पंकज झा : आइये अंधविश्वासी बनें!.. आस्थाओं को जीवित रखें…

आइये अंधविश्वासी बनें!

वह प्रचंड मूर्ख ही होगा जिसके पास कोई ‘अंधविश्वास’ न हो। चरम मूर्ख स्वयं को परम वैज्ञानिक चेतना से संपन्न मानते हैं। वे अपने पिता को पूज्य समझने का अंधविश्वास तक नहीं पालते। जनक को वे महज ‘विकी डोनर’ समझते हैं।

-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अभिवादन करते लेखक पंकज झा।

साहित्य, संस्कृति, कला, संगीत… सभी बिना ‘अंधविश्वास’ के संभव नहीं है। अंध कहे जाने वाले विश्वास ही हैं जो आपके जीवन को सरस बनाते हैं।

कथित वैज्ञानिक चेतना तो आपके चेहरे को माइक्रोस्कोप से देख कर ऐसा बताएगा जिसे देख कर ही आपको उबकाई आ जाये। असंख्य कोशिकाओं का ढेर आपका शरीर ऐसा गलीज दिखेगा मानो आप कोई कम्युनिस्ट कीड़े हों। या कि वर्मी कंपोस्ट। फिर भी यह अंधविश्वास ही है जो आपको आश्वस्त करता है कि आप अत्यधिक सुंदर हैं, देखते रहें आपको, जैसे चंद्रमा को निहारते रहते हैं हम।

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क्योंकि हमने चांद पर पहुंच कर वहां की उबर-खाबड़ कुरूप जमीनों को देख लिया है, तो आगे से चांद से आपके महबूबा की तुलना बंद नहीं हो जाएगी। या आगे से – कुछ ने कहा वो चांद है, कुछ ने कहा चेहरा तेरा- पर कोई मुकदमा करने पहुंचने वाला नहीं है कि चांद मियां जैसा कुरूप क्यों कह दिया हमें। है न?

लाख वैज्ञानिक हमें बतायें या आध्यात्मिक गुरु भी कि बड़ा ही घिनौना है हमारा शरीर, कि अस्थि चर्म मल मूत्र का कोठार के अलावा कुछ भी नहीं, फिर भी आईने में स्वयं को निहारते हुए, उस पर बलि-बलि जाने, अपनी ही सुंदरता पर आत्ममुग्ध या ‘उनके’ सौंदर्य पर मुग्ध-मुग्ध हो जाना ही अंधविश्वास है। इसे जीवित रखिए अन्यथा जीवन आपको कॉमरेड टाइप घिनौना हो जाएगा। जीवन को सत्य, शिव और सुंदरता से भरपूर करता है वह विचार, जिसे हम ‘आस्था’ कहते हैं। उसे ही अंधविश्वास कहते हैं वे।

आइये… जीवित रखें अपने अंधविश्वासों को। उन सभी अंधविश्वासों को, जिसे आप ‘आस्था’ कह सकें। प्रत्यक्ष नुकसान पहुंचाने वाली कुछ चीजों को निस्संदेह अपने अनुभवों के आधार पर छोड़ते चलें, किंतु अपनी आस्थाओं को कभी तर्क या कथित वैज्ञानिक चेतना का मुंहताज न होने दें। आपका विश्वास आपको विश्वासपात्र बनायेगा। अन्यथा आपमें और विश्वासघाती वामजादों में कोई अंतर नहीं रह जाएगा।

आइये सकारात्मक अंधविश्वासी अर्थात् आस्थावान बनें। अपनी परंपराओं और संस्कृति के प्रति टूट कर विश्वासी बनें। आइये मनुष्य बनें न कि मल-मूत्र का ढेर जैसा कि कम्युनिस्ट स्वयं को समझते हैं।

ठीक?

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