चंदर मोहन अग्रवाल : 2014 के पहले के झूठ पर 1000 करोड़ जुर्माना ठोंका इंटरनेशनल कोर्ट ने…

10 वर्ष पहले ना तो हमारा देश का नेतृत्व इतना सक्षम था कि वह जनमानस के उत्थान के लिए नई-नई टेक्नोलॉजी का भारत में इस्तेमाल करें और ना ही हमारे पास अधिकतर क्षेत्रों में काम करने के लिए क्रिटिकल टेक्नोलॉजी का एक्सैस था। ऐसे में बहुत ज्यादा जरूरी क्षेत्रों में कार्य करने के लिए हमारे को विदेशों से टेक्निकल और क्रिटिकल टेक्नोलॉजी आयात करनी पड़ती थी।

अक्सर साउदी के देश (OIC) भारत को कच्चे तेल के निर्यात करने पर यदा कदा ब्लैकमेल और भारत की विदेशी नीतियों में दख़लअंदाजी करते थे। इस परेशानी को देखते हुए भारत ने अपने देश के विभिन्न क्षेत्रों में तेल के कुआं को खोजने के लिए ONGC से कहा।

2002 में ONGC को भारत के तीन स्थानों में बड़े मात्रा में तेल के कुएं के मिलने की संभावना नजर आई और यह तीन स्थान थे महानदी कृष्णा गोदावरी और कावेरी।

क्रिटिकल टेक्नोलॉजी की डिमांड के चलते विदेशी कंपनियों को न्यौता दिया और इसी संदर्भ में तीन देशों ब्राजील, इटली और नॉर्वे की कंपनियां जो अपने आप को इस क्षेत्र में एक्सपर्ट मानती थी भारत में तेल के कुआं का पता लगाने के लिए भारत आईं।

2002 से लेकर 2013 तक इन विदेशी कंपनियों ने यहां वहां हाथ पैर मारने के बाद भारत में तेल मिलने की संभावनाओं से इनकार कर दिया और अपना काम समेट कर न सिर्फ वापस चली गई बल्कि भारत से इस नाकामयाब काम के बदले में भारी भरकम रकम की डिमांड भी करने लगी।

फिर आया भारत में मोदी युग। मोदी जी ने अपने वैज्ञानिकों को तेल की खोज करने वाली इस क्रिटिकल टेक्नोलॉजी को प्राप्त करने और तेल खोजने के काम में लगाया।

हमारे वैज्ञानिकों की कोशिशें कामयाब हुईं और इन तीनों जगहों से बड़ी मात्रा में तेल मिलने की न सिर्फ संभावनाएं मिलीं बल्कि यहां से तेल निकाला भी जाने लगा।

अब बारी भारत की थी और भारत ने इन तीनों देशों की कंपनियों पर हर्जाने का दावा ठोक दिया।

आपको यह जानकर अति प्रसन्नता होगी कि इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस ने भारत के इस दावे को सही ठहराते हुए इन तीनों कंपनियों को भारत को 1000 करोड रुपए बतौर हरजाना देने को कहा है।

इसे कहते हैं दबदबा।

अभी तक हर क्षेत्र में दूसरों से दबने वाला भारत अब विश्व पटल पर अपना दबदबा कायम करने लगा है और भारत का यह प्रभाव पूरे विश्व पर दिखने भी लगा है।

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