NRI अमित सिंघल : नारे लगाने से गरीबी जाती तो इंदिरा…
पिछले दिनों दो रिपोर्ट एवं आंकड़े प्रकाशित हुए जो कन्फर्म करते है कि भारत से भीषण निर्धनता लगभग समाप्त हो गयी है तथा भारत की अर्थव्यवस्था 8 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है।
अब जिसे इन आंकड़ों पर संशय करना है, उसे कोई रोक नहीं सकता।
फिर भी, इस लेख में इन आंकड़ों की अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रो से इंटरकनेक्टेडनेस या अंतर-सम्बन्ध को समझने का प्रयास करते है।
अगर लगभग सभी नागरिको को बैंक अकाउंट, घर एवं भूमि का रजिस्ट्रेशन, शौचालय, नल से जल, आयुष्मान, सस्ती दवाई, कुकिंग गैस, मुद्रा लोन, अन्न इत्यादि बिना किसी बिचौलिए के सीधे देने की व्यवस्था कर दी जाए, तो भीषण निर्धनता स्वतः समाप्त हो जाती है।
क्योकि इन सब सुविधाओं के बाद व्यक्ति आजीविका के साधन निकाल सकता है, बच्चियों को स्कूल भेज सकता है। कारण यह है जीवित रहने के प्रतिदिन के संघर्ष (चूल्हे के लिए ईधन, जल, सर के ऊपर छत, अन्न, स्वास्थ्य एवं पूँजी का प्रबंध) में ही एक निर्धन परिवार दिन-रात बिजी रहता था। जब इन सभी चिंताओं से मुक्ति मिल गयी, तो व्यक्ति अपना ध्यान धन अर्जित करने में लगा सकता है।
मोदी सरकार ने यही किया भी, जिसका परिणाम आंकड़ों में दिख रहा है।
अगर नारे लगाने से निर्धनता समाप्त हो गयी होती, तो यह कार्य इंदिरा के समय में ही संपन्न हो गया होता।
द्वितीय, अगर अर्थव्यवस्था 8 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है, तो इसका प्रभाव कहाँ और कैसे दिखाई दे रहा है?
उदाहरण के लिए, निर्माण या कंस्ट्रक्शन क्षेत्र ने 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि रजिस्टर की है। लेकिन अगर यह आंकड़ा सही है, तो इसका प्रभाव स्टील एवं सीमेंट पर भी दिखाई देना चाहिए। क्योकि बिना इस्पात के निर्माण कैसे हो सकता है?
यस, स्टील उत्पादन एवं उपभोग में 14.5% की वृद्धि हुई है; वहीं सीमेंट के उत्पादन एवं खपत में 9% की वृद्धि रजिस्टर हुई है।
इससे भी अधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि वर्ष 2021-22 में सीमेंट की सर्वाधिक 29% खपत ग्रामीण हाउसिंग क्षेत्र में हो रही है, जबकि इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र (सड़क, पुल, एयरपोर्ट, बंदरगाह इत्यादि) में 23% सीमेंट खपा लिया था।
मैन्युफैक्चरिंग में 10% वृद्धि हुई है।
इसी प्रकार बिजली की खपत, हवाई/रेल द्वारा यात्री-माल ढुलाई, पूँजी निर्माण (आखिरकार पैसा, पैसा को खीचता है) में भी समानांतर या अनुरूप बढ़ोत्तरी देखी गयी है।
अंत में, जब मैं परिवार सहित वर्ष 2002 में फ्रांस गया था तो मैंने देखा कि मेरी स्कालरशिप (जो फ्रांस के न्यूनतम वेतन के सामान थी) का लगभग 15% भोजन में व्यय हो रहा था। जबकि भारत में मेरे वेतन का 30% खाने-पीने में लग रहा था।
लेटेस्ट आंकड़ों से पता चलता है कि भारतीय अब भोजन पर कम खर्च कर रहे हैं और जीवन की अन्य आवश्यकताओं, जैसे कि टीवी, फ्रिज इत्यादि, पर अधिक खर्च कर रहे हैं। दस वर्ष पूर्व ग्रामीण क्षेत्र में लोग अपनी आय का 53% भोजन में लगा रहे थे जो अब गिरकर 46% रह गया है। गाँव में आय का आधे से कम भोजन में लगना दर्शाता है कि भीषण निर्धनता समाप्त हो गयी है।
चूंकि निजी उपभोग के आंकड़े कुछ देरी से सामने आते है, मुझे आश्चर्य नहीं होगा अगर अगले वर्ष पता चले कि ग्रामीण क्षेत्र में आय का केवल 40% भाग भोजन में लग रहा रहा है।