली के मामले में कुछ न कुछ काला जरूर है । दोनों सीटें पार्टी के लिए इतनी महत्वपूर्ण हैं कि सोनिया परिवार को पहले से ही इन पर कोई निर्णय ले लेना चाहिए था।

वैसे लड़ाने के लिए कांग्रेस के पास बहुत से नेता हैं नहीं । वह चाहे तो कन्हैया कुमार और उदित राज जैसे बहुत मिल जाएंगे । अब तो दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने भी बता दिया है कि प्रदेश अध्यक्ष होते हुए भी उन्हें एक ऐसा नेता आदेश दे रहा था , जिसका अपना कोई वजूद नहीं है । क्या करें , कांग्रेस पार्टी में तो यह सब चल ही रहा है । अन्यथा सूरत और इंदौर से पार्टी प्रत्याशी कांग्रेस को इस कदर धोखा तो न देते ? गिनती कीजिए , चुनावों की घोषणा होते ही कितने नेता कांग्रेस छोड़कर चले गए । कांग्रेस पार्टी की अपनी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है । हां , गठबंधन जरूर उनके काम आ सकता है।

अब देखिए , राहुल गांधी ने दो दो यात्राएं निकाली । कितना असर पड़ा ? क्या लालकृष्ण आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या यात्रा जैसा लाभ राहुल की यात्राओं से मिला ? शायद नहीं । मिलता भी कैसे , दोनों यात्राओं का हर दिन मोदी को गालियां देते हुए बीता ? वैसे दस सालों में राहुल गांधी ही नहीं , सोनिया और प्रियंका गांधी का एक भी भाषण दिखा दीजिए जिसमें उन्होंने अपनी पार्टी का कोई आर्थिक ग्राफ प्रस्तुत किया हो ? बस हर भाषण में मोदी मोदी करेंगे तो प्रचार भी मोदी का होगा और लोगों का ध्यान भी मोदी की ओर ही जाता रहेगा । चार जून अब बहुत दूर नहीं रह गई । आधी अधूरी तैयारियों वाला हारेगा , कंपलीट तैयारियों द्वारा जीतेगा । चुनाव का मिजाज ही ऐसा होता है , और क्या कहें ?

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