NRI अमित सिंघल : ‘डरो मत’.. नेता जो कहता हैं, क्या जनता भी वही सुनती है?
चुनाव जीतने के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि नेता जो कहता हैं, क्या जनता भी वही सुनती है?
अब राहुल कहता है: “डरो मत”। इस कथन को बहुसंख्यक जनता कैसे सुनती है? अन्य लोग क्या तात्पर्य निकालते है?
जनता का एक वर्ग इस कथन को ऐसे सुनेगा कि जब उस राहुल की सरकार बनेगी, तो 370 वापस आ जाएगा; विवादित ढांचा पुनः खड़ा कर दिया जाएगा; तुष्टिकरण की नीति का पालन किया जाएगा। लेकिन वह वर्ग उस पार्टी या उसके समर्थक दलों को ही वोट देगा।
अतः उस वर्ग को रिझा कर क्या लाभ होगा?
इसके विपरीत, बहुसंख्यक वर्ग उलझन में पड़ जाएगा कि कौन सा डर? कौन डरा रहा है? किसको डरा रहा है? क्यों नहीं डरना है?
अतः बहुसंख्यक वर्ग के मन में “डरो मत” से कोई भय उत्पन्न नहीं होता; कोई आश्वासन नहीं मिलता।
इसके विपरीत, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आम जनता के भय एवं चिंताओं को समझते है। लेकिन उसे एक समस्या के रूप में प्रस्तुत ना करके, वे उसका समाधान प्रस्तुत करते है।
लखपति दीदी, मुद्रा लोन, 5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी, 2047 तक विकसित देश बनाने का संकल्प, बेहतर सड़क-रेल-हवाई यात्रा, आतंकियों से सुरक्षा इत्यादि।
अतः, “मोदी की गारंटी”। कौन दे रहा है गारंटी? किस चीज की गारंटी?
जो मोदी जी कह रहे है, वही जनता भी सुन रही है।
यही अंतर है “डरो मत” एवं “मोदी की गारंटी” के मध्य।
यही अंतर परिवर्तित होगा “डरो मत” की हार में एवं “मोदी की गारंटी” की जीत में।