स्वतंत्रता ऐसे मिली : जर्मनी से इंग्लैंड फिर 6 गोलियां..

वीर हुतात्मा, बलिदानी उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के गांव सुनाम में हुआ था। इनके पिता का नाम सरदार टहल सिंह कंबोज और माता का नाम नारायणी था। उधम सिंह के सिर से दो वर्ष की अल्प आयु में माता व सात वर्ष की आयु में पिता का साया उठ गया। उनके छोटे भाई साधु सिंह की भी बीमारी के कारण मृत्यु होने के बाद वे संसार में अकेले रह गए। इनका पालन-पोषण अमृतसर के खालसा अनाथालय में हुआ। वहीं उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की और पंजाबी, हिंदी, उर्दू व अंग्रेजी में निपुणता हासिल की।

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उद्यम सिंह के अभावग्रस्त बाल्यकाल, संघर्षमय जीवन, अंग्रेजी अत्याचार व क्रांतिकारियों की कुर्बानी का उनके व्यक्तित्व और विचारधारा पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। 13 अप्रैल 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड ने उनके चिंतन पर अमिट छाप छोड़ी। इस घटना के बाद उनके हृदय में क्रांति की ज्वाला धधकने लगी। स्वदेश प्रेम और कुर्बानी का दृढ़ निश्चिय भी उन्होंने इसी घटना के बाद किया। अपनी आंखों से इस जघन्य हत्याकांड को देखने के बाद उद्यम सिंह ने शपथ ली कि “मैं इस पावन भारत से अंग्रेजी साम्राज्य का समूल नाश करके ही दम लूंगा और खून का बदला खून से लूंगा।”

इस बदले की भावना को दिल में दबाकर सरदार उद्यम सिंह 1920 को दक्षिण अफ्रीका होते हुए अमेरिका व इंगलैंड पहुंचे। 1928 में सरदार भगत ङ्क्षसह के निमंत्रण पर भारत पहुंचे उद्यम सिंह को लाहौर पहुंचते ही आयुध अधिनियम के तहत गिरफ्तार कर चार वर्ष के सश्रम कारावास की सजा हुई। भगत सिंह की फांसी ने उद्यम सिंह के दिल की आग को भडक़ा दिया।

1932 में जेल से बाहर आने के बाद उधम सिंह ने जेल से बाहर आने के बाद राम मौहम्मद सिंह आजाद के नाम से अमृतसर में दुकान शुरू की।
अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वीर उधम सिंह ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस व वीर सावरकर जैसे क्रांतिकारियों से संबंध स्थापित किए। नेताजी की योजना पर काम करते हुए उद्यम सिंह 1933 में जर्मनी और फिर वहां से इंगलैंड जाने में सफल हो गए। 13 मार्च 1940 को वह घड़ी आ गई, जिसका इंतजार देश का यह सपूत वर्षों से कर रहा था।

फ्रेंक ब्राजील नामक वर्दीधारी सैनिक के रूप में उद्यम सिंह कैस्टन हॉल के मंच तक पहुंचने में सफल हो गए। गोष्ठी के दौरान जैसे ही माईकल ओडायर ने भारतीयों के विरुद्ध जहर उगलना शुरू किया, उद्यम सिंह ने पिस्तौल से उस पर 6 गोलियां दागी। उसे दो गोलियां लगी और वह वही ढेर हो गया। लूई डेन, लार्ड लैमिंगटन और लार्ड जेटलैंड जख्मी हो गए। उद्यम सिंह के पास 25 गोलियां और थी। वह चाहते तो भाग सकते थे, किंतु उन्होंने अपनी गिरफ्तार दे दी। देश के कुछ बड़े नेताओं ने जहां इसे पागलपन कहा तो वीर सावरकर ने इसे वीरतापूर्ण कार्य बताया। भारत मां के इस सच्चे सपूत को 31 जुलाई 1940 को फांसी दे दी गई। जय भारत माँ और उसका वीर सपूत अमर बलिदानी उधम सिंह।

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