कौशल सिखौला : देखकर दुःख होगा कि पोलिंग पार्टी की महिलाएं और पुरुष कैसे रात गुजारते हैं?

कुछ भी कहें , इतना लंबा चुनाव कार्यक्रम बनाकर चुनाव आयोग से भारी चूक हो गई है । भीषण गर्मी , लू भरी हवाओं और तपते सूर्य ने चुनाव का सारा मजा ही गुड गोबर कर दिया है । पहले चरण में मतदान प्रतिशत कम होने के पीछे मौसम बहुत बड़ा कारण है । जाहिर है अब आगे के चरणों में मतदान प्रतिशत और गिर सकता है।

बेशक राजनैतिक दल इसके लिए अपने कार्यकर्ताओं की क्लास लें , चुनाव आयोग ज्यादा जिम्मेदार है । आश्चर्य की बात है कि अपने स्टार प्रचारकों को भरपूर मौका देने के लिए किसी भी राजनैतिक दल ने इस पर आपत्ति नहीं जताई । लेकिन जो सात चरण 30 दिनों में पूरे हो सकते थे , उन्हें तीन महीनों तक फैलाना बड़ी चूक लगती है । चुनाव आयोग से मौसम का हाल जानने में कहीं सचमुच ही बड़ी चूक तो नहीं हो गई ?

अगले चरणों में मौसम मतदाताओं को काफी परेशान करने वाला है । आश्चर्य की बात है कि लंबा कार्यक्रम बनाने वाला आयोग चुनाव कार्य में लगे अपने कर्मचारियों को रहने खाने तक की सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराता । मतदान से एक दिन पूर्व मतदान पार्टियां स्कूलों में बने चुनाव केंद्रों पर पहुंचकर तैयारियां शुरू कर देती हैं । चुनाव कार्य में लगे इन मतदान अधिकारियों और कर्मचारियों के सोने के लिए स्कूल कक्षाओं में गद्दे तक उपलब्ध नहीं कराए जाते । उनके खाने पीने का कोई प्रबंध जिला निर्वाचन प्रशासन नहीं करता । शहरी केंद्रों पर खैर मतदान करने वाली टीम बाजार से कुछ मंगा लेती है । लेकिन ग्रामीण और दूरस्थ केंद्रों में उनकी बुरी हालत हो जाती है।

यकीन न हो तो मतदान से एक दिन पूर्व शाम के समय मतदान वाले स्कूलों का हाल देख आइए । दुःख होगा कि पोलिंग पार्टी के महिलाएं और पुरुष कैसे रात गुजारते हैं । ऐसा पहले से होता आ रहा है । तब चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी और राजनैतिक दल उनकी मदद करते थे । राजनैतिक दल अब इतनी आपाधापी में फंसे हैं कि उन्हें अपनी ही ठौर नहीं।

लोकसभा चुनाव देश का भविष्य बनाने वाले चुनाव हैं । इनका पूरा कार्यक्रम खुशहाली के माहौल में होना चाहिए , इतनी नफ़रत , गाली गलौच और तनाव भरा नहीं । विषम परिस्थितियों में देश निर्माण का निर्णय खुले मन से नहीं लिया जा सकता । लोकतंत्र में जनता अपने भविष्य का निर्णय स्वयं करे , वही अच्छा है । जनता अपने नेताओं को उंगलियों पर नाचने को मजबूर करे वह अच्छी बात होगी । दुर्भाग्य से आज तो राजनीति अपने वोटर को नचा रही है । यह कैसी मजबूरी है?

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