राजीव मिश्रा : लोकतंत्र के लिए विपक्ष का होना जरूरी एक झूठ.. मछुआरों के सिंगापुर को विश्व की आर्थिक महाशक्ति बना दिया…

एक नेता अधिक शक्तिशाली हो जायेगा, एक पार्टी को बहुत अधिक सीटें आ जायेंगी तो लोकतंत्र कमजोर पड़ जायेगा… लोकतंत्र के लिए सशक्त विपक्ष जरूरी है…

कितना जरूरी है? एक व्यक्ति के अधिक शक्तिशाली होने से लोकतंत्र कितना कमजोर पड़ जायेगा?

Veerchhattisgarh

एक लोकतांत्रिक देश है सिंगापुर. 1964 में जब से सिंगापुर मलेशिया से अलग हुआ तब से वहां एक ही पार्टी की सरकार है…PAP, यानि पीपल्स एक्शन पार्टी की. पहले 25 वर्ष जबतक ली कुआन यू प्रधानमंत्री रहे, विपक्ष को एक भी सीट नहीं आई. आज कल दो चार सीट आ जाती है लेकिन उनके जीते जी विपक्ष चौखट के बाहर ही खड़ा रहा.
क्या इसलिए कि वहां लोकतंत्र कमजोर था?

 

नहीं! इसलिए कि सिंगापुर में कहीं भी एक साथ इतने सारे मूर्ख लोग नहीं रहते थे कि सब मिलकर ली कुआन यू जैसे नेता के रहते किसी और को वोट दे दें. ऐसा नहीं है कि सिंगापुर में बेवकूफ नहीं थे. ली को अक्सर सिर्फ 70-75% ही वोट आते थे. सिंगापुर को मछुआरों के गांव से उठाकर एक आर्थिक विश्वशक्ति बना दिया, फिर भी 25-30% तो ऐसे थे जो ली के विरोधी थे. 15-20% तो मलाय शांतिदूत थे. बाकी ऐसे चीनियों की भी अच्छी खासी संख्या थी जिन्होंने मार्क्स बाबा की लाल घुट्टी पी रखी थी.

पर क्या था कि बाकी के 70-75% को कोई शक नहीं था कि उनकी जिंदगी को किसने बेहतर बनाया है. तब वहां सरकार से सवाल पूछने का काम भी सत्ता पक्ष के सांसद कर लेते थे. लोकतंत्र ठीक ठाक चल जाता था बिना विपक्ष के भी. भ्रष्टाचार के आरोप उठते थे तो उनका जवाब देना पड़ता था. अक्सर ऐसे आरोप झूठे होते थे तो उन्हें उठाने वाले को कोर्ट में घसीट कर बर्बाद कर दिया जाता था. एक बार खुद ली कुआन पर एक फ्लैट सस्ते में खरीदने का आरोप लगा तो ली ने ना सिर्फ उसका जवाब दिया, अपने को निर्दोष सिद्ध किया, बल्कि वह फ्लैट बेच कर पैसे चैरिटी में दे दिए. अच्छा भला फलता फूलता लोकतंत्र था.

अगर सशक्त विपक्ष और अस्थिर सत्तापक्ष ही अच्छा लोकतंत्र कहलाता तो जिन देशों में पांच साल में तीन बार चुनाव होते हैं वे सबसे सफल लोकतंत्र कहलाते. हमने भी ऐसा लोकतंत्र देखा है. यह झूठ है कि लोकतंत्र के लिए विपक्ष का होना जरूरी है. चुनाव होने चाहिए, जनता के पास विपक्ष को चुनने का ऑप्शन होना चाहिए. लेकिन विपक्ष इस लायक ना हो कि जनता उसे चुने तो नहीं चुना जाना चाहिए. विपक्ष में नक्सली, माओवादी बैठे हों तो वह विपक्ष संसद के बाहर ही रहे. जो आपकी जीवन भर की अर्जित संपत्ति लूटने के सपने देखते हैं उन्हें संसद तो क्या, देश में रहने का अधिकार नहीं होना चाहिए. विपक्ष पहले अपना चरित्र सुधारे, फिर चुने जाने के सपने देखे. तब तक हमें मोदी को 400+ क्या, 500+ देना होगा तो देंगे.

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