NRI अमित सिंघल : PM मोदी ने पूर्ण बहुमत रहते विरोधियों को निपटाया क्यों नहीं..!!

एक टिप्पणी आई कि मोदी जी ने अपने विरोधियों को जब वह पूर्ण बहुमत में थे उन्हें खत्म क्यों नहीं किया इसके पीछे क्या कारण है? इस लेख में उत्तर देने का प्रयास किया है।

मानव मन एवं कर्म से विरोधाभास से भरा है। उदाहरण के लिए, हमें उत्तम क्वालिटी की AC ट्रेन भी चाहिए, साथ ही नॉन-AC वाला भाड़ा भी चाहिए। हमें चौबीसो घंटे बिजली भी चाहिए, साथ ही वह बिजली लागत से कम दर पर या फ्री में चाहिए। हमें भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहिए, साथ ही भ्रष्टाचार में अपराधी ठहराये हुए सजायाफ्ता नेताओं से हाथ भी मिलाना है। हमें परिवारवाद, भाई-भतीजावाद से मुक्ति भी चाहिए, साथ ही अखिलेश-सोनिया-प्रियंका-राहुल के समक्ष साष्टांग दंडवत भी होना है।

एक परिवार को ही ले लीजिए। भाई-भाई, बहन-बहन, भाई-बहन में नहीं पटती; और इन सब का कई बार माता-पिता से वैचारिक मतभेद होता है। एक ही धर्म में अनुनाईयों में उस धर्म की व्याख्या को लेकर मतभेद है। एक ही पुस्तक, दूत एवं भगवान को मानने वाले स्वयं एक-दूसरे से कौन सच्चा अनुनायी है, इस बात लो लेकर बम विस्फोट कर देते है, गला काट रहे है। सनातन समाज के शाकाहारी-मांसाहारियों में मतभेद है – एक दूसरे के विरोध में खड़े है। राष्ट्रवादियों में निजी क्षेत्र एवं सरकार के रोल को लेकर मतभेद है; टैक्सेशन को लेकर अलग-अलग विचार है। सिख समाज में मांसाहार एवं शराब के सेवन को लेकर मतभेद है।

यही विरोधाभास प्रान्त एवं राष्ट्र के स्तर पर दिखाई देता है। पॉलिटिक्स में दिखाई देता है।

इंदिरा गाँधी ने सम्पूर्ण विपक्ष को जेल में डाल दिया था, प्रताड़ित किया था। लेकिन तब भी वह उन्हें कण्ट्रोल नहीं कर पायी।

पड़ोस के आतंकी क्षेत्र में सेना ने कई बार सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया, विपक्ष को जेल में डाल दिया, यहाँ तक कि एक प्रधानमंत्री को फांसी पर लटका दिया, कई लोगो को मार दिया, फिर भी प्रतिरोध जारी है। आज वहां कई क्षेत्रो में भीषण अशांति है, दिवालिया हो चुका है।

पड़ोस के म्यांमार में मिलिट्री शासको ने विपक्ष का दमन कर दिया; प्रमुख विपक्षी नेता वर्षो से जेल में है; आज वह देश अशांति एवं वित्तीय विध्वंस से जूझ रहा है। प्रतिरोध, प्रदर्शन और हिंसा का तांडव चल रहा है।

अमेरिका में पॉलिटिक्स दो पाटो में बँटी हुई है। दो राष्ट्रपतियों की हत्या कर दी गयी थी, हाल ही में एक पूर्व राष्ट्रपति को मारने का प्रयास किया गया है।

सीरिया में विरोधियों को हिंसा द्वारा कुचलने का प्रयास किया गया। दोनों ओर से दमन के नाम पर हत्या की गयी, महिलाओ को पाश्विक कृत्यों का सामना करना पड़ा। आज वहां खंडहरों का ढेर है। अलेप्पो जैसा हज़ारो वर्ष पुराना शहर नष्ट हो चुका है।

यही स्थिति माली, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, बुर्किना फासो, निजेर इत्यादि राष्ट्रों की है जो जन विरोधाभास को नहीं संभाल पाए।

इसी जन विरोधाभास को ना समझ पाने के कारण युगोस्लोवाकिया छिन्न-भिन्न हो गया, जबकि वह सोवियत यूनियन की तरह आर्थिक संकट नहीं झेल रहा था।

कुछ तानाशाह राष्ट्रों ने प्रदर्शनकारी छात्रों को टैंक के नीचे कुचल दिया था।

हाल ही में रवांडा के राष्ट्रपति 99% वोट से पुनः चुने गए है। युगांडा के राष्ट्रपति लगभग 38 वर्ष से सत्ता में है।

लेकिन भारत में यह संभव नहीं है।

स्वतंत्रता के बाद के एकाध चुनाव या इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद वाले चुनाव को छोड़ दे, कोई भी दल 50 प्रतिशत वोट के आस-पास नहीं पहुंच पाया है। मोदी जी भाजपा का वोट शेयर 23-26 प्रतिशत (1998, 1999, 2004, 2009) से बढ़ाकर 31 (2014), फिर 37 (2019 एवं 2024) पर ले आये है। लेकिन अब सुई 37 प्रतिशत पर अटक गयी है। NDA के द्वारा खींच-खांचकर 45 प्रतिशत वोट शेयर ले गए है।

लेकिन इसमें भी सभी सहयोगी दलों में कुछ क्रिटिकल विषयो पर सहमति नहीं है। हिन्दू हृदय सम्राट वाली उद्धव शिव सेना अब भाजपा की घुर विरोधी है। अकाली अलग है।

अतः आप 37 प्रतिशत वोट शेयर के साथ कैसे विपक्षी विचारधारा और उनके सपोर्टर को समाप्त कर सकते है?

राजनीति शास्त्र में हंस मोर्गेंथाऊ पॉलिटिक्स की अवधारणा के बारे में पढ़ाया जाता है। वे मानते है कि पॉलिटिक्स के द्वारा पावर कण्ट्रोल किया जाता है। पावर के प्रयोग का अर्थ यह है कि एक मनुष्य या राष्ट्र के द्वारा अन्य राष्ट्रों या मनुष्यों के मन और कार्यों पर नियंत्रण करना। ध्यान दीजिये: पावर का अर्थ है राष्ट्रों या मनुष्यों के मन और कार्यों पर नियंत्रण करना। ना कि उन्हें सैन्य शक्ति द्वारा पराजित करना।

भारत का उद्धार केवल भारतीयों के मन और कार्यों पर नियंत्रण द्वारा संभव है। तभी सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास … यह जानते हुए भी कि एक समूह का वोट नहीं मिलेगा। ठीक वैसे ही जैसे इस समूह का मन एवं कार्य पर किसी कुत्सित विचारधारा का नियंत्रण है जिसका लाभ कुछ राजनीतिक दल लगातार उठा रहे है।

लेकिन राष्ट्रवादियों की अधीरता, जातिवाद, त्वरित परिणाम की अपेक्षा, तुच्छ लाभ के लिए नेतृत्व पर अविश्वास ने मार्ग कठिन कर दिया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *