स्वामी सूर्यदेव : धर्म.. धैर्य और अधैर्य

धर्म,,,,

योगेश्वर श्रीकृष्ण जब धर्म के बारे में कहते हैं कि सब धर्मों को त्याग और मुझ एक की शरण में आ,, तब वे आपके बाहरी #सामाजिक दायित्व की बात करते हैं,, आप पिता हैं तो आपका पितृ धर्म है संतान के प्रति,, आप बेटे हैं तो पुत्र धर्म है,, आप छात्र हैं तो विद्यार्थी या शिष्य का जो धर्म होता है उसका पालन करना है,, तो वे कह रहे हैं कि कौन तेरा दादा है कौन बेटा है कौन भाई है,, तू ये सब धर्म छोड़ और मैं जो कहता हूं पहले उसे सुन फिर कर,,

महर्षि  कणाद जब धर्म की बात करते हैं तो वे पदार्थ के धर्म की बात करते हैं,, जैसे अग्नि का धर्म है ताप और प्रकाश, अगर अभिव्यक्त है जैसे चूल्हे में यज्ञ में बल्ब में दिए में तो ताप भी देगी और प्रकाश भी,, अनाभिव्यक्त है जैसे शरीर में या जठराग्नि में तो सिर्फ छुने पर ताप देगी,, जल का धर्म है शीतलता,, वो किसी भी हालत में शीतल ही रहता है, तुम लक्कड़ आदि लगाकर गैस पर चढ़ाकर गर्म कर भी दोगे तो सहायक कारण लक्कड़ आदि हटते ही जल फिर अपने स्वाभाविक धर्म शीतलता में आ जाएंगे,, इससे अन्य एक और महान व्याख्या महर्षि कणाद ने धर्म की दी है वह फिर कभी,,

ऐसे ही और भी अनेकों व्याख्या हैं,, लेकिन आज जो कहना है सीधे उसपर चलते हैं,, आपके एक मनुष्य के रूप में आंतरिक विकास के लिए आपकी चेतना के ऊर्ध्वरोहण के लिए महाराज मनु ने धर्म को जरूरी बताया,, शिष्यों ने पूछा कि धर्म कैसा होता है हमे कैसे पता चलेगा,,?? तो महाराज मनु ने धर्म के दस लक्षण बताए वहां पर,,

दसों को यहां लिखने की जरूरत नहीं मैं पहला लक्षण लिख देता हूं,, धैर्य,, यानी जब आप मनुष्य होने की यात्रा पर चलते हैं तो आपके अंदर ये दस लक्षण होने चाहिएं तभी माना जायेगा आप धर्म पर चल रहे हैं,, तो प्रथम है धैर्य,,

अब जितने मित्र पढ़ रहे हैं वे स्वयं ही तरफ देख लें कि यह प्रथम लक्षण है या नही,, बाकी के नो लक्षण तो दूर की कौड़ी है,,
बैठे हैं रेलवे स्टेशन पर और बार बार खड़े होकर झांक कर पटरी पर देख रहे हैं कि रेल आई नही,, अरे भाई वो माचिस की डिब्बी नही जो आपको बिना दिखे निकल जायेगी,, लेकिन अधैर्य गजब का देखा हमने रेलवे स्टेशनों पर,,
मान लो किसी के पास मोबाइल है, मान क्या लो सबके पास है ही,, हर दो तीन मिनट में देख रहे हैं खोल खोलकर की क्या है क्या आया क्या हुआ,, हद बैचनी मची हुई है,,

ट्रैफिक जाम में फंसे हुए हैं,, तीन किलोमीटर लंबी लाइन है,, लेकिन दे भोंपू दे हॉर्न पगलाए जा रहे हैं,, खुद के दिमाग में भी, दूसरों की खोपड़ी भी भनभना दी है एकदम,,

होटल में बैठे हैं भोजन प्रसाद करने,, उचक उचक कर देख रहे हैं कि वेटर क्या कर रहा है,, बात बन जाए तो अंदर घुस जाएं रसोई के इतने बैचेन,,

गए हैं तीर्थ,,आज एक बहन आई दौड़ती हुई बोली दस मिनट मिलना है दर्शन करना है महाराज,, फिर फलाने ज्योतिर्लिंग जाना है शाम को,, सुबह उज्जैन जाना है अभी चित्रकूट से आई हूं कल काशी में थी,, अरे ऐसी कैसी बेचैनी भाई,,

लाखों उद्धरण हैं उपस्थित, ज्यादा की जरूरत नहीं,, पढ़कर अपनी तरफ दो चार सेकेंड देखें और पता करें कि स्वयं को धार्मिक मानने का दंभ तो नही पाले बैठे भयंकर अधैर्य के शिकार होकर,, अगरबत्ती नारियल लिए बेचैन आत्मा हुए तो नही दौड़ रहे भीड़ में,,

धर्म का प्रथम लक्षण धारण करें,, बालक अंबानी ब्याह रहा है रायचंद यहां पेट में मरोड़ उठाए घूम रहे हैं,, कीर्ति चक्र और पैसे लेकर फौजी की बहू गई या भेजी या अन्य कुछ मामला है,, लगे हैं पागलों की तरह उसी मुद्दे पर नंगे नाचने,, अरे धैर्य कहां गया धार्मिक बंधुओ,,

यह तो धर्म का प्रथम लक्षण है,, जब यही नही तो बाकी की आपसे क्या आशा,, एक #जज साहब अपने आप को कहें कि अरे महाराज जीवन तो आप जैसे लोगों का है,, पुण्य तो आपके हैं, हमारा क्या है हम तो अधम नीच पातक हैं,, हमे लगा कि हमसे यह सुनना चाह रहे हैं कि अरे नही नही, आप तो पुण्यात्मा हैं जज साहब,, लेकिन हम पहले अहंकार ही तोड़ते हैं बाकी बची अकड़ फिर धीरे धीरे,, हमने कहा कि सच कहते हैं, हैं तो आप बिल्कुल अधम नीच ही,,
उसके बाद वे कहीं भी हों मैं आवाज दूं कि नीच कहां गया, इधर आओ दौड़कर,, साल भर हुआ जज साहब फिर न फोन किए न मिले,,,

तो भाई मेरे,, थोथी धार्मिकता को सेकेंड भर में तोड़ देगा मिल गया कोई मां का जना,, इसलिए धर्म को धारण करें,, और यह पढ़ने के बाद ध्यान से अपने अंदर देखें कि धैर्य की कितनी पूंजी इक्कठी की है,,

ॐ श्री परमात्मने नमः। *सूर्यदेव*

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