कौशल सिखौला : सरकारी एजेंसियों का एक्शन गलत तो लोअर कोर्ट से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक उन्हें जमानतें क्यों नहीं मिलती..?
देश में भ्रष्टाचार मकड़ी के जाले की तरह फैल गया है । शायद ही कोई हो जो इस बात से सहमत न हो । चूंकि ग्राम सभाओं के दफ्तरों तक भ्रष्टाचार आम आदमी का खून चूस रहा है , अतएव प्रत्येक देशवासी इस माहौल से मुक्ति पाना चाहता है । छोटे शहरों में कभी कभार विजिलेंस की कार्रवाई होती देखी है , जिसका कोई असर भ्रष्टों पर नहीं होता।
कभी बहुत डरते डरते टेबल के नीचे से घूँस दी और ली जाती थी । आज तो लेने वाला भी बड़े धड़ल्ले से लेता है और देने वाला भी मूछें मरोड़ते हुए देता है । हमाम में सभी नंगे हैं , किसी को किसी का डर नहीं । अब पिछले कुछ वर्षों से बड़े बड़े नागों पर हाथ पड़ने लगा है तो होश उड़ रहे हैं । इन नागों में अनेक राजनेता हैं , सफेदपोश हैं , विपक्षी दलों से हैं तो असली दर्द यही है।
पिछले 10 वर्षों में केंद्रीय जांच एजेंसियों ने जितनी भी कार्रवाई की , वह विपक्षी नेताओं पर की । यह ठीक है । लेकिन इन 10 सालों में विपक्ष क्या एक भी ठोस मामला ढूंढ पाया सरकार के खिलाफ ? राफेल राफेल जरूर चिल्लाए राहुल गांधी । चौकीदार चोर है का नारा भी उछाला । विदेशी टूल किट्स को काम पर लगाया । अडानी अडानी , अंबानी अंबानी का शोर मचाया । सब टांय टांय फिस्स कुछ हाथ न आया । पैगासिस , हिंडनबर्ग , जार्ज सोरस आदि की महफिल जमाई । सब फ्लॉप निकले , कुछ काम न आया । इसके विपरीत केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्रवाई हुई तो सबूत इतने कि कोई बच ना पाया।
तो गठबंधन की रामलीला मैदान रैली में वही सब कहा गया जो जनता एक दशक से सुनती आ रही है । नया कुछ भी नहीं था । रैली में उन तमाम विपक्षी नेताओं के भाषण हुए जिन्हें सब सुनते आए हैं । श्रोता भी विपक्षी दलों के कार्यकर्ता थे । हां , टीवी चैनलों पर लोगों ने सुना । चुनाव शुरू हो चुके हैं तो अब रोजाना यही कुछ देखने सुनने को मिलेगा । ऐसी ही शुरुआत पीएम ने मेरठ रैली के माध्यम से की । रैली में उत्साह था और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वोट साधे जा रहे थे । अब मेरठ रैली से एनडीए के वोट बढे या दिल्ली रैली से डॉट डॉट इंडिया के , सब आपके सामने है । बहरहाल चुनाव अब असली रंग में जरूर आ गया है ।
प्रधानमंत्री ने कल मेरठ से अपनी चुनावी रैली की शुरुआत की । संयोग यह है कि 2014 और 2019 में भी यह शुरुआत पहली क्रांति के गढ़ मेरठ से ही हुई थी । प्रधानमंत्री का यह दावा काफी ठीक है कि इंडी गठबंधन बनाने के पीछे भ्रष्टाचारियों पर तेज कार्रवाई ही मुख्य कारण है । भ्रष्टाचारी नेताओं पर सरकारी एजेंसियों का एक्शन गलत है तो लोअर कोर्ट से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक उन्हें जमानतें क्यों नहीं मिलती । क्या स्वयं सोनिया और राहुल नेशनल हैरल्ड मामले में जमानत पर नहीं हैं ?
यदि सरकार बदले की भावना से काम कर रही है तो कोर्ट ने अब तक उन दोनों को निर्दोष साबित क्यों नहीं किया ? खाली सरकार और एजेंसियों पर दोष मत मढ़िए ? जरा अपने गिरेबान में भी झांककर देख लीजिए । आप लाख छिपाइए , लाखों बातें बनाइए , जनता सब जानती है । जनता के जवाब का समय आया तो उसके फैसलों को स्वीकारने की आदत भी डालिए ? निःसंदेह , जनता की समझ से कर्रवाइयाँ यदि गलत हुई तो सरकार हारेगी । ठीक हुई तो विपक्षी गठबंधन ढूंढते रह जाएगा ?
