दयानंद पांडेय : नरेंद्र मोदी से सीखिए बलि चढ़ा देने की कला

भारतीय समाज और राजनीति में नरेंद्र मोदी अब एक नाम नहीं , एक प्रधान मंत्री नहीं , एक दीवार है । चीन की दीवार से भी बड़ी दीवार । कोई इफ-बट नहीं । कोई बीच का रास्ता नहीं । बस दीवार के इस पार या उस पार रहना लोगों की अपनी पसंद है ।गोया कोई कथात्मक इतिहास दर्ज हो रहा हो फेंस के इस पार , फेंस के उस पार । भारतीय राजनीति में किसी नाम की ऐसी विभाजक रेखा मेरी जानकारी में पहले कभी नहीं रही है।

प्रतिपक्ष की बिछाई बिसात पर ही उस की बलि चढ़ा देने की कला सीखनी हो तो नरेंद्र मोदी से सीखिए। पर इस के लिए अदभुत धैर्य , संयम और विवेक की ज़रूरत होती है। नींबू-पानी पी कर , योग-क्षेम कर के ही यह मुमकिन है। तपस्वी बन कर ही यह मुमकिन है। स्कॉच पी कर , लफ़्फ़ाजी झोंक कर , साज़िश का सौदागर बन कर नामुकिन है।

लालकृष्ण आडवाणी ने एक समय 2015 में , कुंठा में ही सही लेकिन सही ही कहा था कि नरेंद्र मोदी एक अच्छे इवेंट मैनेजर हैं। उस वक्त आडवाणी की इस बात को लोगों ने नरेंद्र मोदी के लिए निगेटिव अर्थ में लिया था। लेकिन आडवाणी कुंठित थे , लोग गलत थे । नरेंद्र मोदी सचमुच बहुत बड़े इवेंट मैनेजर हैं। और अब तो इंटरनेशनल इवेंट मैनेजर।

आप नरेंद्र मोदी से कितना भी असहमत हों पर इस एक बात से तो ज़रूर सहमत होंगे कि इस आदमी ने अकेले दम पर भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय के नाम पर चल रही गुंडई , भ्रष्टाचार पर ब्रेक लगा दिया और धर्मनिरपेक्षता की हिप्पोक्रेसी का भी बाजा बजा दिया।

विष-वमन के धुरंधरों को अब अयोध्या में किसी सबरी रेस्टोरेंट का एक बिल मिल गया है। जिस में चाय 55 रुपए की है। टोस्ट 65 रुपए का। लगता है , ये मतिमंद कभी बरिस्ता टाइप किसी रेस्टोरेंट या ताज , ओबेराय जैसे होटलों में नहीं गए हैं। सामान्य रेस्टोरेंट में भी इस से महंगी चाय , टोस्ट मिलती है। सबरी मीठे और जूठे बेर खिलाती है , चाय , टोस्ट नहीं।

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