मनीष शर्मा : लोकतंत्र की हत्या.. ऐसा पहले भी हुआ है
सूरत में कांग्रेस के प्रत्याशी का आवेदन रद्द हो गया, क्यूंकि उनके प्रस्तावकों के data में गड़बड़ी मिली है….. वहीं आठ अन्य लोगों ने अपने आवेदन वापस ले लिए हैं… ऐसे में वहाँ से भाजपा के प्रत्याशी का निर्विरोध चुना जाना तय हो गया है.
जैसे ही यह ख़बर आई….विपक्ष ने हल्ला मचा दिया…. हाए लोकतंत्र की हत्या हो गई… हाय मोदी हिटलर है… हाय मर गए, हाय कट गए रे.
लेकिन सत्य क्या है??
अब क्या मोदी विपक्ष के नेताओं के प्रस्तावकों के फॉर्म खुद भरें? Sign खुद करें? उसमे जानकारी खुद भरें?
अपनी गलती नहीं देखनी है इन्हें, मोदी को कोसना है.
वैसे भी निर्विरोध चुना जाना कोई नई बात नहीं है… पहले से होते आ रहे हैं….. यह लोकतान्त्रिक प्रक्रिया है.. इसमें कुछ गलत नहीं.
पहले भी ऐसा हुआ है.
In 1951, 10 candidates
In 1957, 11 candidates
In 1962, 3 candidates
In 1967, 5 candidates
In 1971, 1 candidate
In 1977, 2 candidates
In 1984, 1 candidate निर्विरोध चुने गए थे….. तब लोकतंत्र खतरे में नहीं आया.. क्यूंकि अधिकांश चुने गए नेता कांग्रेसी थे.
2012 में तो सपा की डिम्पल यादव चुनी गयी थी.
